धनबाद लोकसभा से समरेश सिंह बनना चाहते थे सांसद, कुछ वोटों के अंतर मिली थी शिकस्त
बोकारो के पूर्व विधायक और राज्य में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रहे समरेश सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. बोकारो के सेक्टर चार स्थित आवास में उनका निधन हो गया. उन्होंने बतौर मजदूर नेता राजनीति में प्रवेश किया था. वे निर्दलीय, भाजपा और बाबूलाल की पार्टी जेवीएम से विधायक रह चुके हैं.
Jharkhand Political News : बोकारो के पूर्व विधायक और राज्य में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रहे समरेश सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. बोकारो के सेक्टर चार स्थित आवास में उनका निधन हो गया. उन्होंने बतौर मजदूर नेता राजनीति में प्रवेश किया था. वे निर्दलीय, भाजपा और बाबूलाल की पार्टी जेवीएम से विधायक रह चुके हैं. झारखंड बनने के बाद वह पहली बार राज्य के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बने. समरेश सिंह के निधन पर बोकारो में शोक की लहर है. समरेश सिंह बीमार चल रहे थे और वे दो दिन पूर्व भी इलाज कराकर रांची से लौटे थे.
समरेश सिंह विधायक बने नहीं, बनाये भी हैं
समरेश सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में न केवल विधायक बने हैं, बल्कि विधायक भी बनाये हैं. राज्य के दो अहम नेता समरेश सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं. उनमें बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो और चंदनकियारी के विधायक अमर कुमार बाउरी हैं. समरेश सिंह को अविभाजित बिहार के समय से ही दादा के नाम से जाना जाता रहा है. समरेश सिंह की इच्छा धनबाद लोकसभा से सांसद बनने की थी लेकिन वह कभी पूरी नहीं हो पाई. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के टिकट से भी धनबाद लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन कुछ वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे.
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चास के जोधाडीह मोड़ से शुरू हुई थी राजनीति
समरेश सिंह चंदनकियारी प्रखंड के डेउलटांड गांव के रहने वाले थे. साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले समरेश सिंह ने चास के जोधाडीह मोड़ से राजनीति की शुरुआत की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. विधायक बनने के बाद उन्होंने मजदूरों की राजनीति भी की. बोकारो, धनबाद जमशेदपुर में उन्होंने मजदूरों की लड़ाई भी लड़ी.
परिवार के सदस्यों का है राजनीतिक से नाता
बताते चलें कि उनके तीन बेटे हैं. बड़ा बेटा अमेरिका में रहता है. दूसरा व्यवसायी है. वहीं तीसरा बेटा मजदूरों की राजनीति कर अपने पिता की विरासत संभाल रहे हैं. उनकी दो बहुएं भी राजनीति में हैं. छोटी बहू श्वेता सिंह कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ चुकी हैं. जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दूसरी पुत्रवधू डॉक्टर परिंदा सिंह चास नगर निगम और कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं.
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1995 में भाजपा नहीं दी टिकट तो निर्दलीय लड़े थे चुनाव
वर्ष 1995 में समरेश सिंह ने भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद वर्ष 2000 का चुनाव उन्होंने झारखंड वनांचल कांग्रेस के टिकट पर लड़ा. फिर 2009 में झाविमो के टिकट पर विधायक बने. बाद में भाजपा में शामिल हो गये, लेकिन 2014 में भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर वह निर्दलीय लड़े थे. जिसमें उन्हें हार मिली थी.
समरेश सिंह का सफर
1980 : भाजपा से जुड़े
1985 : बोकारो से विधायक
1990 : बोकारो से विधायक
2000 : झारखंड वनांचल कांग्रेस पार्टी से बोकारो के विधायक
2009 : झाविमो के टिकट पर बोकारो से विधायक
2014 : निर्दलीय लड़े व हारे