झारखंड: दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में बेरमो में धनकटनी व महाजनी प्रथा के खिलाफ चला था आंदोलन
बोकारो जिले के अराजू, बेलडीह भस्की में शिबू सोरेन के नेतृत्व में धनकटनी आंदोलन चला था. शिबू सोरेन के साथ वर्षों तक साथ रहे बेरमो के विस्थापित नेता व झामुमो उलगुलान के महासचिव बेनीलाल महतो कहते हैं कि शिबू सोरेन वर्ष 1993 की आर्थिक नाकेबंदी के दौरान एक बार रांची से ट्रक से जैनामोड़ पहुंचे थे.
बेरमो (बोकारो) राकेश वर्मा: दिशोम गुरु शिबू सोरेन का आज (11 जनवरी) जन्मदिन है. 1974 से 1980 के बीच झारखंड केशरी बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर शिबू सोरेन ग्रामीण क्षेत्रों में जोरदार आंदोलन चलाते रहे. इस बीच कई दिनों तक जंगल में ही रात दिन रहे और टुंडी क्षेत्र के जंगल में रहकर पोखरिया में आश्रम बनाया. इसी आश्रम से आदिवासियों को संगठित कर दिकू भगाओ आंदोलन चलाया. आदिवासियों की जमीन वापसी का आंदोलन भी चलाया. बिनोद बिहारी महतो के साथ अक्सर शिबू सोरेन बेरमो, गोमिया. नावाडीह, जरीडीह, पेटरवार, कसमार के इलाके में आया करते थे. नावाडीह प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित ऊपरघाट के गांवों में महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाया था. इस दौरान धनकटनी आंदोलन भी चला था. आंदोलन के क्रम में ही एक महाजन की हत्या हुई थी. जिसमें शिबू सोरेन समेत कई लोगों को आरोपी बनाया गया था.
बोकारो में चला था धनकटनी आंदोलन
बोकारो जिले के अराजू, बेलडीह भस्की में शिबू सोरेन के नेतृत्व में धनकटनी आंदोलन चला था. शिबू सोरेन के साथ वर्षों तक साथ रहे बेरमो के विस्थापित नेता व झामुमो उलगुलान के महासचिव बेनीलाल महतो कहते हैं कि शिबू सोरेन वर्ष 1993 की आर्थिक नाकेबंदी के दौरान एक बार रांची से ट्रक से जैनामोड़ पहुंचे. इसके बाद मोटरसाइकिल से रात तीन बजे तक कई गांवों में जाकर बैठक की और आर्थिक नाकेबंदी को सफल बनाने का आहवान किया. रात में ही सरदार की वेश में मोटरसाइकिल चला कर तथा अपने बॉडीगार्ड को पीछे बैठाकर जामताडा गये. बेनीलाल महतो कहते है कि मोटरसाइकिल से मैं भी उनके साथ गया था.यहां भी कई जगहों पर बैठक करने के बाद मधुपुर स्टेशन से ट्रेन पकड़कर दिल्ली चले गये. केंद्रीय कोयला मंत्री बनने के बाद बेरमो क्षेत्र में कोयला मजदूरों की समस्याओं को लेकर शिबू सोरेन काफी गंभीर रहे. झामुमो के केंद्रीय सदस्य व विस्थापित नेता काशीनाथ केवट कहते हैं कि शिबू सोरेन अक्सर जैनामोड़ कभी पुरानी जीप तो कभी बाइक से आया करते थे. करहरिया गांव निवासी राजबली मियां से उनकी गहरी दोस्ती थी. जैनामोड़ आने के बाद वे राजबली मियां को जरूर बुलाते और दोनो के बीच घंटों हंसी-मजाक चलता था. बेरमो में 1984 में जब विस्थापित आंदोलन शुरू हुआ तो इसके पहले चलकरी में शिबू सोरेन की एक सभा हुई थी. इसमें उन्होंने कहा था कि अगर विस्थापित नेता काशीनाथ केवट को कुछ हुआ तो बेरमो तीन दिन तक चलेगा. मालूम हो कि विस्थापित आंदोलन के समय बेरमो के कुछ नामी-गिरामी लोगों ने श्री केवट को मार कर फेंकने की धमकी दी थी.
