महाजनी प्रथा के खिलाफ और झारखंड आंदोलन में सक्रिय रहने वाले पैरा मंझियाइन और रामदास सोरेन के परिजनों का कोई नहीं ले रहा सुध

Jharkhand news, Bokaro news : झारखंड राज्य बने 20 साल होने को है, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने झारखंड अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका और महाजनी प्रथा के खिलाफ पुरजोर आंदोलन करते हुए अपने प्राण तक त्याग दिये. लेकिन, इनके परिजनों को आज तक समुचित हक नहीं मिल पाया है और आज भी सरकार से आस लगाये बैठे हैं. ऐसे ही दो योद्धा हैं ललपनिया से सटे केरी (टीकाहारा) के मातकमटांड़ निवासी स्वर्गीय पैरो मंझियाइन और स्वर्गीय रामदास सोरेन. इन दोनों योद्धाओं के परिजन आज दयनीय हालत में हैं. पैरो मंझियाइन के पुत्र लक्ष्मण मांझी आज साइकिल दुकान चला कर अपने परिवारों का भरन पोषण कर रहे हैं, वहीं स्व रामदास की विधवा तारामती को पिछले कई महीनों से विधवा पेंशन भी नहीं मिल रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2020 4:59 PM

Jharkhand news, Bokaro news : बेरमो (राकेश वर्मा/रामदुलार पंडा) : झारखंड राज्य बने 20 साल होने को है, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने झारखंड अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका और महाजनी प्रथा के खिलाफ पुरजोर आंदोलन करते हुए अपने प्राण तक त्याग दिये. लेकिन, इनके परिजनों को आज तक समुचित हक नहीं मिल पाया है और आज भी सरकार से आस लगाये बैठे हैं. ऐसे ही दो योद्धा हैं ललपनिया से सटे केरी (टीकाहारा) के मातकमटांड़ निवासी स्वर्गीय पैरो मंझियाइन और स्वर्गीय रामदास सोरेन. इन दोनों योद्धाओं के परिजन आज दयनीय हालत में हैं. पैरो मंझियाइन के पुत्र लक्ष्मण मांझी आज साइकिल दुकान चला कर अपने परिवारों का भरन पोषण कर रहे हैं, वहीं स्व रामदास की विधवा तारामती को पिछले कई महीनों से विधवा पेंशन भी नहीं मिल रहा है.

इन दोनों ने महाजनी प्रथा के खिलाफ और झारखंड अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी और गुरुजी शिबू सोरेन के सान्निध्य में उनके अनुज लालू सोरेन के साथ मिल कर 70 के दशक से ललपनिया क्षेत्र के आंदोलनों को धार देने का काम किया था. लेकिन, नवंबर 1970 में आंदोलन के क्रम में फुटकडीह बाजारटांड़ के समीप पुलिस की गोली से पैरो मंझियाइन की मौत हो गयी. वहीं, 1997 में रामदास सोरेन की हत्या कर दी गयी. दोनों की भूमिका की आज भी क्षेत्र में चर्चा होती है और इन्हें शहीद कहा जाता है.

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स्वर्गीय रामदास सोरेन की शहादत दिवस तो हर साल केरी चौक में उनके नाम से बने शहीद बेदी में 29 मई को मनायी जाती है. लेकिन, दुर्भाग्य है या सरकारी मशीनरी की कमी कि आज भी दोनों को झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा नहीं मिल सका है. इनके परिजन मुफलिसी में जीवन यापन कर रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक, दोनों शहीद को झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा देकर सरकारी सुविधाओं का लाभ देने संबंधी 2017 से प्रक्रिया चल रही है. उस समय नेता प्रतिपक्ष रहे हेमंत सोरेन ने आयोग को पत्र लिख स्वर्गीय सोरेन को शहीद के श्रेणी में सूचीबद्ध कर आंदोलनकारी घोषित करने एवं पुत्र श्यामदेव को समुचित लाभ देने की अनुशंसा की थी. जिस पर कई दौर की संबंधित लोगों का आपस में पत्राचार हुआ. पुलिस वैरिफिकेशन हुआ, लेकिन अबतक इन्हें उक्त दर्जा नहीं मिला है और न ही परिजनों की किसी ने सुध ली गयी है. पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद ने भी आयोग को पत्र प्रेषित किया था.

