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बोकारो में हाथियों के आतंक से दहशत में लोग, पारंपरिक रास्ता बंद होने से भटक रहे हैं हाथी

झारखंड में हाथियों के लिए चार कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन इससे 400 गांवों के प्रभावित होने का अनुमान है. यह बन जाये तो चीजें सुधरेंगी. यह बन जाये तो चीजें सुधरेंगी. झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व दक्षिणी पश्चिम बंगाल के 21 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगली हाथियों का विचरण क्षेत्र है.

बोकारो, सीपी सिंह : जंगल से निकलकर खेत-खलिहान होते जंगली हाथियों का झुंड शहर की ओर आ गया है. बोकारो जिले के फुसरो नगर परिषद क्षेत्र के सुभाष नगर, बोकारो थर्मल आवासीय कॉलोनी, सीसीएल गोविंदपुर परियोजना बी टाइप व आसपास के क्षेत्र में 32 की संख्या में हाथी उत्पात मचा रहे हैं. यह झुंड जिस रास्ते गुजर रहा है, वहां खौफ का माहौल बन जा रहा है. लाख प्रयास के बाद भी वन विभाग व जिला प्रशासन इस पर नियंत्रण में विफल है. यह सिर्फ इस साल की कहानी नहीं, बल्कि पिछले कुछ दशक से जंगली हाथियों का यह भय बोकारो जिले में देखने को मिल रहा है. गोमिया, नावाडीह, पेटरवार व बेरमो-जरीडीह प्रखंड के कुछ हिस्से इससे हर साल प्रभावित हो रहे हैं. आखिर जंगल से निकल कर इंसानों की बस्ती में क्यों भटक रहे हैं ये बेजुबान, इसके पीछे क्या है कारण.

हाथियों के लिए चार कॉरिडोर बनाने का है प्रस्ताव

जानकारों की मानें, तो झारखंड में हाथियों के लिए चार कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन इससे 400 गांवों के प्रभावित होने का अनुमान है. यह बन जाये तो चीजें सुधरेंगी. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व दक्षिणी पश्चिम बंगाल के 21 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगली हाथियों का विचरण क्षेत्र है.

हाथी इंसानों की बस्ती में नहीं, इंसान हाथियों के घर पहुंचा

बोकारो के डीएफओ रजनीश कुमार की मानें, तो हाथी सालों-साल एक ही रास्ता से आते-जाते हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में खनन समेत सड़क निर्माण अन्य विकास का काम हो रहा है. इससे पारंपरिक रास्ता बंद हुआ है. रास्ता बंद होने के कारण हाथी रास्ता भटकते हैं और इंसानों की बस्ती में आ जाते हैं. ऐसा भी कहा जा सकता है कि हाथी इंसानी बस्ती में नहीं आ रहे हैं, बल्कि इंसान ही हाथियों के रास्ता में घर व विकास के जरिये पहुंच गये हैं. यह प्रक्रिया सालों से चली आ रही है.

कॉरिडोर बन जाने से कम होगा भटकाव : डीएफओ

डीएफओ रजनीश कुमार ने बताया पिछले दिनों फिर से सर्वे किया गया है. कुछ अन्य सुझाव को भी रूट निर्माण में शामिल किया गया है. उम्मीद जतायी जा रही है कि जल्द ही इस दिशा में काम शुरू होने की संभावना है. हाथी कॉरिडोर बन जाने से हाथियों का भटकाव कम होगा. हाथियों के भटकने से रोकने के लिए वन विभाग एक साथ कई योजना पर काम कर रही है. जंगल को संघन करने से लेकर जंगल में ही हाथियों के खाद्य पदार्थ की उपलब्धता कराये जाने की तैयारी रही है. झारखंड में बांस व पीपल का पेड़ लगाया जायेगा, ताकि हाथियों को जंगल में ही पर्याप्त भोजन मिल सके.

विचरण का एक निश्चित मार्ग

दामोदर बचाओ अभियान के गुलाब चंद्र के अुनसार हाथियों के विचरण का एक निश्चित मार्ग होता है. मौसम के अनुसार इसी निश्चित रास्ता से हाथी विभिन्न क्षेत्र का दौरा करते हैं. बोकारो जिले में हाथियों के तीन पारंपरिक रूट हैं. हाथियों की याददाश्त बहुत होती है. इस वजह से इसी के सहारे वो पुराने रास्ते से विचरण करते हैं. जुलाई से सितंबर माह के बीच हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय रास्ता भटकने पर वो ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं. ये सालों तक अपना रास्ता याद रखते हैं. श्री चंद्र के अनुसार इस बार देखा गया कि हाथी पुराने रास्ते को तलाश रहे थे. रास्ता मिलते ही वह शांति से चले गये.

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जानें कौन से हैं तीन रूट और क्या है दिक्कत

झारखंड के इस इलाके में हाथियों के विचरण के मुख्यत: तीन रूट हैं. इनमें से एक चतरा से लातेहार होते हुए दलमा, दूसरा हजारीबाग से घाटो, गोला, सिल्ली होते हुए दलमा क्षेत्र और हजारीबाग से गिरिडीह, भंडारीदरह, पुरूलिया होते हुए दलमा क्षेत्र. इनमें से खनन के कारण भंडारीदह वाला रूट लगभग बंद हो गया है. इसी कारण बोकारो जिले के नावाडीह, बोकारो थर्मल व अन्य क्षेत्र में हाथियों का उत्पात होता है. हजारीबाग से गोला-सिल्ली व दलमा वाले रूट में नेशनल हाइवे व खनन के कारण हाथी का रास्ता प्रभावित हुआ है. चतरा से दलमा वाले रूट में जंगल की सघनता कम हुई है. इस कारण हाथी अब उन इलाकों के गांवों में भी भटक कर आ रहे हैं, जहां कुछ साल पहले तक नहीं आते थे. इस बार हजारीबाग से दलमा वाले रूट में भटकाव हुआ है.

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