Loading election data...

आधी आबादी: कुछ पाने के लिए जरूरी है जुनून

इस बार आधी आबादी के अंक में पढ़िए बोकारो की ऐसी ही चंद महिलाओं की कहानी उनकी जुबानी, जिन्होंने बताया कि एक महिला जब कुछ ठान लेती है तो उसे कोई भी ताकत मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती. पेश है चीफ सब एडिटर कृष्णाकांत सिंह की रिपोर्ट...

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2022 9:34 AM

आधी आबादी: गीता कुमारी एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. उनका पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई सब कुछ बोकारो स्टील सिटी से हुआ है. उनके पापा समाजसेवी व्यक्ति हैं. उनसे ही समाजसेवा करने की प्रेरणा मिली. बकाैल इंस्पेक्टर संगीता पढ़ाई करने के दौरान ही संकल्प कर चुकी थीं कि मुझे पुलिस ऑफिसर बन कर समाज सेवा करनी है. इसलिए पढ़ाई पूरी होने के बाद में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गयी. इसी बीच शादी हो गयी तब ऐसा लगा कि सारा सपना चकनाचूर हो गया. अब मैं कुछ नहीं कर सकूंगी, लेकिन आत्मविश्वास और कुछ कर गुजरने के जुनून ने मुझे बैठने नहीं दिया. इस काम में मेरे पति का भी सहयोग मुझे मिला. उन्हें भी लगा कि मैं भी कुछ कर सकती हूं. कुछ करने और उसे पाने का जज्बा ही था कि उन्होंने कभी मना नहीं किया. इसके बाद मैं तैयारी करने के लिए पटना चली गयी.

सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली

एक साल की तैयारी के बाद मैंने झारखंड पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की नौकरी पा ली. तैयारी करने से लेकर नौकरी पाने तक कई मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कभी-कभी मन करता था कि सब कुछ छोड़ दूं, लेकिन अगले ही पल ख्याल आता था कि मैं हार कैसे मान सकती हूं. मुझे तो कुछ करना है. समय-समय पर पापा और पति मेरा हौसला बढ़ाते रहे. शायद इसी का परिणाम है कि मैं मुकाम को हासिल कर सकी और इन सब से अलग मेरा आत्मविश्वास था कि मैं कर सकती हूं. इस कारण से मुसीबत तो कई बार आयी लेकिन मेरे विश्वास को डिगा नहीं सकी. महिलाओं की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए पढ़ाई करने के दौरान ठान लिया था कि मुझे एक सबल महिला बन कर महिलाओं और बच्चियों को जागरूक करना हैं, ताकि वे आत्मनिर्भर और सबल बन सकें.

गांव-गांव जाकर लोगों को किया जागरूक

संगीता कहती हैं कि जब मैं महिला थाना प्रभारी बनी तो वरीय अधिकारियों के सहयोग से स्कूल, बस्ती, गांव-गांव जाकर के महिलाओं व युवतियों को जागरूक करने लगी. आज खुशी होती है महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं. कहती हैं कि पुलिस पदाधिकारी बनने के बाद मैंने देखा कि कानूनी अज्ञानता के कारण नाबालिग लड़के-लड़कियां अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. तब मैंने तय किया और बोकारो के प्रायः हर स्कूलों में जाकर नौजवानों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया. खासकर, लड़कियों को भी गुड टच और बैड टच के बारे में बारीकी से समझाया. इस काम में सीडब्ल्यूसी की टीम ने भी मदद की. पुलिसिंग के दौरान देखा कि स्लम एरिया के बच्चों में शिक्षा की बहुत ही कमी है. इसी क्रम में बोकारो के सेक्टर वन स्थित कार्तिक नगर में जाकर बच्चों को पढ़ाने एवं पढ़ाई में सहयोग करने का काम किया, जिसे आज भी वो याद करते हैं.

बच्चों को पढ़ाने में करने लगी सहयोग

वहां के बच्चों में पढ़ने की लालसा उत्पन्न हुई. यह देख खुशी मिलती है कि मैं अपने प्रयास में कुछ हद तक सफल हो गयी. आज भी जब भी समय मिलता है मैं वहां जाती हूं और बच्चों के बीच कॉपी, पेंसिल, किताबें आदि का वितरण करती हूं. यह देख कर बोकारो की कुछ संस्थाओं ने मेरे काम को सराहा और भरपूर सहयोग किया. मेरी यही कोशिश होती है कि मैं अपने कर्तव्य का निर्वहन बेहतर तरीके से करते हुए सामाजिक दायित्व को भी पूरा कर सकूं. मेरा मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना ही नहीं होना चाहिए. उस शिक्षा से किसी और को भी शिक्षित बनाने के बारे में सोचना चाहिए. यह पूछने पर कि पुलिस की नौकरी में घर, परिवार और समाज के बीच कैसे संतुलन बना लेती हैं, तो कहती हैं महिला को यूं ही दुर्गा, सरस्वती और नदी की उपमा नहीं दी गयी है. एक महिला ही है जो दो परिवारों को शिक्षित और संपन्न बनाती है. उसमें सहनशीलता है तो चुनौतियों से दो-दो हाथ करने की ताकत भी.

Next Article

Exit mobile version