मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड की चिंता छोड़े, पहले असम की आदिवासियों को एसटी का दर्जा दे: माझी बाबा
सोनारी दोमुहानी बाबा तिलका माझी टोला में 18 मौजा के पुड़सी पिंडा जमशेदपुर की एक बैठक माझी बाबा साजेन मार्डी की अध्यक्षता में हुई. बैठक में निर्णय लिया गया कि 18 मौजा पुड़सी पिंडा जमशेदपुर के माझी बाबा, नायके बाबा, पारानिक बाबा, जोग माझी व गोडेत आदि स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों को सम्मानित किया जायेगा. जुगसलाई तोरोप परगना बाबा दशमत हांसदा द्वारा पारंपरिक पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया जायेगा. यह सम्मानित कार्यक्रम धातकीडीह सामुदायिक भवन में 6 अक्टूबर को होगा.
जमशेदपुर: सोनारी दोमुहानी बाबा तिलका माझी टोला में 18 मौजा के पुड़सी पिंडा जमशेदपुर की एक बैठक माझी बाबा साजेनमार्डी की अध्यक्षता में हुई. बैठक में निर्णय लिया गया कि 18 मौजा पुड़सी पिंडा जमशेदपुर के माझी बाबा, नायके बाबा, पारानिक बाबा, जोग माझी व गोडेत आदि स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों को सम्मानित किया जायेगा. जुगसलाई तोरोप परगना बाबा दशमत हांसदा द्वारा पारंपरिक पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया जायेगा. यह सम्मानित कार्यक्रम धातकीडीह सामुदायिक भवन में 6 अक्टूबर को होगा.पुड़सी पिंडा जमशेदपुर के मुडूत माझी बाबा बिंदे सोरेन ने कहा कि असम के मुख्यमंत्री व झारखंड बीजेपी के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड प्रदेश में आदिवासियों को उनका हक व अधिकार देने की बात करते हैं. लेकिन वे अपने राज्य असम में रह रहे आदिवासियों को आदिवासी होने का दर्जा नहीं दिला सके हैं. असम में रह रहे आदिवासियों को वहां टी-ट्राइब कहकर पुकारा जाता है. यदि सही मायने में हिमंता बिस्वा सरमा आदिवासियों के हितैषी हैं तो सबसे पहले असम के आदिवासियों को उनका हक व अधिकार दिलाये.उसके बाद झारखंड में रह रहे आदिवासियों की चिंता करे. माझी बाबा ने कहा कि दोहरा चरित्र के मानसिकता रखने वाले नेताओं का आदिवासी समाज विरोध करता है. जरूरत पड़ी तो आदिवासी समाज एकजुट होकर आंदोलन का रास्ता भी अपना सकते हैं. बैठक में मुड़ूत माझी बिंदे सोरेन, पारणीक बाबा बीरसिंह हेंब्रम,सुरेंद्र टुडू, साजेन मार्डी, नरेन टुडू, गुरूपद हांसदा, विजय टुडू, शिबू हेंब्रम समेत अन्य मौजूद थे.
राजनीति और आदिवासियों की वर्तमान स्थिति पर होगा चर्चा
माझी बाबा बिंदे सोरेन ने कहा कि सम्मान समारोह में राजनीति और आदिवासियों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा किया जायेगा. इस चर्चा में असम समेत देश के विभिन्न राज्यों के आदिवासियों के साथ हो रहे सौतेला व्यवहार पर मंथन किया जायेगा. मंथन करने के बाद आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख आंदोलन की रणनीति बनायेंगे. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं चलेगी. आदिवासियों ने देश के उन्नति व प्रगति के लिए देशभर में अपनी जमीनें दी है. लेकिन आदिवासियों को हाशिये पर रख दिया गया है. स्थिति यह हो गया है अब आदिवासी अपने अस्तित्व की संकट के दौर से गुजर रहा है. आदिवासियों को उनका संवैधानिक अधिकार नहीं दिया जा रहा है. संवैधानिक पहचान से वंचित रखा गया है.
स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों ने आदिवासी समाज को एकजुट करने का उठाया बीड़ा
झारखंड की वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों ने समाज की एकता बनाए रखने की महत्वपूर्ण पहल की है. इन प्रमुखों का मानना है कि आदिवासी समुदाय की एकजुटता ही उनके अस्तित्व की रक्षा कर सकती है. उनका कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी दबावों के बावजूद, आदिवासियों को एक मजबूत और संगठित समुदाय के रूप में खड़ा रहना चाहिए. वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि आदिवासी समाज की पारंपरिक व्यवस्था और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा. आदिवासी प्रमुखों का प्रयास है कि वे समाज को एकसूत्र में पिरोकर उसकी समस्याओं का सामूहिक समाधान निकालें और एकजुटता के जरिए अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा करें. इस पहल से आदिवासी समाज को सामूहिक शक्ति प्राप्त होगी, जिससे वे राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकेंगे.