कुंदा : सरकार द्वारा पेयजल को लेकर प्रति वर्ष लाखों रुपया खर्च किया जाता है, लेकिन इसका लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है. प्रखंड के कई ऐसे गांव हैं जहां लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. ग्रामीण नदी व ढोढा का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. गंदा पानी पीने से उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. अनुसूचित जनजाती बहुल क्षेत्र सिंदुरी, बाचकुम, खुटबलिया, हारूल, चितवातरी समेत अन्य गांव की स्थिति सबसे भयावह है.
लगभग 150 घर के पांच सौ आबादी वाले इन गांवों में ग्रामीणों का प्यास बुझाने के लिए कोई सुगम साधन नहीं हैं. इन गांवों में चापाकल व कुआं भी नहीं हैं. ग्रामीण कुछ गांव में निजी खर्च से चापाकल व कुआं खुदवाया है, लेकिन जलस्तर नीचे चले जाने से पूरी तरह सुख गया है. मुखिया मद से एक मात्र चापाकल लगाया गया है, वो भी अब जवाब देने लगा है.
ग्रामीण चुआं खोद कर किसी तरह अपना प्यास बुझा रहे हैं. सुबह होते ही क्षेत्र की महिलाएं व बच्चे खाली बर्तन लेकर खोदे गये चुआं के पास पानी के लिए पहुंच जाते हैं. दो-चार बाल्टी पानी लाकर अपना व पशुओं का प्यास किसी तरह बुझा रहे हैं. उसे चुआं से जंगली जानवर भी अपनी प्यास बुझाते हैं. ग्रामीण मनोज कुमार यादव ने बताया कि गांव के युवक-युवतियां की शादी पानी के अभाव में नहीं हो पा रहा हैं.
क्षेत्र की स्थिति जानने के बाद लोग यहां आना पसंद नहीं करते हैं. वहीं मनवा देवी ने बताया कि कई मवेशियों की मौत प्यासे रहने के कारण हो गयी है. साथ ही कई ग्रामीण दूषित पानी पीने से बीमारी के चपेट में आ रहा हैं. क्षेत्र के ग्रामीणों ने उपायुक्त से पेयजल की व्यवस्था कराने की मांग की है.