मत्स्य पालन से गोमिया के आदिवासी बहुल गांव- टोलों के ग्रामीण बनेंगे आत्मनिर्भर

Jharkhand news, Bokaro news : बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित झुमरा और लुगू की तलहटी स्थित विभिन्न आदिवासी गांव-टोलों के ग्रामीण मत्स्य पालन के जरिये आत्मनिर्भर बनेंगे. गूंज, नई दिल्ली के सहयोग से यह संभव करने का प्रयास किया गया है. असल में कोविड- 19 के इस संकट काल से आर्थिक रूप से कमजोर हुए ग्रामीणों को मत्स्य पालन के जरिये रोजगार से जोड़ कर अच्छा-खासा मुनाफा प्रदान करने की योजना पर गूंज ने पहल शुरू की है. जन सहयोग केंद्र, चुरचू, हजारीबाग द्वारा इस योजना को धरातल पर उतारने का काम किया जा रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2020 4:49 PM

Jharkhand news, Bokaro news : महुआटांड़ (रामदुलार पंडा) : बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित झुमरा और लुगू की तलहटी स्थित विभिन्न आदिवासी गांव-टोलों के ग्रामीण मत्स्य पालन के जरिये आत्मनिर्भर बनेंगे. गूंज, नई दिल्ली के सहयोग से यह संभव करने का प्रयास किया गया है. असल में कोविड- 19 के इस संकट काल से आर्थिक रूप से कमजोर हुए ग्रामीणों को मत्स्य पालन के जरिये रोजगार से जोड़ कर अच्छा-खासा मुनाफा प्रदान करने की योजना पर गूंज ने पहल शुरू की है. जन सहयोग केंद्र, चुरचू, हजारीबाग द्वारा इस योजना को धरातल पर उतारने का काम किया जा रहा है.

उग्रवाद प्रभावित कर्रीखुर्द, लोधी और तुलबुल पंचायत के विभिन्न गांव- टोलों में प्रोटोटाइप योजना अंतर्गत निर्मित कुल 15 तालाबों में मछली का जीरा छोड़ा जा रहा है. इनकी देखरेख के लिए 5-5 लोगों का समूह बनाया गया है. जब मछली तैयार हो जायेगी, तो उसे बेच कर संबंधित लोग अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकेंगे. इन ग्रामीणों को सिर्फ देखरेख करना है. गूंज के अनुदान के रूप में गांव-टोलों में ही श्रमदान करना है.

जन सहयोग केंद्र के सचिव नरेंद्र कुमार महतो उर्फ रंगीला ने बताया कि उक्त योजना को धरातल में उतारने के पीछे गूंज के राज्य प्रभारी सुरेश कुमार का अहम योगदान है. इनके सार्थक प्रयास से ही योजना धरातल पर उतर रही है. उन्होंने स्वयं इन इलाकों में भ्रमण कर रोजगार के अवसर को तलाशा और ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया है.

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प्रत्येक तालाब में 10-10 किलो बीज डाला जा रहा

जन सहयोग केंद्र के सचिव नरेंद्र कुमार महतो ने बताया कि प्रत्येक तालाब में 10-10 किलोग्राम मछली का जीरा डाल रहे हैं. अगर समूह द्वारा समय से इन्हें खिलाया गया, तो 4- 5 क्विंटल मछली तैयार होगी. इस प्रकार वर्तमान दर से बेचने पर 70 से 80 हजार तक की कमाई समूह को होगी. इससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और जीविकोपार्जन में सुलभता आयेगी. कोषाध्यक्ष रीता कुमारी ने कहा कि सिर्फ आय में ही सुधार नहीं होगा, बल्कि कुपोषण जैसी समस्या से भी अनुसूचित जनजाति परिवारों को छुटकारा मिलेगा.

इन तालाबों में डाला जा रहा है मछली का जीरा

बड़कीटांड़ व पेंसरा में 3-3 तालाब, दुधमो, करमु, भेलवापानी, बाराटांड़, बोरवाकोचा, रास्ता टोला व पिंडरा में 2-2 तालाब में मछली का जीरा डाला जा रहा है.

Posted By : Samir ranjan.

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