जब शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने सिक्के से तौला था
वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव के ठीक छह माह पूर्व स्व. जगरनाथ महतो जब शिबू सोरेन के संपर्क में आये तब वह जामताड़ा जेल में बंद थे. शिबू सोरेन ने तभी उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करते हुए डुमरी विधानसभा सीट से टिकट देने का आश्वासन भी दे दिया था. उस समय स्व. जगरनाथ महतो समता पार्टी में थे और वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव हार गये थे. शिबू सोरेन से आश्वासन मिलते ही जगरनाथ महतो ने डुमरी विधानसभा में एक विशाल सभा की और शिबू सोरेन व उनके बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन की उपस्थिति में झामुमो में शामिल हो गये. पहली बार विधायक बनने के बाद जगरनाथ महतो ने 23 सितंबर 2005 को भंडारीदह में आयोजित बिनोद बिहारी महतो जंयती समारोह में शिबू सोरेन को तराजू में बैठाकर सिक्के से तौला था. इसके बाद से कभी भी डुमरी विधानसभा सीट से जगरनाथ महतो पराजित नहीं हुए.
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ललपनिया क्षेत्र में महाजनी प्रथा के खिलाफ चलाया था जबरदस्त आंदोलन
ललपनिया क्षेत्र में 1970-80 के बीच शिबू सोरेन के नेतृत्व में महाजनी प्रथा के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हु्आ करता था.झामुमो के पूर्व नेता औैर वर्तमान में भाजपा नेता धनीराम मांझी कहते है कि फुटकाडीह बाजारटांड के समीप जारागढा के बीच आंदोलन हुआ था.13 नवंबर 1970 को शिबू सोरेन को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया था.इस आंदोलन में पुलिस की गोली से पेरो मंझियाइन की मौत हुई थी. यहां महाजनों द्वारा कब्जे में की गयी जमीन में धनकटनी पर आमदा ग्रामीणों व पुलिस के बीच संघर्ष हुआ था. आंदोलन शिबू सोरेन के अनुज लालू सोरेन की अगुवाई में हु्आ था. धनीराम के मुताबिक उनकी (जुबेलाइन) गिरफ्तारी पूर्व में ही हो गई थी. जबकि लालू सोरेन पुलिस को चकमा देकर फरार हो गये थे.झारखंड आंदोलन के समय भी इस क्षेत्र में शिबू सोरेन बहुत आते थे. जब कोरोना काल में शिबू कोरोना संक्रमित हुए थे तो गांव में उनकी कुशलता के लिए जाहेर स्थान में मन्नतें मांगी गयी थी.
टीटीपीएस निर्माणकाल में तीन महीने तक चला था आंदोलन
ललपनिया में तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन निर्माण के शुरुआत काल में चार आदिवासी गांवों के विस्थापन की बात सामने आयी थी तो उनके हक की लडाई शिबू सोरेन ने शुरु की थी. 1987-88 में स्थानीय बाबूचंद बास्के (प्रिय मित्र) व जनबल के साथ तीन महीने तक जबरदस्त आंदोलन चलाया था. जब प्लांट बनाने के लिए लोहा भी जोडना मुश्किल हो रहा था तो प्रबंधन व सरकार से बातचीत की पहल की और पांच विस्थापितों के नियोजन व मुआवजा प्रक्रिया शुरु की गयी. इसके बाद श्री शिबू सोरेन यहां आते रहे और विस्थापितों की समस्याओं की समाधान कराने की दिशा में पहल करते रहे.
शिबू सोरेन की पुरानी जीप में रामू मिस्त्री ने लगाया था डीजल इंजन का सेट
फुसरो के चर्चित इंजन मिस्त्री शामू भाई के गैराज में टाटा की सभी गाड़ियां, लोडर, ट्रक, लीलंड, एंबेसडर कार, जीप समेत वाहनों का काम होता था. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पुरानी जीप में शामू मिस्त्री ने ही नया डीजल इंजन सेट लगाया था. इसी जीप से शिबू सोरेन अक्सर बेरमो आया करते थे.