भारतीय रेडक्रॉस की हालात आर्थिक संकट के कारण गहराने लगा हैं. शीघ्र आर्थिक सहायता नहीं मिली, तो कभी भी ताला लटक सकता है. जिससे ब्लड के अभाव में कई मरीजों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. रेडक्रॉस के संचालन में हर माह एक लाख रुपये का खर्च होता है. एलिजा मशीन में एचआइवी, हेपेटाइटिस बी व सी, सिफलिस की जांच में प्रति माह 40 हज़ार, जेनरेटर में नौ हजार,
प्रत्येक वर्ष जेनरेटर मेंटेनेंस में 25 हजार, मलेरिया, टाइफाइड सहित अन्य छोटे-मोटे जांच के प्रयोग में आने वाले कीट का खर्च करीब 30 हजार प्रति माह, ब्लड बैंक मेंटेनेंस, साफ-सफाई का खर्च 15 हजार खर्च आता है. इसके अलावा कर्मचारी खर्च 80 हजार सालाना खर्च होता है.
पैसे के अभाव में नाइट गार्ड नहीं रखा गया है. मालूम हो कि जिले में 50-60 थैलीसीमिया से पीड़ित हैं. जिसे हर 20-25 दिनों में ब्लड की आवश्यकता होती हैं. यहां ब्लड बैंक बंद हुआ तो हजारीबाग, रांची व गया जाना पड़ेगा. परेशानी के साथ-साथ आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
रेडक्रॉस को अब तक सरकार ने मदद नहीं की. सरकार कुछ सहायता प्रदान करती, तो दम तोड़ रहे ब्लड बैंक को ऑक्सीजन मिलने के जैसे होता. गरीबों को नियमित रूप से ब्लड सहित अन्य सुविधाएं मिलती. दूसरी ओर सरकार ब्लड का दाम बढ़ा दी है. सरकारी ने प्रति यूनिट रक्त 1050 रुपये लेने का निर्देश दिया है.