राकेश वर्मा/राजकुमार, बेरमो : महात्मा गांधी 28 अप्रैल 1934 को गोमिया आये थे. करमाटांड़ निवासी होपन मांझी के नेतृत्व में हजारों लोग गांधीजी को बैलगाड़ी जुलूस के साथ उन्हें गांव लाये. बापू ने कोनार नदी के किनारे गोमीबेड़ा में जनसभा को संबोधित किया था. मचान पर चढ़ कर बापू ने टीन के भोंपू से लोगों से स्वतंत्रता आंदोलन को सफल बनाने की अपील की थी. महात्मा गांधी होपन मांझी के टूटे-फूटे खपरैल घर में रात में रुके थे. संताल बहुल करमाटांड़ गांव में पैर पुजाई व लोटे में पानी देकर बापू का स्वागत किया गया था. दोपहर में बापू को होपन मांझी के परिजनों ने खाने में महुआ व बाजरे की रोटी और महुआ का लाठा परोसा था, जिसे उन्होंने चाव से खाया. होपन के घर के आंगन में तुलसी पिंडा में बापू ने पूजा की थी. वह तुलसी पिंडा आज भी है. होपन मांझी बापू के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से प्रेरित थे. उन पर अंग्रेजी हुकूमत ने दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया था और जुर्माना नहीं देने पर 27 जुलाई 1930 से लेकर 31 मार्च 1931 तक उन्हें हजारीबाग केंद्रीय कारा में रखा. 26 जून 1972 को हजारीबाग केंद्रीय कारा के काराधीक्षक ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र दिया था. वर्ष 1950 से लेकर 1952 तक होपन मांझी एमएलसी रहे. उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी 1952 से लेकर 1957 तक मनोनीत विधायक रहे. स्वतंत्रता सेनानी होपन मांझी के पोता सोनाराराम बेसरा ने बताया कि गांधीजी के कदम उनके घर भी पड़े थे. क्षेत्र के लोगों के लिए यह गौरव की बात है. लेकिन करमाटांड़ गांव का जिस गति से विकास होना चाहिए था, वह अभी तक नहीं हुआ है. यहां के ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल रहा है. कई ग्रामीण रोजगार की तलाश में पलायन कर गये हैं.
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