Loading election data...

National Mountain Climbing Day 2021 : बारिश व बर्फबारी के बीच बोकारो की डॉ तृप्ति ने केदारकंठ को किया फतह

National Mountain Climbing Day 2021 (बोकारो) : बोकारो जेनरल अस्पताल की दंत चिकित्सा विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ तृप्ति चंद्रा ने बछेन्द्री पाल के नेतृत्व में 12,500 फीट ऊंचे केदारकंठ को कठिन परिस्थितियों में लगातार हो रही बारिश व बर्फबारी के बीच फतह किया था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 1, 2021 7:47 PM

National Mountain Climbing Day 2021 (सुनील तिवारी, बोकारो) : 2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च को TSF व SAIL की ओर से आयोजित आउटबाउंड लीडरशिप कार्यक्रम (Outbound Leadership Program) का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम के तहत बोकारो जेनरल अस्पताल की दंत चिकित्सा विभाग की विभागाध्यक्ष डीसीएमओ (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ तृप्ति चंद्रा ने एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली और विश्व की पांचवीं महिला बछेन्द्री पाल के नेतृत्व में 12,500 फीट ऊंचे केदारकंठ को कठिन परिस्थितियों में लगातार हो रही बारिश व बर्फबारी के बीच फतह किया था.

प्रभात खबर से खास बातचीत में डाॅ तृप्ति चंद्रा ने कहा कि पहाड़ों पर (पिथारागढ़-उत्तराखंड) बचपन बीतने के कारण बचपन से ही पहाड़ों से विशेष लगाव है. काम, परिवार व जिम्मेदारियां के कारण पहाड़ों पर जाने का मौका नहीं मिला. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सेल द्वारा महिला अधिकारियों के लिए आयोजित ‘आउट बाउंड लीडरशिप’ कार्यक्रम के लिए अवसर ने एक दिन दरवाजे पर दस्तक दी. उसके बाद कंफर्ट जोन से बाहर आने का फैसला किया.

ट्रेकिंग अभियान को एक अवसर के रूप में लिया. पहले ट्रेकिंग अभियान के रूप में पर्वतीय महिला बछेंद्री पाल ने ट्रेकिंग के माध्यम से हिमालय के केदारकांठ पीक (ऊंचाई 12,500 फीट) पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, 2020 मनाने का मौका दिया. बछेंद्री पाल के साथ गुजरा एक-एक पल काफी रोमांचक रहा.

Also Read: दोस्तों के साथ नदी में नहाने गया बच्चा पानी की तेज धार में बहा, बोकारो पहुंची NDRF की टीम तलाश में जुटी
बोकारो टू सांकरी वाया देहरादून

डॉ तृप्ति ने बताया कि यात्रा बोकारो से रांची, रांची से दिल्ली, दिल्ली से देहरादून के लिए शुरू हुई. अगले दिन सुबह 9 बजे बस से देहरादून से सांकरी बेसकैंप चले गये. 9-10 घंटे की बस यात्रा प्रकृति की सुंदरता से भरपूर थी. छठे दिन सुबह 9 बजे उत्साह के साथ ट्रेकिंग अभियान शुरू हुआ. 4 घंटे की माउंटेन ट्रेकिंग के बाद मौसम के अनुसार, अभियान में एक और रोमांच जुड़ गया यानी भारी बारिश हुई. इंतजार करने का कोई विकल्प नहीं था. ट्रेकिंग के साथ पोंचोस यानी एक लंबा रेनकोट, फिसलन भरी चट्टानों व कीचड़ के कारण परेशानी हुई. कुछ देर बाद प्रकृति की योजना बदल गयी. एक घंटे के बाद ट्रेकिंग के दौरान ही बर्फबारी से मिले. पहले के ज्यादा उत्साहित थे. बर्फ के साथ खेला. नृत्य किया. फोटो शूट किया.

एक घंटे बाद बर्फबारी खतरनाक हो गयी

उन्होंने कहा कि अंत में एक लकड़ी के आश्रय के साथ एक जगह देखी. वहां एक आदमी गर्म चाय परोस रहा था. चाय पी. सामान्य मौसम की प्रतीक्षा कर रहे थे. लेकिन, एक घंटे बाद बर्फबारी खतरनाक हो गयी. भारी बर्फबारी हुई. सारी हरियाली बर्फ में परिवर्तित हो गयी. सभी पेड़ सफेद हो गये. चारों ओर सफेद बर्फ के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

खराब मौसम की स्थिति ने आवागमन को प्रतिबंधित कर दिया. यह तय किया गया कि टीम वहीं रहेगी. हमारे तंबू पर बर्फ की चादर बिछ गयी. हमें स्लीपिंग बैग, मैट, लाइनर मिले. तंबू में रहने का मेरा पहला अनुभव, वह भी बर्फ पर स्लीपिंग बैग में सोना काफी मुश्किल था. माइनस 6 डिग्री सेल्सियस का तापमान था. रोमांच यहीं नहीं रुका. रात में भारी बर्फबारी शुरू हो गयी.

