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समरेश सिंह ने सुझाया था भाजपा को कमल का निशान, पार्टी के रह चुके हैं संस्थापक सदस्य

बोकारो से पांच बार के विधायक रहे समरेश सिंह का राजनीतिक सफर काफी आकर्षक रहा है. संयुक्त बिहार के समय से ही समरेश सिंह दिग्गज राजनेताओं में गिने जाते रहे हैं. इनके व्यक्तित्व को लेकर कई कहानियां हैं जो उनके कुशल नेतृत्व की कहानी बताती हैं.

बोकारो से पांच बार के विधायक रहे समरेश सिंह का राजनीतिक सफर काफी आकर्षक रहा है. संयुक्त बिहार के समय से ही समरेश सिंह दिग्गज राजनेताओं में गिने जाते रहे हैं. इनके व्यक्तित्व को लेकर कई कहानियां हैं जो उनके कुशल नेतृत्व की कहानी बताती हैं. समरेश सिंह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं. भाजपा को कमल का चिन्ह रखने का सुझाव समरेश सिंह ने ही दिया था. आगे चल कर इसी निशान के साथ उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी.

भाजपा के पहले अधिवेशन में सुझाया था नाम

बताते चलें कि बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्य थे. मुंबई में 1980 में आयोजित भाजपा के प्रथम अधिवेशन में कमल का निशान रखने का सुझाव इन्हीं का था, जिसे केंद्रीय नेताओं ने मंजूरी दी थी. दरअसल, समरेश को 1977 के चुनाव में कमल निशान पर ही जीत मिली थी. बाद में समरेश भाजपा से 1985 व 1990 में बोकारो से विधायक निर्वाचित हुए. इससे पहले 1985 में समरेश सिंह ने इंदर सिंह नामधारी के साथ मिलकर भाजपा में विद्रोह कर 13 विधायकों के साथ संपूर्ण क्रांति दल का गठन किया था. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपूर्ण क्रांति दल का विलय भाजपा में कर दिया गया.

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समरेश सिंह की बहुओं की भी राजनीति से कनेक्शन

ऐसा नहीं है कि समरेश सिंह के साथ ही उनका राजनीतिक दौर खत्म हो गया है. उनका परिवार अब भी राजनीति से जुड़ा हुआ है. समरेश सिंह ने तीन बेटे हैं. तीन बेटों में सबसे छोटा बेटा पिता की विरासत संभाले हुए हैं. वे मजदूरों की राजनीति कर रहे हैं. वहीं उनकी दो बहुए भी राजनीति में हैं. छोटी बहू श्वेता सिंह कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ चुकी हैं. जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दूसरी पुत्रवधू डॉक्टर परिंदा सिंह चास नगर निगम और कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं. समरेश सिंह का दूसरा बेटा व्यवसायी है तो बड़ा बेटा राणा प्रताप अमेरिका में रहता है.

कल होगा अंतिम संस्कार

समरेश सिंह का अंतिम संस्कार शुक्रवार सुबह 9 बजे उनके पैतृक गांव चंदनकियारी में किया जाएगा. 12 नवंबर को सांस लेने में तकलीफ हुई थी. इसके बाद उन्हें रांची मेडिका में भर्ती किया गया था. बीते मंगलवार को डॉक्टरों ने उनकी हालत में सुधार होते हुए देख डिस्चार्ज कर दिया था. इसके बाद से वे घर पर ही थे. उन्होंने सुबह तकरीबन 6.30 बजे बोकारो सिटी सेंटर स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली.

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