Lok Sabha Elections 2024: टंडवा (चतरा), बरुण कुमार सिंह-कभी झारखंड के चतरा समेत अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों में भाकपा माओवादियों की तूती बोलती थी. उनके इशारे के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. चुनाव बहिष्कार करने पर बूथ पर खामोशी छा जाती थी. वोटर घर से बाहर निकलने का भी साहस नहीं कर पाते थे. वजह साफ है कि सभी को उसका अंजाम मालूम था. माओवादी विरोध करने पर ग्रामीणों को खौफनाक सजा देते थे. लोकतंत्र के महापर्व में माओवादियों के फरमान को चुनौती देना टंडवा के जसमुद्दीन अंसारी और महादेव यादव (मृत) को महंगा पड़ गया था. नक्सलियों ने इनके हाथ व अंगूठे काट दिए थे. पढ़िए लोकतंत्र के सजग प्रहरी जसमुद्दीन अंसारी की साहस-भरी कहानी.
गांव-गांव, गली-गली गूंज रहे लोकतंत्र के गीत
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर झारखंड की सियासी फिजा बदली-बदली सी है. गांव-गांव, गली-गली के साथ-साथ शहरों में भी लोकतंत्र के गीत गूंज रहे हैं. चतरा की फिजा भी वक्त के साथ बदली है. पिछले कई वर्षों से बुलेट पर बैलेट भारी पड़ रहा है. शासन-प्रशासन की सक्रियता से अब नक्सलियों का उस तरह आतंक नहीं रहा. 20 मई को चतरा लोकसभा सीट पर मतदान होना है. ऐसे में लोकतंत्र के महापर्व में हर वर्ष वोटर की ताकत का अहसास करानेवाले जसमुद्दीन अंसारी याद आते हैं. याद आती है इनकी वीरता की कहानी.
जसमुद्दीन ने भाकपा माओवादियों के चुनाव बहिष्कार को दी थी चुनौती
बात 1999 के लोकसभा चुनाव की है. माओवादियों के चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया था. पोस्टरबाजी भी की थी. वोट नहीं करने की चेतावनी भी दी थी. इसके बाद भी लोकतंत्र के सजग प्रहरी जसमुद्दीन अंसारी ने जान की परवाह किए बगैर ग्रामीणों को एकजुट किया था और खुद पहला वोट देकर सबका मनोबल बढ़ाया था. नक्सलियों को ये नागवार गुजरा. उन्होंने जसमुद्दीन का मनोबल तोड़ने के लिए उन्हें घर से उठा लिया था और उनका एक हाथ काट दिया था, ताकि इलाके में दहशत कायम रहे और उनके खिलाफ उठने वाली आवाज खामोश हो जाए.
जसमुद्दीन अंसारी व महादेव यादव को नक्सलियों ने दी थी सजा
चतरा जिले के टंडवा प्रखंड के कामता गांव के रहनेवाले जसमुद्दीन अंसारी व गाडिलौंग के महादेव यादव को माओवादियों ने प्रताड़ित किया. जसमुद्दीन का हाथ काट दिया था, वहीं महादेव का अंगूठा काट दिया था. महादेव यादव आज हमारे बीच नहीं हैं. पूर्व में ही उनका निधन हो चुका है, लेकिन जसमुद्दीन अंसारी आज भी घटना को याद कर सिहर उठते हैं.
मतदाताओं के रोल मॉडल हैं जसमुद्दीन अंसारी
मतदाताओं के रोल मॉडल जसमुद्दीन अंसारी बताते हैं कि 1999 में टंडवा हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में आता था. तब वे लोग माओवादियों के वोट बहिष्कार के बावजूद चुनाव प्रचार कर रहे थे. लोगों को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे थे. उन्होंने माओवादियों को खुली चुनौती दी थी. इतना ही नहीं जसमुद्दीन व महादेव ने अपने-अपने बूथ पर पहला मतदान भी किया था. इसके बाद अन्य लोगों ने मतदान किया था.
आज तक नहीं मिली नौकरी
जसमुद्दीन अंसारी कहते हैं कि घटना के बाद तत्कालीन विधायक योगेंद्र नाथ बैठा ने बिहार विधानसभा में मामला उठाया था. सदन में दोनों को नौकरी देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक नौकरी नहीं मिली. सिमरिया के तत्कालीन विधायक किसुन दास ने भी 2023 में मामले को उठाया था. तब तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी नौकरी का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक नौकरी का सपना अधूरा है.