रांची : झारखंड में सात लाख किसानों को बड़ा झटका लगा है. इसके साथ ही प्रदेश में सूखा राहत पर राजनीति शुरू हो गयी है. सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने पूर्ववर्ती भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
वहीं, भाजपा ने इसके लिए हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली झामुमो सरकार को दोषी बताया है. झामुमो नीत सरकार का कहना है कि भाजपा ने समय पर प्रस्ताव नहीं भेजा, तो भाजपा ने कहा कि हेमंत सोरेन की सरकार ने आदर्श आचार संहिता खत्म होने के बावजूद सूखाग्रस्त क्षेत्रों की घोषणा करने में देरी की.
दरअसल, केंद्र सरकार ने झारखंड के सूखा राहत प्रस्ताव को रद्द कर दिया है. फलस्वरूप राज्य के 7 लाख से ज्यादा किसानों को उनकी फसल के नुकसान का मुआवजा नहीं मिलेगा. अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी. अधिकारी ने बताया कि झारखंड के 24 में से 7 जिलों के 55 प्रखंड के किसान इस फैसले से प्रभावित होंगे. इनकी फसल बर्बाद हो गयी थी, लेकिन अब अन्नदाताओं को मुआवजा नहीं मिलेगा.
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अप्रैल, 2020 में झारखंड सरकार ने राज्य के 7 जिलों (बोकारो, चतरा, पाकुड़, देवघर, गिरिडीह, गोड्डा और हजारीबाग) के 55 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित करने का प्रस्ताव कैबिनेट में पास किया. मई के महीने में राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा. राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के संयुक्त सचिव मनीष तिवारी ने रविवार को कहा, ‘हमने केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया था, लेकिन उसने इसे रद्द कर दिया है.’
यह पूछे जाने पर कि अब किसानों को फसल के नुकसान का मुआवजा कैसे मिलेगा, श्री तिवारी ने कहा, ‘आपदा प्रबंधन विभाग किसी को मुआवजा नहीं दे सकता, क्योंकि उसे केंद्र सरकार से इसका फंड मिलता है. यदि हमें केंद्र से फंड ही नहीं मिलेगा, तो हम किसानों को मुआवजा कैसे दे सकते हैं?’
केंद्र सरकार की ओर से प्रस्ताव को रद्द कर दिये जाने के बाद राज्य सरकार भी किसी राहत पैकेज की घोषणा नहीं कर पायेगी, क्योंकि क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित करने का प्रस्ताव ही खारिज हो गया है. इसलिए पैकेज को अंतिम रूप नहीं दिया जा सकेगा.
अधिकारियों ने बताया कि केंद्र ने राज्य सरकार के प्रस्ताव को इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने की प्रक्रिया 31 अक्टूबर, 2019 को ही खत्म हो गयी थी. केंद्र सरकार के नियम के मुताबिक, तीन ऐसे पैमाने हैं, जिसके आधार पर ही राज्य किसी क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर सकता है. ये तीन पैमाने हैं : (1) वर्षा, (2) फसल, रिमोट सेंसिंग, मिट्टी में नमी और हाइड्रोलॉजी और (3) सत्यापन यानी जमीनी हकीकत.
राज्य सरकार से कहा गया था कि वह सभी प्रक्रिया को पूरा करते हुए 31 अक्टूबर, 2019 तक सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने के लिए अपना प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराकर केंद्र सरकार को भेजे. नियमों के मुताबिक, राज्य सरकार को सूखा क्षेत्र घोषित करने के बाद केंद्र सरकार से मदद मांगनी होती है. राज्य सरकार के दावे के आधार पर केंद्र सरकार की एक टीम राज्य का दौरा करती है और सूखे के हालात की जमीनी हकीकत देखने के बाद केंद्रीय मदद की सिफारिश करती है.
सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) अब आरोप लगा रहा है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने समय रहते न तो सूखाग्रस्त क्षेत्रों की घोषणा की, न ही केंद्र से मदद के लिए कोई प्रस्ताव भेजा. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि चूंकि चुनाव का वक्त था, भाजपा सरकार अपनी ब्रांडिंग करने में जुटी थी. किसान उनके लिए मायने नहीं रखते थे. उनकी किसान विरोधी सोच की वजह से अब लाखों किसानों को नुकसान झेलना होगा.
उधर, किसानों के नुकसान के लिए भाजपा ने झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन वाली सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. पार्टी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि सभी जानते हैं कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कोई भी सरकार सूखा राहत का प्रस्ताव केंद्र सरकार को नहीं भेज सकती.
जनवरी, 2020 में जब आचार संहिता खत्म हो गयी, तो वर्तमान सरकार को इसकी पहल करनी चाहिए थी. क्या जनवरी या फरवरी में हेमंत सोरेन सरकार ने यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा? यदि उन्होंने ऐसा किया होता, तो आज किसानों को नुकसान नहीं झेलना होता.
रामगढ़ के किसान कहते हैं कि पिछले साल अगस्त-सितंबर में हमारी फसल बर्बाद हो गयी. लेकिन, सरकार ने अप्रैल, 2020 में केंद्र सरकार को मदद का प्रस्ताव भेजा. हमारी फसल को हुए नुकसान के मुआवजे की हमने उम्मीद ही नहीं पाली थी. हमने धान की खेती की थी, लेकिन पर्याप्त वर्षा नहीं होने की वजह से मेरी पूरी फसल बर्बाद हो गयी. एक तो राज्य सरकार ने देरी से प्रस्ताव भेजा, अब केंद्र ने उसे रद्द भी कर दिया. ऐसे में हमारी सुनने वाला कोई नहीं है.
Posted By : Mithilesh Jha