दीनबधु/ धर्मेंद्र, चतरा :
कुंदा प्रखंड में एक दशक पूर्व तक गोलियों की आवाज दिन दहाड़े सुनायी देती थी. धरती खून से रक्तरंजित हुआ करता था. कई लोग नक्सलियों के डर से पलायन कर गये थे. लेकिन आज उस कुंदा की आबोहवा बदल गयी है. कुंदा की धरती पर विकास की गाथा लिखी जा रही है. पांच वर्षों में यहां काफी बदलाव आया है. प्रखंड के गांवों में बिजली पहुंची है. सड़कें बनी हैं. नदी पर पुल-पुलिया बनाये गये हैं. इन गांवों में शहर जैसी सुविधाएं मिल रही हैं. बिजली व सड़क ने लोगोंं की किस्मत बदल दी है. रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले युवक अपने गांव में ही दुकान खोल कर रोजगार से जुड़े हैं और दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं.
बंजर पड़ी जमीन में हरियाली नजर आ रही है. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ गयी है. जिन स्कूलों में वर्षों पूर्व गोलियाें की आवाज सुनायी देती थी, उन स्कूलों में स्कूलों में आज क, ख, ग सुनायी देने लगी है. बच्चों के हाथों में पेंसिल, कलम दिखायी दे रहे हैं. यहां के बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में सफल होकर प्रखंड का नाम रोशन कर रहे हैं. खेल के क्षेत्र में भी यहां के बच्चे अपनी पहचान बना रहे हैं. पांच वर्षों में कुदा का काफी विकास हुआ है.
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पदाधिकारी पूर्व में गांवों में जाने से डरते थे. आज उन गांवों में पहुंच कर विकास योजनाओं का स्थल निरीक्षण कर रहे हैं. इस तरह कुंदा प्रखंड विकास की ओर लगातार बढ़ रहा है. यह सब नक्सली गतिविधियां कम होने से संभव हो पाया है. पढ़ी-लिखी महिलाएं और युवतियां रोजगार से जुड़ कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटीशियन, कोचिंग सेंटर दुकान आदि से जुड़ कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. 20 गांवों सड़क से जुड़ा है. अधिकतर गांवों में बिजली की सुविधा बहाल कर दी गयी है.
प्रखंड के कुंदा, मेदवाडीह,नवादा, बनियाडीह, कुटिल मारगड़ा, टीटहीभरगव, लोटवा, सिकीदाग, पिंजनी, पोटम, कोजरम, चाया, भूरहा, बौधाडीह, नावाडीह, काशिलौंग, सरजामातु, शाहपुर, सिंदरी, बैलगड़ा, चेतमा, चिलोई, अमौना, बैरियाचक समेत कई गांव में पीएमजीएसवाई से सड़क निर्माण कर उन्हें मुख्यालय से जोड़ा गया है. सड़क बनने से आवागमन की सुविधा हुई है. लोग रात में भी बेखौफ होकर सड़कों से आवागमन करते हैं.