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बंगाली कारीगरों की गढ़ी मूर्तियों की रहती है मांग

छह महीने तक अपने परिवार से दूर रहकर मूर्ति निर्माण कर परिवार का करते हैं भरण पोषण

ब्रह्मदेव दुबे, पिंड्राजोरा, परिवार के भरण पोषण को लेकर साल में छह महीने अपने घर से दूर रहकर शिल्पकार मूर्ति बनाते हैं. फरवरी से लेकर जुलाई माह तक मूर्ति बनाने के लिए पश्चिम बंगाल के शिल्पकार अपने घर परिवार से दूर बोकारो काम करने प्रत्येक वर्ष आते हैं. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर किराये में घर लेकर मूर्ति बनाकर अपना परिवार को पैसा भेजते हैं. पश्चिम बंगाल के डिमडीहा गांव निवासी मूर्तिकार विजय सूत्रधार, पुत्र गोपाल सूत्रधर,चांडी सूत्रधर व भांजा केवल मूर्ति की कारीगरी कर बेचते हैं. विजय सूत्रधर चास प्रखंड के बहादुरपुर मोड़ पर शिव मंदिर के समक्ष किराये में घर लेकर अपने दोनों पुत्र व भांजे के साथ माता सरस्वती, मां दुर्गा काली सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति निर्माण कर बेचते हैं . विजय को विरासत में यह कला मिली है. श्री सूत्रधर ने बताया कि अगर बंगाल सरकार से हमें कला के माध्यम से रोजगार का साधन मिल जाता तो छह महीने तक अपने परिवार से दूर बाहर नहीं रहना पड़ता. छह महीने तक हम अपने पूरे परिवार से बाहर रहकर कमाई तो कर लेते हैं, लेकिन परिवार की हर पल हर समय याद आती है. विरासत में मिली इस कला की माध्यम से दोनों पुत्र व भांजे के साथ अच्छी कमाई कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. विजय बताते हैं कि चाकुलिया गांव में नव दिवसीय अखंड हरि नाम संकीर्तन में 26 मूर्तियों का निर्माण इन्हीं द्वारा ही किया जाता है.

मेहनत के अनुरूप नहीं होती कमाई

विजय सूत्रधर ने बताया कि जिस प्रकार मेहनत करते हैं और अपने परिवार से दूर रहते हैं. उस प्रकार की कमाई नहीं हो पाती है. छह महीने में लगभग पांच लाख की कमाई होती है, जिसमें से आधा पैसा यही खर्च हो जाता है. बताया कि बिचाली, पटरा, खूटी, रस्सी, कपड़ा से पहले किसी भी मूर्ति का ढांचा को तैयार किया जाता है. इसके बाद कच्ची मिट्टी से लेप लगाकर मूर्ति को तैयार किया जाता है. मिट्टी सूखने के बाद पेंटिंग कर मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है.

ग्रामीणों ने की कलाकारी की प्रशंसा

क्षेत्र के सुधीर कुमार सिंह, अधिवक्ता भूदेव चंद्र सिंह, पानू गोराई, गिरिजा मोहन सिंह, परीक्षित सिंह, इंद्रजीत सिंह, संतोष सिंह सहित आदि ग्रामीणों ने बताया कि विजय बहुत अच्छी तरह से मूर्ति की कलाकारी करते हैं. इसलिए ही मूर्ति निर्माण के लिए इन्हें ही बुलाया जाता है .

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