कैसे समरेश सिंह ने झारखंड नाम रखने के लिए सुशील मोदी को किया मजबूर? इंदर सिंह नामधारी ने साझा की यादें

वनांचल की राजनीति हमलोगों ने साथ-साथ शुरू की थी, लेकिन उत्तर बिहार के भाजपा के स्थापित नेता भी बिहार का बंटवारा नहीं चाहते थे. मैं जब 1988 में बिहार भाजपा का अध्यक्ष निर्वाचित हुआ

By Prabhat Khabar News Desk | December 2, 2022 9:44 AM

झारखंड के पूर्व मंत्री सह बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह (81 वर्ष) का कल सुबह 6:30 बजे बोकारो के सेक्टर 04 स्थित आवास में निधन हो गया. एक दिन पूर्व ही उन्हें रांची के मेदांता से इलाज करा कर घर लाया गया था. समरेश सिंह बोकारो समेत एकीकृत बिहार व झारखंड की राजनीति में दादा के नाम से जाने जाते थे. उनकी राजनीतिक सफर पर झारखंड के पूर्व विधानसभा स्पीकर इंदर सिंह नामधारी ने प्रकाश डाला है. साथ ही झारखंड गठन में उनका क्या योगदान रहा उस पर विस्तार से चर्चा की है.

इंदर सिंह नामधारी

समरेश सिंह और मैं दोनों राजनीति में हमसफर थे. उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत आघात है. हम दोनों ने लगभग साथ-साथ राजनीति में पैर रखे थे, लेकिन वह बोकारो जैसे औद्योगिक इलाके का प्रतिनिधि बने और मैं जंगल-झाड़ियों से घिरे पलामू का. यही कारण था कि वह श्रमिकों की समस्याओं के लिए लड़ते थे और मैं पलामू की आमजनता की समस्याओं से, लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही था.

वनांचल की राजनीति हमलोगों ने साथ-साथ शुरू की थी, लेकिन उत्तर बिहार के भाजपा के स्थापित नेता भी बिहार का बंटवारा नहीं चाहते थे. मैं जब 1988 में बिहार भाजपा का अध्यक्ष निर्वाचित हुआ, तो समरेश सिंह ने वनांचल की मांग को और तीव्र कर दिया. हमलोग चाहते थे कि दक्षिण बिहार के हिस्से को ही वनांचल राज्य बनाया जाये, जबकि झामुमो के नेता मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल व दक्षिण बिहार को मिला कर झारखंड का निर्माण कराना चाहते थे.

भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद मैंने शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो एवं सूरज मंडल जैसे झामुमो के नेताओं से मिल कर प्रस्ताव रखा कि यदि आप लोग केवल दक्षिण बिहार को लेकर झारखंड बनाने के लिए सहमत हों, तो हमलोग मिल कर झारखंड आंदोलन को जोरदार बना सकते हैं. लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया. मैं कभी-कभी सोचता हूं कि यदि झामुमो के हाथों में ही आंदोलन की बागडोर रहती, तो शायद झारखंड का निर्माण एक सपना ही बना रहता.

झामुमो के नेताओं से निराश होकर मैंने 1988 में आगरा में हुए भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में वनांचल अलग राज्य का प्रस्ताव रखा, जिस पर लगभग दो घंटे तक चर्चा हुई. बिहार भाजपा के प्रभारी मुरली मनोहर जोशी ने वनांचल की मांग का पुरजोर समर्थन किया.

और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने घोषणा की कि भाजपा शासन आने पर छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड के साथ-साथ वनांचल का भी निर्माण किया जायेगा. उस समय कौन जानता था कि एक दशक के अंदर ही देश में भाजपा का शासन आ जायेगा. वनांचल का सपना पूरा हुआ और वर्ष 2000 में तीनों नये राज्यों को बनाने की घोषणा कर दी गयी. बिहार विधानसभा में भी वनांचल राज्य के निर्माण का प्रस्ताव केंद्र से भेजा गया, जिसमें राज्य का नाम वनांचल दिया गया था.

झामुमो व छोटानागपुर के अन्य दलों ने वनांचल का विरोध किया और नये राज्य का नाम झारखंड रखने के लिए अड़ गये. बिहार विधानसभा में भाजपा के तत्कालीन नेता विपक्ष सुशील कुमार मोदी ने वनांचल नाम रखने की जिद्द पकड़ ली. मुझे वह दृश्य याद है, जब मैं और समरेश दोनों अड़ गये और सुशील मोदी को झारखंड नाम रखने के लिए मजबूर कर दिया. मुझे दु:ख है कि मेरा हमसफर दुनिया से विदा हो गया, लेकिन उनकी बहादुरी एवं लगन को लंबे समय तक याद किया जायेगा.

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