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ख‍ंडहर होते स्कूल : चोरों और दबंगों के निशाने पर धनबाद, बोकारो और गिरिडीह के 524 बंद विद्यालयों के भवन

धनबाद, बोकारो और गिरिडीह के 524 बंद स्कूलों के भवन बरबाद हो रहे हैं. अधिकतर खाली भवन भू-माफियाओं, चोरों, नशेड़ियों के अड्डे बन गये हैं, या मवेशी बांधने और चारा रखने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं. ये स्कूल विद्यार्थियों की कम संख्या के आधार पर अप्रैल 2018 में विलय प्रक्रिया के तहत बंद किये गये थे. इसके तहत राज्य भर में चार हजार स्कूल बंद हुए हैं. तब यह तय हुआ था कि बंद स्कूलों के भवनों को किसी दूसरे काम में इस्तेमाल किया जाएगा. शिक्षा विभाग इसकी देखरेख करेगा. ये इंफ्रास्ट्रक्चर करोड़ों की संपत्ति हैं और इसमें जनता के टैक्स के पैसे लगे हैं. राजनीतिक दलों के वे नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं, जिन्होंने स्कूलों के बंद करने के फैसले का विरोध किया था.

धनबाद : विलय के कारण धनबाद में 137, बोकारो में 141 और गिरिडीह में 246 विद्यालय बंद हुए. सरकारी प्राथमिक मध्य विद्यालयों के विलय के पीछे की मुख्य वजह विभाग के पास मौजूद संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करना बताया गया था. इसके लिए दो शर्ते तय थीं. शर्तों के अनुसार जिस स्कूल में 30 से कम छात्र थे, उन्हें 500 मीटर के अंदर मौजूद दूसरे स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया. इसके साथ ही एक किमी के दायरे में मौजूद दो या उससे अधिक स्कूलों के होने पर बेहतर संसाधन वाले स्कूल में कम संसाधन वाले स्कूलों को मर्ज किया गया.

जब इन विद्यालयों का विलय हुआ था, तब इनकी देखरेख की जिम्मेदारी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारियों को दी गयी थी. पर आज तक किसी ने इस ओर झांका तक नहीं. विलय के समय विभाग की ओर से कहा गया था कि जल्द ही इन खाली भवनों का इस्तेमाल किसी दूसरे कार्य में किया जाएगा. पर पिछली सरकार के डेढ़ साल और वर्तमान सरकार के छह महीने के कार्यकाल में किसी ने इनकी सुध नहीं ली.

हालांकि बंद किये गये विद्यालय भवनों के उपयोग के लिए मुख्य सचिव व शिक्षा सचिव के स्तर से सभी विभागों के सचिव व उपायुक्त को पत्र लिखा गया था. फिलहाल इन भवनों की स्थिति को लेकर विभाग के पास कोई जानकारी नहीं है.

धनबाद जिले में विलय के बाद बंद हुए 137 विद्यालयों में करीब 105 में बिजली का कनेक्शन था, जिसे विद्यालय के बंद होने के समय विभाग कटवाना भूल गया. विभाग ने तब बिजली कटाने की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन समिति पर छोड़ दी थी. आज भी कई विद्यालयों के बिजली बिल आ रहे हैं. लेकिन इसकी सुधि लेने वाला आज कोई नहीं है. जबकि इस इंफ्रास्ट्रक्चर का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि वर्तमान सरकार के मुख्य घटक झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा भी बनाया था. खुद वर्तमान शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो विलय के प्रबल विरोधी थे. मंत्री बनते ही उन्होंने विलय के बाद बंद विद्यालयों को फिर से खोलने की घोषणा की थी.

अप्रैल 2018 में सरकारी विद्यालयों के विलय के बाद बंद हुए थे ये स्कूल

देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो रहे हैं स्कूल

कई विद्यालय भवनों में खुले खटाल, तो कई बने नशेड़ियों के अड्डे

धनबाद में 137, बोकारो में 141 और गिरिडीह में 246 विद्यालय हुए हैं विलय के बाद बंद

स्थानीय लोगों की सहमति से खुलेंगे बंद विद्यालय : मैं कभी विद्यालयों के विलय का पक्षधर नहीं था. मंत्री बनने के बाद भी विद्यालयों के विलय के खिलाफ हूं. अभी लॉकडाउन है तो अभी कोई स्कूल नहीं खुलेंगे, लेकिन विलय के बाद बंद पड़े स्कूलों को खोलने के लिए सर्वे शुरू कर दिया गया है. मैंने सभी डीइओ को गांवों में जाकर लोगों से राय लेने का निर्देश पहले ही दे दिया है. उन्हें ग्रामीणों से जानना है कि उनके गांव का स्कूल क्यों बंद हुआ था? अगर वे स्कूल खोलने के पक्षधर हैं तो कैसे स्कूल चलेगा यह बताएं. ग्रामीणों से सहमति मिलने के बाद बंद स्कूलों को खोला जायेगा.

जगरनाथ महतो, शिक्षा मंत्री

हर तरफ से उठे थे विरोध के स्वर : स्कूलों के विलय का बच्चों और अभिभावकों ने जोरदार तरीके से विरोध किया था. लगातार प्रदर्शन किये गये. लेकिन राज्य सरकार ने नीतिगत फैसला बताते हुए इस पर ध्यान नहीं दिया. तब की विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल भाजपा के नेताओं ने भी सरकार के फैसले पर एतराज जताया. झारखंड के सभी भाजपा सांसदों ने सरकार से विलय का फैसला वापस लेने को कहा, जबकि झामुमो, कांग्रेस और झाविमो ने आंदोलन का एलान किया. लेकिन चुनाव बाद मामला ठंडा पड़ गया. देख-रेख के अभाव में स्कूल भवन बरबाद होते जा रहे हैं.

Post by : Pritish Sahay

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