चाईबासा. चाईबासा का जीइएल चर्च 164 साल पुराना है. 2 नवंबर 1845 झारखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण तारीख है. स्वास्थ्य व शिक्षा के उद्देश्यों को लेकर इस दिन जर्मनी से चार मिशनरी रांची पहुंचे थे. फादर गोस्सनर ने इन चारों मिशनरियों को म्यांमार (बर्मा) में धर्म प्रचार के लिए भेजा था. पर चारों मिशनरी अपने यात्रा के क्रम में पहले कोलकाता पहुंचे. कोलकाता में इन मिशनरियों की मुलाकात छोटानागपुर के कुछ लोगों से हुई, जो कुली का काम करते थे. उन्हें लगा कि वे लोग आदिवासी हैं. उन्होंने पता लगाया और तब वे छोटानागपुर के लिए चल पड़े. उस जमाने में वे मिशनरी बैलगाड़ी से कई दिनों के सफर के बाद रांची पहुंचे. वे जिस जगह पर पड़ाव डाला, उस जगह को उन्होंने नाम दिया, बेथेसदा (दया का घर). इसके बाद उसी स्थान पर रहकर वे आदिवासी समुदाय के बीच धर्म प्रचार का काम करते रहे. इसके बाद रानीगंज, खूंटी, सिमडेगा, बंदगांव होते हुए 1864 में चाईबासा पहुंचे. उन लोगों का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य और शिक्षा था. 1868 को एक स्कूल खोला जो लूथेरन के नाम से है. यहां छोटा सा झोपड़ीनुमा घर में रहकर स्कूल खोला. शिक्षा देने के साथ गिरजाघर का निर्माण किया. इसके बाद प्रार्थना सभी शुरू की. 1870 को जीइएल चर्च का निर्माण कर यहां के स्थानीय लोगों को सुपुर्द कर दिया. इस चर्च को जिले का पहला चर्च होने का गौरव प्राप्त है. तब से लेकर अबतक यहां का चर्च मसीही समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है.
प्रथम पादरी नेथेल तियु थे
जीइएल चर्च में सबसे पहले चाईबासा के करकट्टा गांव के चार लोगों ने दीक्षा लेकर ईसाई धर्म स्वीकार किया. इस चर्च के प्रथम पादरी नेथेल तियु थे. वे गुदड़ी क्षेत्र के हैं. चर्च का एक अलग स्थान है. यहां लोग एकत्रित होकर प्रभु यीशु मसीह की भक्ति भाव से आराधना करते हैं.चर्च में 400 लोगों के बैठने की व्यवस्था
जीइएल चर्च के कोल्हान प्रभारी पादरी जॉरांग सुरीन ने बताया कि वर्तमान में इस चर्च के पादरी प्रभु सहाय चांपिया सेवा दे रहे हैं. चर्च में चार सौ लोगों की बैठने की जगह है. इस चर्च में 215 फैमिली सदस्य हैं.
आज भी लगा है जर्मनी का घंटा
जीइएल चर्च में जर्मनी के दो घंटे लगे हैं. उसका नामकरण भी किया गया है. अदम नामक घंटा का 125 किलोग्राम तथा दूसरा हवा नामक घंटा है. दोनों घंटा काफी प्रसिद्ध है. घंटे की आवाज दो किलोमीटर दूर तक जाती है. पादरी जॉरांग सुरीन ने बताया कि हवा नामक घंटा को फिलहाल बंद कर दिया गया है. दूसरी ओर अदम नामक घंटा को सिर्फ बड़ा दिन यानि क्रिसमस के दिन प्रभु यीशु जन्म के समय ही बजाया जाता है. उसकी आवाज काफी दूर तक जाती है. दोनों घंटा को संजोकर रखा गया है.चर्च में है जर्मनी की लकड़ी के कठघरे
जीइएल चर्च में जर्मनी की लकड़ी से बने पुलपीट (कठघरे) हैं. उस कठघरे पर चढ़कर पादरी शांति का उपदेश देते हैं. पादरी ने बताया कि यह कठघरे जर्मन के समय से ही है. हर साल उसका रंग-रोगन किया जाता है.
जीइएल चर्च में गैदरिंग 15 दिसंबर को
क्रिसमस को लेकर समुदाय के लोग पर्व की तैयारी में जुटे गये हैं. गिरजाघर के रंग-रोगन और साफ-सफाई युद्ध स्तर पर चल रही है. जीइएल चर्च में 15 दिसंबर को क्रिसमस की गैदरिंग होगी. युवा वर्ग के लोग तैयारी में लगे हैं. पादरी प्रभुसहाय चांपिया ने बताया कि यीशु जन्म की पूर्व संध्या पर चर्च में शाम छह बजे से प्रार्थना सभा होगी. 25 दिंबसर की सुबह आठ बजे से प्रार्थना सभा होगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है