Also Read: झारखंड के बोकारो में कोनार डैम से पानी छोड़ने से इंटक वेल धंसा, विधायक ने किया जांच का आग्रह
जागते रहो, झाड़ते रहो… के साथ गुजरी रात

डॉ तृप्ति ने बताया कि हमें समर्थन टीम ने निर्देश दिया कि जागते रहो और छड़ी के माध्यम से अपने तंबू से बर्फ साफ करना जारी रखो, क्योंकि अगर बर्फ के वजन के कारण एक तंबू गिर जाता है तो हमारे जीवन को खतरा हो सकता है. रात गुजरी. नींद से भरी आंखें, बदन दर्द और कंपकंपी ठंड. थके हुए टेंट की सफाई की.

एक देसी नारा था कि जागते रहो, झाड़ते रहो. पूरी रात ऐसे हीं गुजरी. सुबह तक करीब दो फीट बर्फ गिर चुकी थी. सुबह नाश्ते के बाद सपोर्ट टीम ने प्रेरित किया. बहुत कम भाग्यशाली ट्रेकर्स को स्नो ट्रेकिंग का अवसर मिला. हमने गैटर और शू स्पाइक्स के साथ स्नो ट्रेकिंग की, जो हमें बर्फ पर ट्रेक करने में मदद करती है. कुछ समय बाद, फिर से बर्फबारी शुरू हुई. लेकिन, हम रुके नहीं और अंत में अपने गंतव्य पर पहुंच गये.

महिला दिवस और भी चमकीला हो गया

उन्होंने कहा कि जमी हुई झील और बर्फ के पेड़ों की सुंदरता मंत्रमुग्ध कर देने वाला था. सुरक्षा कारणों से यह तय किया गया था कि समूह वापस चलेगा. 10 घंटे के हिमपात के बाद हम फिर से उसी तंबू में वापस आ गये. तंबू में हमारी दूसरी रात फिर से जागते रहो-झाड़ते रहो के साथ गुजरी. 8 तारीख की सुबह महिला दिवस और भी चमकीला हो गया, क्योंकि 48 घंटे की बर्फ के बाद हम एक धूप वाले दिन से मिले. यह सिर्फ सांस लेने वाला दृश्य था, जिसने हमारे ट्रेकिंग अभियान को और भी खास बना दिया. हमने अपना सामान और तंबू पैक किया. अपने बेस कैंप सांकरी की ओर ट्रेकिंग शुरू की. हमेशा की तरह धूप वाले दिन के कारण अतिरिक्त साहसिक स्वाद जोड़ा गया. सारी बर्फ पिघलने लगी. फिसलन भरी बर्फ, कीचड़ व चट्टानों में नीचे आना मुश्किल हो गया. लेकिन, एक दूसरे की मदद से हम शाम चार बजे तक बेस कैंप में आने में सफल रहे.

Also Read: झारखंड में दहेजमुक्त विवाह के लिए जागरूकता की कवायद, पढ़ाया जा रहा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का पाठ
चांदनी होली मेले का ड्रेस-अप व नृत्य

उन्होंने कहा कि रोमांच यहीं नहीं रुका. हमारे पास रात में ठहरने के लिए जगह नहीं थी. हम अपने शेड्यूल से एक दिन पहले खराब मौसम के कारण आये थे. हमने स्थानीय पहाड़ी लोगों की तुलना में कुछ समय इंतजार किया, जो ट्रेकिंग के दौरान हमारे साथ थे. स्थानीय गांव पुलगांव में हमारे ठहरने की व्यवस्था की. पहाड़ी गांव में अपने परिवार के साथ रहना और पहाड़ी खाना-खाना वास्तव में एक जीवन भर का अनुभव है. अगले दिन हम उनके गांव गये. उनके चांदनी होली मेले का भी ड्रेस-अप व नृत्य में आनंद लिया.

पहाड़ी लोगों के साथ बिताया गया समय हमें याद दिलाता है कि ‘अतिथि देवो भव’ अभी भी भारत में बहुत प्यार और सादगी के साथ जीवित है. 10 वीं सुबह हम बहुत सारी स्मृति, भावनाओं, नये दोस्तों के साथ बस से देहरादून लौटे. कहा : हर आदमी का जीवन एक ही तरह से समाप्त होता है, बस यही तरीका है, हमने इसे कैसे जिया और हम कैसे मरे जो एक आदमी को दूसरे से अलग करता है. इसलिए, खुशियों से भरा जीवन जिये. हमेशा अपने खुद के डर के पहाड़ को जीतने की कोशिश करें.

Posted By : Samir Ranjan.

Next Article

Exit mobile version