बेरमो, महुआटांड़ (राकेश वर्मा, रामदुलार पंडा) : संताली समुदाय के लोग सदियों से प्रकृति की उपासना कर रहे हैं. अपने वजूद के संरक्षण व श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वर्ष 2001 में घांटाबाड़ी की स्थापना की गयी. स्थानीय बुद्धिजीवी संताली बबुली सोरेन व लोबिन मुर्मू ने अपने साथियों के साथ मिलकर झारखंड के कोने-कोने में इसका जबरदस्त प्रचार-प्रसार किया था.
आज आलम ये है कि वर्ष 2001 में जब पहली बार सम्मेलन का आयोजन किया गया था, उस वक्त 30 गुणा 30 के पंडाल में कार्यक्रम संपन्न हुआ था. वर्ष 2019 में जब आयोजन हुआ, तो पंडाल का आकार 600 गुणा 200 का था. देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां अपने गौरवशाली अतीत से रू-ब-रू होने आते हैं. पूरी शिद्दत से लुगुबुरु की पूजा करते हैं. अब इस आयोजन को राजकीय महोत्सव का दर्जा भी प्राप्त हो चुका है.
लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में कार्तिक पूर्णिमा की चांदनी रात में संताली समाज अपने धर्म, भाषा व संस्कृति को मूल रूप में संजोये रखने पर चर्चा करते हैं. विभिन्न परगनाओं से आये धर्मगुरु संतालियों को बताते हैं कि वे प्रकृति के उपासक हैं और लाखों-करोड़ों वर्षों से प्रकृति पर ही उनका संविधान आधारित है. प्रकृति व संताली एक-दूसरे के पूरक हैं. प्रकृति के बीच ही उनका जन्म हुआ, भाषा बनी. उनका धर्म ही प्रकृति पर आधारित है.
लोगों को बताया जाता है कि अपने मूल निवास स्थान यानी प्रकृति की सुरक्षा के प्रति सदैव सजग रहना होगा. तभी हमारा मूल संविधान भी बचा रहेगा और आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में हम अपने अस्तित्व के साथ जुड़े भी रह पायेंगे. पूर्व के वर्षों में जब देश-विदेश से जुटे लाखों लोग एक साथ यहां अपने धर्मगुरुओं की बातों पर अमल करने का प्रण लेते हैं, तो संतालियों की सामूहिकता में जीने की परंपरा और मजबूत होती है.
आज जब विश्व का पर्यावरण संकट से निजात पाने की जद्दोजहद कर रहा है, संताली समुदाय हजारों-लाखों सालों से प्रकृति की उपासना करके यह संदेश दे रहा है कि उनकी समस्त परम्पराओं में विश्व शांति का मंत्र निहित है.
Also Read: दरबार चट्टानी पर लगातार 12 साल की बैठक के बाद तैयार हुआ था संतालियों का संविधान
Posted By : Mithilesh Jha