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बालू के खेल का स्याह पक्ष : ग्रामीणों व मजदूरों की ओट में धंधेबाजों की चांदी

एक अधिकारी, एक इंस्पेक्टर व टास्क फोर्स के जरिये बालू चोरी पर लगाम की कोशिश , बालू घाट नीलामी की प्रक्रिया भी फाइलों में तोड़ रही दम

सीपी सिंह, बोकारो, जिले में बालू का अवैध खनन बिना रोक-टोक जारी है. 22 अप्रैल को भतुआ (सेक्टर 11) की घटना इसका स्पष्ट प्रमाण है. सनद रहे यहां कार्रवाई करने गयी बीएसएल व जिला खनन विभाग की टीम पर हमला हुआ. दरअसल, इन सबके पीछे कई कारण है. एक कारण बालू घाटों की नीलामी का नहीं होना है, तो दूसरा बड़ा कारण विभाग का संसाधन विहीन होना है. जानकारी के अनुसार जिले में एक भी बालू घाट की नीलामी नहीं हुई है, वहीं यहां का खनन विभाग एक अधिकारी (डीएमओ) व निर्धारित तीन के बदले एक इंस्पेक्टर के बल जिले के 2883 वर्ग किमी क्षेत्रफल में अवैध खनन रोकने का काम कर रहा है. इनकी मदद के लिए विभाग में एक क्लर्क, एक ड्राइवर व एक ऑपरेटर है. किसी अभियान के लिए इन्हें पुलिस की मदद मिलती है, पर इसका असर साफ दिखता है.

बेअसर साबित होता टास्क फोर्स

अवैध खनन रोकने के लिए जिले में टास्क फोर्स का गठन किया गया है. इसमें एसडीओ, सभी प्रखंड के बीडीओ, सीओ समेत सभी थाना के प्रभारी शामिल होते हैं. बावजूद इसके अवैध कारोबार जारी है.

जिले में हर दिन बालू का अवैध कारोबार

हर दिन जिले में 1000-1200 सीएफटी से अधिक बालू की खपत होती है. जिला में जिधर से भी नदी गुजरी है, कमोबेस हर इलाके में बालू का अवैध कारोबार होता है. कहीं रात के अंधेरे में, तो कहीं अहले सुबह. जिला खनन विभाग की कोशिशों के बाद भी इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग रही है. वर्तमान में बालू 04-05 हजार रुपये प्रति ट्रैक्टर की दर से बिक रहा है, हालांकि बेरमो अनुमंडल के फुसरो-बेरमो क्षेत्र में 2500 से 03 हजार की दर से बालू उपलब्ध है. जिले के पेटरवार प्रखंड के खेतको, चलकरी, तेनुघाट व सुदूरवर्ती गागा ग्राम से सटे गोला प्रखंड के गंधनिया घाट, बेरमो में दामोदर नद के विभिन्न घाट के अलावा चंदनकियारी प्रखंड के अमलाबाद ओपी क्षेत्र में सीतानाला, दामोदर तट व गुडलीभिट्टा गांव के समीप व गवई नदी के विभिन्न घाट से बालू का उठाव हो रहा है. पिंड्राजोरा क्षेत्र में इजरी नदी के साथ बंगाल की कसाई नदी से भी बालू की आपूर्ति हो रही है.

ऐसे समझिए कमाई का खेल

जानकारों की मानें, तो नदी से बालू उठाव व स्टॉक में प्रति ट्रैक्टर 500 रुपये का अधिकतम खर्च आता है, जबकि इसको घाट से बाहर भेजने में 800 से 1000 रुपये का खर्च आता है, जबकि बाजार में यह प्रति ट्रैक्टर (जिला स्तर पर औसत) 3200-3500 रुपये में बिकता है. यानी प्रति ट्रैक्टर 1700 से 2000 रुपये की बचत कारोबारी को होती है. इससे कारोबार का अंदाज लगाया जा सकता है. हद तो यह कि इस धंधे में जिन मजदूरों का इस्तेमाल होता है, उनका कोई फायदा नहीं होता, पर धंधेबाज मालामाल होते हैं.

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