चतरा : चतरा के करीब दो लाख लोग हर वर्ष महुआ का फल बेच कर करीब चार माह का राशन का जुगाड़ करते हैं. साथ ही कई आवश्यक कार्य में रुपये खर्च करते हैं. होली समाप्त होते ही महुआ के पेड़ से फल गिरना शुरू हो जाता है. ग्रामीण पूरे परिवार के साथ महुआ चुनने के कार्य में लग जाते हैं. सुबह से लेकर दोपहर तक महुआ चुनते हैं.
दूसरे प्रदेश में कार्य करने गये लोग भी महुआ के मौसम में अपने-अपने घर लौट जाते हैं और महुआ चुनते हैं. महुआ चुनने जंगल में चले जाने के कारण इस मौसम में गांवों में सन्नाटा छाया रहता है, जबकि जंगल गुलजार रहता है.
यह बिना पूंजी का व्यापार है. एक अनुमान के अनुसार हर साल पांच करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. सबसे अधिक महुआ का पेड़ वन भूमि में है. महुआ का फल चुनने में किसी तरह की कोई रोक नहीं है.
सबसे अधिक सदर प्रखंड, टंडवा, कुंदा, लावालौंग, सिमरिया, पत्थलगड्डा, गिद्धौर, हंटरगंज, प्रतापपुर, इटखोरी, कान्हाचट्टी प्रखंडों में महुआ के अधिकतर पेड़ हैं. इन प्रखंडों में 50 हजार से अधिक महुआ के पेड़ हैं. जरूरत के अनुसार ग्रामीण महुआ बेच कर आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी करते हैं.
हर वर्ष जिले में महुआ का करोड़ों रुपये का कारोबार होता है. महुआ की खरीदारी स्थानीय व्यापारी करते हैं. व्यापारी गांव-गांव में जाकर महुआ की खरीदारी करते हैं. इसके बाद बिहार, बंगाल, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ भेजा जाता है. अभी 50 रुपये प्रति किलो की दर से महुआ की बिक्री हो रही है.
गिद्धौर प्रखंड के केंदुआ गांव निवासी प्रमोद प्रसाद ने बताया कि हर साल महुआ चुन कर करीब 15 हजार रुपये कमा लेते हैं. इसकी बिक्री कर चार माह के राशन का जुगाड़ कर लेते हैं. एतवरिया देवी ने कहा कि महुआ चुन कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. इसमें पूंजी नहीं लगती, सिर्फ मेहनत करना होता है. पत्थलगड्डा प्रखंड के नावाडीह की रेखा देवी ने कहा कि महुआ की बिक्री से करीब 20 हजार की आमदनी होती है, जिससे चार माह के राशन की व्यवस्था हो जाती है.