प्रखंड में इन दिनों डोरी का तेल ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहा है. यह तेल किसानों के रोजमर्रा की जीवनशैली का हिस्सा बन रहा है. खाद्य तेल के रूप में किसान डोरी तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. तेल निकालने वाले मिलों में इन दिनों व्यस्तता देखी जा सकती है. किसान महुआ के पके हुए फल (डोरी) को जमा कर इसका तेल निकाल रहे हैं. 10 लीटर से 50 लीटर तक तेल एक-एक परिवार ने जुटाया है.
सरसों व अन्य खाद्य तेल की महंगाई ने किसानों के बीच डोरी के तेल का प्रचलन बढ़ाया है. महंगाई के इस दौर में गरीबों के लिए डोरी का तेल ग्रामीणों व मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए सहारा बना है. ग्रामीणों ने बताया कि महुआ का पेड़ ग्रामीणों के लिए हर मायनों में वरदान साबित हो रहा है. एक तरफ जहां इसके फूल को बेचकर किसान अच्छी आय प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरी तरफ इसके फल से अच्छी मात्रा में तेल प्राप्त होता है.
गिद्धौर गांव की महिला पुनिया देवी ने बताया कि डोरी का तेल प्रायः हर घरों में खाने के तेल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. केमिकल रहित व औषधीय गुणों से भरपूर व कम कीमत होने के कारण लोग इसे खरीदकर भी उपयोग करते हैं. तेल मिल के संचालक रामाशीष दांगी ने बताया कि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर डोरी के तेल का उपयोग होता है.
लगभग एक माह तक डोरी का तेल निकालने का दौर चलता है. किसानों को तेल निकलने के लिए कोई पैसा नहीं लगता. इसके एवज में लोग डोरी की खल्ली छोड़ जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार डोरी के तेल में काफी कम फैट होता है. साथ ही इसमें औषधीय गुण होते हैं. इसके तेल से त्वचा रोगों में निजात मिलता है. गठिया, सिरदर्द व बवासीर के इलाज में भी इसके तेल का उपयोग किया जाता है.