-ड्राइवर की बातों से प्रेरणा लेकर पूजा शुरू हुई थी
जैंतगढ़.
जैंतगढ़ में मां दुर्गा देवी समिति आजादी के पूर्व से दुर्गा पूजा करती आ रही है. यहां उस समय पूजा शुरू की गयी, जब चाईबासा और चक्रधरपुर जैसे शहरों को छोड़ कर जिले में कहीं भी दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं किया जाता था. जैंतगढ़ में दुर्गा पूजा शुरू करने की कहानी बड़ी रोचक है. वर्ष 1934 की कहानी है, भंगा पुलिया चौक में क्षेत्र के पांच मित्रों की मंडली तत्कालीन मुंडा, निशा रत्न राठौर, मुरुली बेहरा, लाल चंद नायक, घनश्याम बेहरा और रघुनाथ बेहरा सुबह चाय पी रहे थे. उसी समय क्योंझर की ओर से एक ट्रक आकर रुका. जिसके चालक एक सरदार थे. सरदार जी ने चाय पी रहे पांच मित्रों से बातें की. सरदार जी ने कहा, आप लोग पवित्र वैतरणी की तट पर हो, पूरे भारत में दुर्गा पूजा हो रही है. आप भी यहां दुर्गा पूजा शुरू करें. चालक ने कहा आपलोग पहल करें, मां के आशीर्वाद से सब ठीक हो जायेगा. इतना कहने के बाद उस ट्रक चालक ने कुछ पैसे उनके हाथ में रख दिये. चालक के जाने के बाद पांचों ने दृढ़ संकल्प लिया कि अब हर हाल में पूजा करनी है.पहली बार तिरपाल टांग कर हुई थी पूजा
इधर, चालक के जाने के बाद अगले दिन ढिंढोरा देकर आसपास के गांव के लोगों की मीटिंग बुलायी गयी. लोगों ने दुर्गा पूजा करने का संकल्प लिया. फिर एक टीम बना कर लोगों ने साइकिल से ही दूर-दराज चाईबासा, चक्रधरपुर, झींकपानी, जोड़ा, बड़बिल, क्योंझर आदि क्षेत्रों से चंदा जमा किया. फिर पहली बार तिरपाल टांग कर, बैगुना की झाड़ी से घेराव करके पेट्रोमेक्स के प्रकाश में पूजा शुरू की.1964 में ग्रामीण मुंडा ने भूमि दान की, फिर मंदिर बना
पूजा के दौरान स्थानीय कलाकारों ने लोगो के मनोरंजन के लिए खुद अभिनय किया.ओड़िया में ओपेरा किया. आस पास से भीड़ उमड़ पड़ी. तब से पूजा होती आ रही है. वर्ष 1964 में ग्रामीण मुंडा ने पहल कर मंदिर के लिए जमीन दान दी व एक सुंदर दुर्गा मंदिर का निर्माण हुआ.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है