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कोरैया व वनतुलसी बना बिरहोरों की आय का स्रोत, होती है इतनी कमाई

प्रखंड के जंगलों में जड़ी बूटी की भरमार है. इसे बेच कर गरीब तबके के लोग अपना जीवन यापन करते हैं. समय-समय पर आदिम जनजाति के अलावा अन्य लाेग भी जंगल उत्पादों से अच्छी आय प्राप्त कर लेते हैं.

प्रखंड के जंगलों में जड़ी बूटी की भरमार है. इसे बेच कर गरीब तबके के लोग अपना जीवन यापन करते हैं. समय-समय पर आदिम जनजाति के अलावा अन्य लाेग भी जंगल उत्पादों से अच्छी आय प्राप्त कर लेते हैं. इन दिनों कोरैया व वनतुलसी गरीबों की आय का मुख्य स्रोत बन गया है. जंगल से हर रोज ग्रामीण जड़ी बूटी ले जाकर बाजार में बेचते हैं.

जगन्नाथपुर गांव की अनिता ने बताया कि जंगल से कोरैया फल तोड़ कर लाते हैं, फिर उसे धूप में सूखा कर फल निकाले हैं. वह बाजार में आसानी से 80-100 रुपये प्रति किलो की दर से बिक जाता है. दिनभर में 500-700 रुपये का कोरैया का फल बेच लेते हैं. सुनीता बैगिन ने कहा कि कोरैया के फल के साथ-साथ वनतुलसी के बीज जंगल में मिल जाता है.

उसे बेच कर जीविकोपार्जन कर रहे है. सोहरलाठ गांव के सोमर बैगा ने कहा कि दो माह से यह काम में लगें है. इससे अच्छी आमदनी हो रही है. ग्रामीणों को इसे बेचने के लिए अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. खरीदार खुद गांव आकर कोरैया खरीद रहे हैं. जानकारों के अनुसार, कोरैया के फल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है.

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