बेरमो/जारंगडीह/गोमिया . नवरात्र को लेकर बेरमो कोयलांचल का माहौल भक्तिमय हो गया है. सार्वजनिक दुर्गा मंडपों में बुधवार को सप्तमी के दिन मां दुर्गा का पट खोल दिया जायेगा. इसी दिन कई पूजा पंडालों का उद्घाटन भी होगा. जारंगडीह और गोमिया के आइइएल में पंडाल का उद्घाटन मंगलवार को किया गया. गुरुवार को महाअष्टमी की पूजा होगी. मंगलवार को नवरात्र के छठे दिन मां मां कात्यायनी की पूजा की गयी. पूजा पंडालों में बुधवार की सुबह बेलवरण की पूजा होगी. साथ ही नवपत्रिका स्नान एवं जलयात्रा सहित शाम में देवी का बोधन-आमंत्रण व अधिवास होगा. ढोल-ढाक के साथ कोलाबाऊ की भी पूजा होगी. जारंगडीह में सीसीएल कथारा महाप्रबंधक संजय कुमार तथा बोकारो थर्मल थाना प्रभारी सह इंस्पेक्टर शैलेन्द्र कुमार ने उद्घाटन किया. इसके बाद भजन संध्या का आयोजन हुआ. संदीप यादव ने जय हो गणेश.. गीत के साथ कार्यक्रम शुरू किया. बरकाकाना की गायिका खुशबू कुमारी ने भी किसने सजाया तुमको मैया बड़ी प्यारी लागे… समेत कई गीत गाये. मौके पर श्रमिक नेता वरुण कुमार सिंह, विल्सन फ्रांसिस, सचिन कुमार सहित कई लोग भी मौजूद थे. गोमिया के आइइएल में पंडाल का उद्घाटन आइइएल गोमिया के प्रोजेक्ट मैनेजर आशीष सिंह ने किया. कंपनी के एचआर मैनेजर सह पूजा कमेटी के अध्यक्ष रौशन सिन्हा, कंपनी के मुकेश झा, सचिव संतोष कुमार, कोषाध्यक्ष राजेश शर्मा, पंकज कुमार, पंकज पांडेय, मनोज सिंह आदि उपस्थित थे. यहां अयोध्या के राम मंदिर के थीम पर पंडाल बनाया गया है. पट खुलते ही पूजा व दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग गया. यहां छह दिनों का मेला भी लगा है. विजयादशमी की शाम को आइइएल फुटबॉल मैदान में रावण दहन किया जायेगा.
एशो मां आनंदमयी, एई दीनेर कुटीरे…
करगली गेट, संडे बाजार बड़ा क्वार्टर व छोटा क्वार्टर, कुरपनिया, गांधीनगर, जारंगडीह, कथारा, बोकारो वर्मल, चंद्रपुरा व नावाडीह में कई जगह दुर्गा पूजा शुरू कराने में बंगाली समुदाय के लोगों का अहम योगदान रहा है. इन जगहों की पूजा में पुजारी व ढोल-ढाक सहित मूर्तिकार भी बंगाल से आते हैं. यह परंपरा आज भी कायम है. अगर हम खास बंगाल की बात करे तो वहां पूरी तरह से वैष्णवी पूजा होती है, लेकिन पश्चिम बंगाल से सटे धनबाद, कतरास आदि इलाकों में बकरे की बलि देने की प्रथा है.जहां बंगाली विधि से पूजा होती है, वहां षष्ठी के दिन से पूजा शुरू होती है. षष्ठी के दिन शाम में अधिवास पूजा की जाती है. इसमें एक सूप में शृंगार का सामान लेकर सुहागिनें मां का अधिवास करती हैं. अधिवास के साथ मां का पट दर्शन के लिए खोल दिया जाता है. कई जगह षष्ठी और कई जगह सप्तमी को मंडप के बगल में बेल पेड़ के नीचे बेलवरण पूजा की जाती है. इस पूजा के माध्यम से मां को आने का न्यौता दिया जाता है. बंग समाज मां से कहता है ”ऐसो मां आनंदमयी एई दीनेर कुटीरे… ”(मां आपको आह्वान करते हैं कि आप गरीब की कुटिया में आइये). इसके बाद बेलगाछ में कपड़ा लपेट कर ढोल-ढाक के साथ नदी, तालाब या पोखर में पूजा की जाती है. इसे कोलाबाऊ पूजा कहते हैं. सप्तमी की पूजा के बाद पुष्पांजलि होती है. शाम को आरती होती है. आरती के बाद चूड़ा व दही (कहीं-कहीं खीर) का शीतल भोग लगाया जाता है. महाअष्टमी की पुष्पांजलि का विशेष महत्व है. इस दिन बंग समाज से जुड़े महिला व पुरुष दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं. अष्टमी खत्म होने व नवमी प्रारंभ होने के साथ मां के चरणों में चालकुम्हड़ा (कोहड़ा) और ईख की बलि दी जाती है. कुछ स्थानों पर बकरे की भी बलि दी जाती है. नवमी के दिन दोपहर में हवन होता है. इसके बाद आरती होती है. इसके बाद पूर्णाहुति होती है. रात में आरती के बाद शीतल भोग लगाया जाता है. दशमी के दिन मां को विदाई दी जाती है. सुहागिनें सिंदूर खेला करती हैं और उल्लूक ध्वनि निकालते हुए शंख बजाती हैं.
श्रद्धा से दुर्गा पूजा करता है बंग समाज : कोयलांचल में बंग समाज के लोग वर्षों से मां दुर्गा की पूजा उमंग और श्रद्धा के साथ करते आ रहे हैं. करगली स्थित नौवाखाली पाड़ा में करीब 66 वर्षों से बंग समाज के लोग पूजा कर रहे हैं.दशमी को बनता है गुड़ का लड्डू : दुर्गा पूजा में हर बंगाली परिवार के घर में आम का पल्लव व शुभ चिह्न के रूप में सिंदूर लगाया जाता है. नवमी व दशमी के दिन नारियल व गुड़ का लड्डू जरूर बनाते हैं. दशमी के दिन मछली खाने की प्रथा है.
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