सारंडा के नक्सल प्रभावित इलाके में 20 किमी चलकर पढ़ाने जाते हैं फ्रांसिस मुंडा, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सरकार ने दिया सम्मान

नक्सल प्रभावित इलाके सारंडा में शिक्षा की अलख जगाने वाले शिक्षक फ्रांसीस मुंडा जो खुद दसवीं पास हैं उन्हें मंत्री चोबा मांझी ने सम्मानित किया.फ्रांसीस असल में इस सम्मान के हकदार हैं. टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा संचालित गैर सरकारी संगठन एस्पायर नक्सल प्रभावित इस इलाके में एनआरबीसी स्कूल चलाती है. इस स्कूल में किरीबुरु के प्राईवेट शिक्षक फ्रांसीस मुंडा पढाते हैं. उनकी मेहनत को देखते हुए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्हें सम्मानित किया गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 16, 2020 9:19 PM
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किरीबुरु (शैलेश सिंह) : नक्सल प्रभावित इलाके सारंडा में शिक्षा की अलख जगाने वाले शिक्षक फ्रांसिस मुंडा, जो खुद दसवीं पास हैं. उन्हें मंत्री जोबा मांझी ने सम्मानित किया है .फ्रांसिस असल में इस सम्मान के हकदार हैं. टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा संचालित गैर सरकारी संगठन एस्पायर, नक्सल प्रभावित इलाके में स्कूल चलाती है. इस स्कूल में किरीबुरु के प्राईवेट शिक्षक फ्रांसिस मुंडा पढ़ाते हैं. उनकी मेहनत को देखते हुए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्हें सम्मानित किया गया है.

चाईबासा में मंत्री जोबा माझी ने उपायुक्त की मौजूदगी में उन्हें सम्मानित किया. विकट परिस्थिति एंव खराब मौसमों के बावजूद फ्रासिस मुंडा किरीबुरु से लगभग दस किलोमीटर दूर गांव में जंगल, पहाड़ होते प्रतिदिन पैदल जा कर (आना-जाना बीस किलोमीटर) गांव में लकड़ी और पुआल से बने छोटे से स्कूल में पढ़ाते हैं. यहां फ्रांसिस चालीस बच्चों को पढा़ते हैं.

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यह स्कूल एस्पायर द्वारा ग्रामीणों के आग्रह पर दो अक्तूबर-2019 में खोला गया था. जहां रांगरिंग, बोड़दाभठ्ठी एंव नुईयागडा़ गांव (सभी गांवों की दूरी एक-दूसरे से लगभग तीन किलोमीटर) के 38 बच्चे पैदल पढ़ने आते हैं. यहां सभी को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है. बच्चों को पढा़ने के एवज में एस्पायर द्वारा शिक्षक फ्रांसिस को 7200 रूपये वेतन दिया जाता है.

हर दिन 20 किमी पैदल चलकर इस पहाड़ी इलाके में बच्चों को पढ़ाने आना और वापस जाना आसान नहीं है. तीनों गांव इन्क्रोचमेंट गांव हैं, जो पिछले चालीस वर्षों से बसा है. तीनों गांव की आबादी लगभग तीन सौ के करीब है. तीनों गांव विकास से कोशों दूर है तथा गांव में जाने के लिये पगडंडी छोड़ कोई रास्ता नहीं है.

तीनों गांवों में कोई शिक्षित भी नहीं है, जो अपने-अपने बच्चों को पढा़ सके. बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता देख, एस्पायर के सीएफ राजेश लागुरी, प्रदीप कुमार पान, नोवामुंडी प्रखंड समन्वयक आरबी रमन, जगन्नाथपुर प्रखंड समन्वयक एस रमेश ने कई बार गांव का सर्वे कर तथा ग्रामीणों से बातकर रांगरिंग में स्कूल खोलने का प्रस्ताव ग्रामीणों को दिया था जिसे ग्रामीणों ने बिना विलम्ब के स्वीकृति प्रदान की.

स्कूल में पढा़ने के लिए गांव के आसपास कोई व्यक्ति नहीं मिल रहा था. फ्रांसिस की सहमति के बाद यह समस्या दूर हुई लेकिन पढ़ाने के लिए उन्हें पैदल हर रोज यहां आना पड़ता है. तब से यह स्कूल तमाम प्रकार की अव्यवस्थाओं के बावजूद एस्पायर व शिक्षक फ्रांसिस के सहयोग से संचालित हो रहा है. सारंडा के विभिन्न गांवों में दर्जनों सरकारी स्कूल हैं लेकिन अधिकतर स्कूलों में शिक्षक बच्चों को नियमित पढा़ने नहीं आते.

एस्पायर द्वारा संचालित दूसरा एनआरबीसी स्कूल सारंडा के इन्क्रोचमेंट गाँव होंजोरदिरी में है, जहाँ गाँव के हीं शिक्षक सोनाराम सुंडी गांव के 38 बच्चों को पढा़ने का कार्य करते हैं. यह स्कूल भी ग्रामीणों ने हीं लकड़ी का बनाया है. इसके अलावे किरीबुरु स्थित सारंडा सुवन छात्रावास में एस्पायर संचालित आरबीसी स्कूल है जहाँ गरीब बच्चों को आवासीय, भोजन, शिक्षा सामग्री आदि तमाम सुविधा प्रदान कर निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराया जाता हैं. यहां 55 बच्चे पढ़ते हैं.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

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