कुंदा. प्रखंड के जंगलों में इन दिनों लाल रोड़ी के फल की भरमार है. चारों ओर लालिमा छायी है. कई वर्ष बाद भारी मात्रा में रोड़ी का फल हुआ है. कुंदा के अलावे प्रतापपुर और लावालौंग के जंगल में भी रोड़ी के फल से पेड़ लदे हैं. प्रखंड रोड़ी के पेड़ आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. रोड़ी के पेड़ सेल्फी प्वाइंट बन गये है. रोड़ी का प्रयोग प्राकृतिक रंग और गुलाल बनाने में होता है. फाल्गुन माह में रोड़ी का फल तैयार हो जाता है. फल को तोड़ कर उसमें से निकलने वाले पाउडर से रंग व गुलाल बनाया जाता है. इससे बनने वाले रंग और गुलाल सुगंधित होता है, जो शरीर को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है. रोड़ी का उपयोग पूजा पाठ में भी होता है.
आर्थिक उपार्जन का है स्रोत
जंगली क्षेत्र में ग्रामीण के लिए इन दिनों रोड़ी का फल आर्थिक उपार्जन का जरिया बना हुआ है. ग्रामीण रोड़ी का फल तोड़कर उसका पाउडर तैयार करने में जुटे हैं. रोड़ी का पाउडर बाजार में 150 से 200 रुपये किलो बिकता है. ग्रामीण रोड़ी बेचकर अपना जीविकोपार्जन भी करते हैं. कई लोग इस रोजगार से जुड़े हैं. हर वर्ष अच्छी आमदनी करते हैं. आसेदेरी गांव के रामविलास बैगा ने बताया कि रोड़ी के फल को तोड़ कर इसमें से रंग निकालकर साप्ताहिक बाजार में बेचते हैं. इससे होने वाले आमदनी से अपना घर परिवार चलते हैं. ग्रामीण रोड़ी के फल का इंतजार साल भर करते हैं. रमेश गंझू ने कहा कि रोड़ी का पाउडर बनाकर हर वर्ष पांच से दस हजार का आमदनी करते हैं. पूरा परिवार जंगल में जाकर रोड़ी तोड़ कर लाते हैं, फिर उसे सुखाकर उसका पाउडर बनाकर बाजार में बेचते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है