चक्रधरपुर. चक्रधरपुर में कैथोलिक चर्च की नींव 120 साल पहले पड़ी थी. फादर मुलैंडर एसजे के सपने को साकार करने के लिए एम गोथोलस ने वर्ष 1892 में तीन एकड़ जमीन खरीदी थी. वर्तमान में इसी जमीन पर कैथोलिक चर्च लोगों के बीच यीशु के प्रेम, त्याग और दया का संदेश बांट रहा है. 1887 से ही चक्रधरपुर में बसे कैथोलिक ईसाई प्रभु यीशु की प्रेम ज्योति से आलोकित हो रहे हैं. 1888-89 में फादर मुलैंडर एसजे बंगाल-नागपुर रेलवे के प्रथम पुरोहित बने. उन्हें रेलकर्मियों के आत्मिक उत्थान की जिम्मेदारी सौंपी गयी. फादर को अपने बीच आत्मिक सहायक व अगुवा के रूप में पाकर लोग इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें एक बंगला दान में दे दिया. 1890 में फादर मुलैंडर एसजे बंदगांव से चक्रधरपुर आ गये. वे चक्रधरपुर में एक गिरजाघर बनाने का सपना देख रहे थे. 1891 में बीमार होने के कारण फादर मुलैंडर को कोलकाता लौटना पड़ा. वहां डाक्टरों के परामर्श पर वे यूरोप लौट गये. हालांकि रास्ते में ही उनका कोलंबो में निधन हो गया. इधर, चक्रधरपुर में गिरजाघर बनाने के लिए मोनसिनार गोथोलस ने 1892 में तीन एकड़ जमीन ली. वर्तमान में इसी जमीन पर गिरजाघर की भव्य इमारत खड़ी है.
1892 में कैथोलिक विश्वासियों की संख्या मात्र 205 थी
चक्रधरपुर में वर्ष 1892 में कैथोलिक विश्वासियों की संख्या मात्र 205 थी. असुविधा के कारण 1902 से 1940 तक पुरोहित चाईबासा से आकर चक्रधरपुर के विश्वासियों को सुसमाचार सुनाते थे. मिस्सा पूजा और प्रार्थना सभा रेलवे स्कूल या रेलवे इन्स्टीट्यूट में हुआ करती थी. गिरजाघर के निर्माण के लिए फादर निओ डिजारडिन एसजे, बीडी मेलो, एस डीसिल्वा व डुल्लिन्द ने हाउजी, व्होट्स आदि खेलों का आयोजन किया. 1941 में गिरजाघर का निर्माण पूरा हुआ. इसी साल पुरोहितों के लिए रहने का आवास का भी निर्माण हुआ. 1951 में फादर डिजारिडन स्थायी रूप से चक्रधरपुर में रहने के लिए आ गये. 1953 में उनका देहांत हो गया. 1953 में फादर निजओ फादर डिजारडिन के अधूरे कार्य को पूर्ण करने चक्रधरपुर पहुंचे. इनके कार्यकाल में पल्ली विद्यालय शुरू करने की पहल हुई. पेरिश गायक दल का गठन हुआ. 1956 में फादर फ्रैंक मैकगोली ने पेरिस के लोगों के लिए गोरेटो का निर्माण कराया. वे विशेषकर बॉक्सिंग के जरिये युवाओं का दिल जीतने लगे. फादर मैकगोली ही तमाम आदिवासियों को ईसाई धर्म ग्रहण कराया था.
क्रिसमस ईसाईयों का सबसे बड़ा त्योहार : फादर एस पुथुमय राज
दुनियाभर के लोग हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं. ये ईसाईयों का सबसे बड़ा त्योहार है. इसी दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं. इस दिन चर्च को खासतौर से सजाया जाता है. क्रिसमस के पहली रात में गिरजाघरों में प्रार्थना सभा की जाती है, जो रात के 12:00 बजे तक चलती है.शांति का संदेश देता है क्रिसमस : फादर पोलुस बोदरा
क्रिसमस शांति का संदेश लाता है. पवित्र शास्त्र में ईसा को शांति का राजकुमार कहा गया है. ईसा हमेशा अभिवादन के रूप में कहते थे कि शांति तुम्हारे साथ हो, शांति के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है. घृणा, संघर्ष, हिंसा और युद्ध का धर्म को इस धर्म में कोई जगह नहीं दी गयी है. शायद यही वजह है कि क्रिसमस किसी एक देश या राष्ट्र में नहीं, बल्कि दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है