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Chaibasa News : विष्णु के 10 अवतार के बीच 16 फीट की मूर्ति होगी आकर्षण

चाईबासा. शहर में छोटे-बड़े कुल 500 स्थानों पर सरस्वती पूजन की चल रही तैयारी

चाईबासा. शहर में छोटे-बड़े कुल 500 स्थानों पर सरस्वती पूजन की चल रही तैयारीचाईबासा.वसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) विद्यार्थियों के लिए महापर्व है. स्कूल, कॉलेज, गली- मोहल्ला व घर-घर में सरस्वती पूजा की धूम रहती है. विद्या की देवी की आराधना को लेकर विद्यार्थियों में खासा उत्साह रहता है. चाईबासा शहर में छोटे-बड़े पंडालों को मिलाकर लगभग 500 स्थानों पर मां सरस्वती की पूजा धूमधाम से होती है. अब एक सप्ताह बचा है. ऐसे में मूर्तिकार मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. शहर की कुम्हार टोली में 2 फीट से 16 फीट ऊंची मूर्तियां बन रही हैं, जो अलग-अलग अनुरूप में हैं. मूर्तिकारों ने पूजा करने वाले के इच्छानुसार डिजाइन व अनूठी मूर्ति का अंतिम रूप दे रहे हैं. मूर्तियों की लागत 2 हजार रुपये से लगभग 20-25 हजार रुपये तक है.

पुलहातु के बजरंगबली मंदिर समिति ने ऑर्डर दिया

कुम्हार टोली के मूर्तिकार रमेश प्रजापति की देखरेख में शहर की सबसे बड़ी 16 फीट की मूर्ति बनायी जा रही है. इसमें भगवान विष्णु के सभी 10 अवतारों को दर्शाया गया है. मूर्ति के बायीं ओर गरुड़ और दायीं ओर हनुमान जी की 4- 4 फीट की दो छोटी मूर्ति बनायी जा रही है. माता के हाथ में वीणा है. इसकी कीमत 35 हजार रुपये बतायी गयी है. कमल के पुष्प पर मां खड़े मुद्रा में विराजमान रहेंगी. पुलहातु के बजरंगबली मंदिर समिति ने ऑर्डर दिया है.

कुम्हार टोली के 10 परिवार कई पीढ़ियों से बना रहा मूर्तियां

कुम्हार टोली के 10 परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्ति बना रहा है. वर्तमान में परिवार के 4 से 5 लोग सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक काम कर रहे हैं. एक-एक परिवार 50 से अधिक मूर्तियां बना रहे हैं.

नयी पीढ़ी ने मुंह मोड़ा, पुश्तैनी कला पर संकट

हालांकि, मूर्तिकारों की नयी पीढ़ी परेशानियों को देखते हुए इस कलाकारी से मुंह मोड़ रही है. वे जीवन जीने के लिए अन्य अवसर की तलाश कर रहे हैं. इस पुश्तैनी कलाकारी का भविष्य पर गहरा संकट है. शहर के साथ गुवा, बड़बिल, झींकपानी, नोवामुंडी आदि स्थानों से बड़ी-छोटी मूर्तियों के ऑर्डर मिले हैं.

सादगी की देवी की मूर्ति में हल्के रंगों का होता है उपयोग

माता सरस्वती सादगी व विद्या की देवी हैं. इस भावना के अनुरूप मूर्तियों में हल्के रंग का इस्तेमाल होता है. मूर्ति में हंस, वीणा, कमल के पुष्प का महत्व है. इसमें क्रीम, हरा, सफेद, पीले रंगों के हल्के शेड का उपयोग हो रहा है.

ऐसे तैयार होती है प्रतिमा

मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले बेस तैयार होता है. आकर के अनुसार लकड़ी का ढांचा खड़ा किया जाता है. इसमें मिट्टी, भूसी व बोरा से आकार दिया जाता है. इसके बाद चेहरे की चिकनाई के लिए सूती वस्त्र देकर मिट्टी के घोल लगाकर चिकनाई दी जाती है. सूखने के बाद रगड़कर चिकना किया जाता है. बड़ी मूर्तियां हाथों से बनायी जाती है. सूखने के बाद सबसे पहले सफेद डिस्टेंपर से रंगा जाता है. चहरे पर साबूदाना व आरारोट का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि रंग ना फटे.

पूजा में पांच हजार से तीन लाख तक खर्च

शहर के टाटा कॉलेज के सामान्य छात्रावास, आदिवासी बालक छात्रावास, जीसी जैन कॉमर्स कॉलेज, महिला कॉलेज समेत कई स्कूल , निजी संस्थान से लेकर गली मुहल्लों में सरस्वती पूजा की जाती है. अमूमन एक पूजा के लिए 5 हजार से 3 लाख तक खर्च किये जाते हैं

टाटा कॉलेज : झालर लाइट व डांस प्रतियोगिता होगी

टाटा कॉलेज के सामान्य व आदिवासी छात्रावास की पूजा में सबसे अधिक भीड़ उमड़ती है. दोनों छात्रावास में अलग-अलग पूजा होती है. 3 फरवरी को पूजन व 5 फरवरी को विसर्जन होगा. झालर व लाइटों से पूरे परिसर को सजाया जाता है. छात्रावास के बगीचे को सजाया गया है. दोनों छात्रावासों में डांस प्रतियोगिता होगी. महिला कॉलेज के सामान्य छात्रावास में छात्राएं आपस में सहयोग राशि लेकर पूजा करती हैं. यहां 4 फरवरी को विसर्जन होगा. जीसी जैन कॉमर्स कॉलेज के मैदान में विद्यार्थी सादगी से पूजा-अर्चना करते हैं.

…कोट…

35 साल से अधिक समय से मूर्ति बना रहा हूं. इस कार्य में मेहनत के अनुसार आय नहीं है. लकड़ी से लेकर सभी सामग्रियों की कीमत बढ़ गयी है. नयी पीढ़ी इस कार्य में रुचि नहीं दिखा रही है.- रमेश प्रजापति, मर्तिकार, कुम्हारटोला

18 वर्षों से पेशा से जुड़ा हूं. हमारे बाद इस कला का संरक्षण कैसे होगा, कहना मुश्किल है. युवा पीढ़ी मूर्तियां बनाने में थोड़ी मदद कर रही है. दीया, कलश आदि नहीं बनाना चाहते हैं. -विजय कुमार, मूर्तिकार, कुम्हारटोला

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