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BOKARO NEWS : दुगदा में पदमा महाराज ने शुरू की थी मां काली की पूजा

BOKARO NEWS : चंद्रपुरा प्रखंड के दुग्दा बस्ती स्थित फुलझरिया में मां काली की पूजा 150 वर्षों से होती आ रही है. यहां हजारीबाग के पदमा महाराज कामाख्या नारायण सिंह ने पूजा शुरू करायी थी.

विनोद सिन्हा, चंद्रपुरा : चंद्रपुरा प्रखंड के दुग्दा बस्ती स्थित फुलझरिया में मां दक्षिणेश्वरी महाकाली की पूजा 150 वर्षों से होती आ रही है. यहां के मंदिर में काली पूजा पर काफी संख्या में बकरों की बलि दी जाती है. मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गयी मन्नत पूरी होती है. पहले यहां प्रतिवर्ष मिट्टी की प्रतिमा बनायी जाती थी. अब स्थायी रूप से काला रंग के पत्थर की मूर्ति स्थापित है. काली पूजा की रात हजारों श्रद्धालु जुटते हैं. शुरुआती दौर से ही यहां बलि देने की प्रथा है. बताया जाता है कि यहां हजारीबाग के पदमा महाराज कामाख्या नारायण सिंह ने काली पूजा शुरू करायी थी. यहां का मंदिर पश्चिम बंगाल के दक्षिणेश्वरी काली मंदिर की तरह बनाया गया है. महाराज कामाख्या नारायण ने मां काली की प्रतिमा बनाने के लिए बंगाल के दक्षिणेश्वरी मंदिर से मिट्टी अपने वाहन से कोलकाता से पदमा ला रहे थे. दुगदा के आसपास वाहन खराब हो गया. काफी प्रयास के बाद भी जब वाहन नहीं बना तो महाराज ने इसे माता की इच्छा मान इस मिट्टी से यहां मां काली की प्रतिमा बना कर पूजा की. इसके बाद हर साल वह काली मां की पूजा करने यहां आते थे. बताया जाता है कि महाराज ने इसके लिए यहां पुजारी, नापित, डोम व कुम्हार को रखा था. सभी के जीविकोपार्जन के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन दान में दी थी. यहां पूजा शुरू से ही चक्रवर्ती परिवार के सदस्यों द्वारा की जा रही है. वर्तमान में पूजा व सारे अनुष्ठान कालो बाबा कराते हैं. यहां का चक्रवर्ती परिवार ही मंदिर की देखरेख व संचालन करता है. बारी लाने का है विशेष महत्व : यहां पूजा प्रारंभ होने के पूर्व तालाब से बारी लाने की प्रथा है. पुजारी द्वारा मिट्टी के घड़े में जल लाया जाता है, लेकिन महज आधा किमी दूरी तय करने में पुजारी को दो से तीन घंटे का समय लग जाता है. बारी लाने के दौरान पुजारी पर मां सवार हो जाती है और वह मंदिर नहीं आना चाहती हैं. इस दौरान पुजारी नृत्य भी करते हैं, लेकिन इसके बाद भी घड़े से पानी कम नहीं होता.

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