फुटकाडीह के जारागढ़ा में हुआ था गोलीकांड

1970 के दशक से गुरुजी शिबू सोरेन और इनके अनुज लालू सोरेन की अगुवाई में ललपनिया क्षेत्र में महाजनी प्रथा एवं अलग झारखंड राज्य को लेकर जबरदस्त आंदोलन हुआ करता था. इसी समय 12 नवंबर, 1970 को महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन उग्र हो गया. जारागढ़ा नामक स्थान के पास भारी संख्या में तीर-धनुष से लैस आदिवासी धान काटने पर आमदा थे. हालात ऐसे बिगड़े कि पुलिस ने गोली चलानी शुरू कर दी. गोली लगने से पैरो मंझियाइन की मौत हो गयी. बताया जाता है इस समय वह गर्भवती भी थी. करीब 19 राउंड गोली चली थी. जिसमें टीकाहारा के मेहिलाल मांझी और पांडु मांझी भी जख्मी हुए थे. बुजुर्ग बताते हैं कि इस गोलीकांड के बाद महाजनी प्रथा के खिलाफ पूरे राज्य में आंदोलन तेज हो गयी थी.

कोई साइकिल दुकानदार, तो कोई मनरेगा मजदूर

शहीद पैरो मंझियाइन के परिजन मुफलिसी में जीवन यापन कर रहे हैं. पुत्र लक्ष्मण मांझी एक खस्ताहाल साइकिल दुकान चलाते हैं. यहां पहुंचने पर उनसे बात की. उन्होंने बताया कि मां का शव भी नहीं देख पाया था. हमलोग 4 भाई उस समय छोटे थे. कहा कि ‘कहां बाबू, अभी तक माय के मरल एते दिन भै गइले, कुछ नाय मिलल है. सुनले हिये कि कुछो मिलतय. अब कहिया उ दिन अयते. जे हमनी के सरकार सुधि लेतय. बताया कि बड़े भाई का निधन हो चुका है और जो हैं, वो इधर-उधर मजदूरी करके घर चला रहे हैं. लक्ष्मण इस समय जेएमएम का लोगो लगा टी-शर्ट पहने हुए थे. हमने पूछा तो यही जवाब मिला कि माय के विरासत संभाइल रहल हियो. हमनी के तो जे हो गुरुजी ही सब कुछ हो. हेमंत बाबू अब जरूर कुछो करबथिन काहे कि ऊ मुख्यमंत्री बनल हथी न.

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गुरुजी के सान्निध्य में जल, जंगल, जमीन के प्रति मुखर थे शहीद रामदास

केरी मातकमटांड़ निवासी शहीद रामदास सोरेन पृथक झारखंड आंदोलन एवं इसके पूर्व महाजनी प्रथा के खिलाफ गुरुजी शिबू सोरेन के सान्निध्य में गुरुजी के अनुज लालू सोरेन (अब दिवंगत) के साथ क्षेत्रीय आंदोलनों को धार देते थे. बताया तो यही जाता है कि इन्हीं के घर में कई-कई दिनों तक रहकर लालू सोरेन आंदोलनों को गति देते थे. जल, जंगल, जमीन की रक्षा और निर्धन एवं असहाय आदिवासियों को जागरूक एवं जेएमएम नेता के रूप में मदद करने में आगे रहते थे. लेकिन, 1997 में उनकी हत्या हो गयी. इनके परिजन आज भी झामुमो के सच्चे सिपाही हैं. इनके परिजनों के हालात भी अच्छे नहीं हैं. स्वर्गीय सोरेन की विधवा तारामती देवी को लॉकडाउन के पूर्व के कुछ महीनों से ही विधवा पेंशन नहीं मिला है. खेती-बारी से जीविका चलती है. परिजन झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा नहीं मिलने से दुखी हैं. पुत्र श्यामदेव सोरेन ने बताया कि पिछले 3 वर्षों से प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी तक आंदोलनकारी का दर्जा नहीं मिला है. जबकि, बतौर नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने वर्ष 2017 में झारखंड/वनांचल आयोग को संबंधित अनुशंसा पत्र भेजा था. पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद ने भी पत्र भेजा था.

Posted By : Samir Ranjan.

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