Jharkhand News: सारंडा में बंजर खेतों में लेमनग्रास की खेती से संवरने लगी है जिंदगी

झारखंड के नक्सल प्रभावित सारंडा के किसान आमदनी बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से इतर नये प्रयोग की तरफ बढ़ रहे हैं. इसे लेकर क्षेत्र में लेमनग्रास (नींबू गास) की खेती की जा रही है. लेमनग्रास की खेती सूखा प्रभावित इलाकों में की जा सकती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2020 1:32 PM
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किरीबुरू (शैलेश सिंह) : झारखंड के नक्सल प्रभावित सारंडा के किसान आमदनी बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से इतर नये प्रयोग की तरफ बढ़ रहे हैं. इसे लेकर क्षेत्र में लेमनग्रास (नींबू गास) की खेती की जा रही है. लेमनग्रास की खेती सूखा प्रभावित इलाकों में की जा सकती है.

सारंडा की गंगदा पंचायत अंतर्गत दुइया गांव निवासी किसान सह अखिल झारखंड श्रमिक संघ के कोल्हान प्रभारी राजू सांडिल ने लुटीबेड़ा जंगल क्षेत्र स्थित अपनी 10 एकड़ भूमि पर लेमन ग्रास के पौधे लगाये हैं. इस पौधे से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है. इसका उपयोग कॉस्मेटिक्स, साबुन, तेल, दवा आदि बनाने में होता है.

राजू सांडिल ने बताया कि उक्त भूमि पर कोई फसल होती नहीं थी. अब हरे-भरे खेत बन गये हैं. राजू ने बताया कि सेल के पूर्व उच्च अधिकारी ने बातचीत के क्रम में लेमन ग्रास की खेती का सुझाव दिया. इसका पौधा उपलब्ध कराने की बात कही. उसके बाद ट्रैक्टर से जुताई कर झाड़ियों को हटाया गया.

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लेमन ग्रास के एक लाख पौधे मंगाकर 10 एकड़ भूमि पर लगाये गये. उक्त खेत कोयना नदी तट पर है. मोटर से आसानी से खेत को पटाया जाता है. लेमन ग्रास की खेती में प्रारम्भ में मेहनत और पैसा लगता है. बाद में खर्च व मेहनत नहीं के बराबर है. इस पौधा को जानवर भी नहीं खाते व कीड़ा आदि नहीं लगता है.

बिनुआ के किसान ने लगाये 22 हजार पौधे

राजू सांडिल ने बताया कि एक लीटर लेमन ग्रास के तेल की कीमत बाजार में 12-1400 रुपये है. इसकी मांग काफी है. फसल तैयार होने से पूर्व लेमन ग्रास से तेल निकालने की मशीन लगायी जायेगी. एक साल में पांच-छह बार फसल काटी जाती है. इस खेती से 12-15 ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा. लेमन ग्रास की खेती चिरिया पंचायत के बिनुआ गांव निवासी अमर सिंह सिधू कर रहे हैं. उन्होंने अपने खेत में लेमन ग्रास के करीब 22 हजार पौधे लगाये हैं.

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कोयना नदी किनारे आलू उपजा रहे किसान

दुइया गांव के किसान राजू सांडिल, पूर्व मुखिया दुःशासन चेरोवा आदि कोयना नदी तट पर आलू की खेती कर रहे हैं. उक्त खेत की मिट्टी आलू की खेती के लिये बेहतर है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार कारो-कोयना नदी के किनारे लिफ्ट एरिगेशन की सुविधा उपलब्ध करा देती तो हजारों एकड़ बंजर भूमि पर सालों भर खेती प्रारम्भ होती. इससे सारंडा के किसान आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर व स्वावलम्बी होते. खेती से बेरोजगारी दूर हो जाती.

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Posted By : Mithilesh Jha

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