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सादगी और जुझारूपन पहचान थी जगरनाथ महतो की पहचान

सादगी और जुझारूपन पहचान थी जगरनाथ महतो की पहचान

बेरमो. गांव की कुल्ही से निकल कर विधानसभा तक का सफर तय करने वाले राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की पहली पुुण्यतिथि शनिवार को है. 80 के दशक में झामुमो के एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने राजनीति शुरू की थी. डुमरी विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1977 से 2000 तक विधायक रहे लालचंद महतो व शिवा महतो के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ कर वह वर्ष 2005 में पहली बार विधायक बने थे. पहले झामुमो विधायक शिवा महतो के सेकेंड मैन के रूप में जगरनाथ महतो चर्चित थे. 90 के दशक में भंडारीदह में रिफैक्ट्रीज प्लांट में फायर क्ले की ट्रांसपोर्टिंग में घालमेल को उजागर कर पहली बार चर्चा में आये. तब दबंग ट्रांसपोर्टरों के इशारे पर उनके साथ मारपीट हुई. पुलिस प्रताड़ना का भी उन्हें शिकार होना पड़ा. तीन-चार दिनों तक वे लापता रहे. जिला प्रशासन ने उस वक्त उन पर सीसीएल एक्ट लगाकर जेल भेजने का प्रयास किया. गिरिडीह के तत्कालीन सांसद राजकिशोर महतो ने प्रशासन से कहा कि या तो जगरनाथ महतो को जेल भेजे या कोर्ट में हाजिर करें. इसके बाद जाकर मामला ठंडा पड़ा था. डुमरी, नावाडीह क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ इससे सटे बेरमो कोयलांचल में भी संगठित व असंगठित मजदूरों सहित विस्थापितों के आंदोलनों में भी वह सक्रिय रहे. कभी अहले सुबह लालटेन लेकर बच्चों के घर जाकर उन्हें जगा कर पढ़ने के लिए प्रेरित करते तो कभी खुद विद्यालय में बच्चों के साथ छात्र बन कर पढ़ाई करते. कभी जमीन पर बैठ कर मुर्गा लड़ाई देखना, किसी कार्यक्रम में खुद मुखौटा पहन कर छउ नृत्य करना, भोक्ता पर्व में डेढ़ सौ फीट ऊंचे खंभे में झूलना, जंगली इलाके के दौर में पेड़ पर चढ़ कर भेलवा फल तोड़ कर खाना उनकी सादगी और जमीन से जुड़ा होने का प्रमाण था. सादगी और जुझारूपन उनकी पहचान थी. झारखंड अलग राज्य आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रहती थी. विधानसभा में पारा शिक्षकों के मामले व स्थानीयता के मुद्दे पर मुखर आवाज थे. सीएनटी एसपीटी एक्ट, स्थानीय नीति, पारा शिक्षकों व आंगनबाड़ी सेविका व सहायिका के मामले को विधानसभा में पुरजोर ढंग से समय-समय पर उठाते रहे. बेहतरीन फुटबॉलर के साथ-साथ खेल प्रेमी भी थे जगरनाथ महतो बेहतरीन फुटबॉलर और खेल प्रेमी भी थे. कोरोना की चपेट में आने से पूर्व वर्ष 2020 के पहले तक रोजाना एक घंटा मॉर्निंग वॉक के बाद अपने पैतृक गांव अलारगो के सिमरकुल्ही के मैदान में ग्रामीणों के साथ फुटबॉल भी खेलते थे. इस दौरान उनसे मिलने आने वाले ग्रामीणों की समस्या भी सुनते थे. अपने गांव सिमरकुल्ही और गटगड़ा में फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन भी करते थे. खेल के अलावा उनका खेती से भी लगाव था. 35 वर्षों का था राजनीतिक सफर वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव के ठीक छह माह पूर्व जगरनाथ महतो डुमरी में एक विशाल सभा आयोजित कर शिबू सोरेन व उनके बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन की उपस्थिति में झामुमो में शामिल हुए थे. तब दुर्गा सोरेन ने ही इन्हें पार्टी में लाने की प्रारंभिक पहल की थी. पार्टी में लगभग 17 सालों का सफर तय करने के बाद हेमंत सरकार में शिक्षा मंत्री बने थे. वर्ष 1985 के दौर में अपने क्षेत्र व आसपास के गांवों की समस्याओं को लेकर पहल की थी. अलारगो, तारमी, तुरिया, नर्रा, तारानारी पंचायत के गांव में बिजली लाने के लिए ग्रामीणों के सहयोग से स्वयं बिजली के खंभों को लाकर गाड़ने का काम शुरू किया था. इसके बाद 1990 के दशक में बिनोद बिहारी महतो व शिवा महतो का इन्हें सान्निध्य मिला. फिर इन्होंने सीसीएल तारमी, कल्याणी, बीआरएल भंडारीदह के मजदूरों के शोषण व विस्थापितों के हक को लेकर आवाज उठाना शुरू किया. मजदूर विस्थापितों को लड़ाई में इनका काफी साथ मिला. इसी दौरान अलग झारखंड आंदोलन की मांग भी तेज हो रही थी. इस आंदोलन में भी वह कूद पड़े. कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा. अलग झारखंड राज्य के आंदोलन के दौरान एक दर्जन से अधिक मुकदमे इन पर दर्ज हुए. फिर भी कभी हार नहीं मानी. 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग को लेकर भी किए गए आंदोलन के कारण भी उन्हें तीन माह से अधिक समय तक तेनुघाट जेल में गुजरना पड़ा था. अंततः इस मामले में कोर्ट द्वारा उन्हें रिहा कर दिया गया था.

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