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बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग नाम के पीछे है रहस्य, मन को हरनेवाले निर्मल लिंग को लेकर हैं कई मान्यताएं

बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौंवा ज्योतिर्लिंग माना जाता है, वैद्यनाथ नाम से शिव की प्रशस्ति के कारण ही इसे इस नाम से संबोधत किया जाता है. वैद्यनाथ नामकरण के मूल में धार्मिक ग्रंथों में अनेक प्रसंग है.

Baba Baidyanath Dham: प्राचीन काल में इस लिंग की उपासना वैद्यों ने की थी. इसलिए सर्वकामप्रद इस लिंग की प्रसिद्धि हुई. वैद्यों के धार्मिक इतिवृत को देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों से सम्बंधित माना जाता है. शिव रहस्य के पंचमांश में द्वादश ज्योतिर्लिंग माहात्म्य है. इसमें वैद्यनाथ की महिमा का वर्णन है – लोग सांसारिक बंधन से छूटने के लिए इस लिंग का पूजन करते हैं. यह वैद्यनाथ नामक लिंग मन को हरनेवाला निर्मल लिंग है. जो मनुष्य एक बार भी विल्वपत्र से पूजन कर लिंग के दर्शन करता है, वह मुक्ति प्राप्त करता है और पाप समूह और ताप को त्याग कर अमृत को प्राप्त कर अपार दुखों से छूटकर महापुण्य को प्राप्त होता है. शिव रहस्य के इस प्रसंग में भी वैद्यनाथ नामकरण का रहस्य छिपा हुआ है. वैद्यनाथ माहात्म्य में यह भी प्रसंग है कि शिव की पूजा एक भील कर रहा था. शिव उसकी पूजा से प्रसन्न हो गये. उसे दूसरे जन्म में वैद्यनाथ नामार्थ में वैद्य नाम से जन्म लेने का वरदान मिला.

वैद्यनाथ माहात्म्य में लिखा है –

वैद्याम्यां पूजित सत्यं लिंगमेत्पुरामम् .

वैद्यनाथ इति ख्यातं सर्वकामप्रदायकम्.

ऐसे पड़ा वैद्यनाथ नाम

शिवपुराण की कोटिरूद्र संहिता के 28वें अध्याय में यह वर्णन है कि रावण जब शिव को लेकर कैलाश से लंका की ओर जा रहा था, तो उसने मूत्र विसर्जन के क्रम में ब्राह्मण वेषधारी विष्णु के हाथ में लिंग विग्रह को समर्पित किया था. विष्णु द्वारा अचल रूप में लिंग यहां प्रतिष्ठित हुआ. शिव को प्रसन्न करने के क्रम में उसने अपने दशग्रीव को काटकर समर्पित किया था. उस समय शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने अमोघ दृष्टि से देखकर रावण के दश सिरों को पुनः जोड़ दिया था. इसीलिए इनका नाम वैद्यनाथ पड़ा इस प्रकार वैद्यनाथ नाम से शिव की प्रशस्ति अन्य पुराणों में मिलती है, जैसे-गजारण्ये तु वैद्यनाथ अर्थात् हाथियों से भरे जंगल में वैद्यनाथ विराजमान हैं. इससे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में झारखंड के वन प्रांतर में हाथी प्रचुर रूप में थे. कलकत्ता के म्युजियम में इस क्षेत्र के हाथी का ढांचा आज भी सुरक्षित है. इससे पुराण की चर्चा की सत्यता प्रमाणित होती है.

विग्रह वैजनाथ नाम से भी जाने जाते हैं बाबा बैद्यनाथ

इसका एक नाम हृदयपीठ है, क्योंकि सती का हृदय यहां गिरा है, तंत्र साहित्य में वैद्यनाथ को बगला देवी का उत्तम स्थान कहा गया है. इसलिए तंत्रसार में वैद्यनाथ को महातीर्थ की संज्ञा दी गयी है. वैद्यनाथ शब्द का अर्थ होता है चिकित्सकों का स्वामी वेदों में वैद्यनाथ शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है, किंतु वेदों में रूद्र को भेषज से संबंधित माना गया है. रूद्र को भेषज से जोड़ने के मूल में भी वैद्यनाथ नाम की सार्थकता का रहस्य है. जनश्रुति के अनुसार, वैद्यनाथ को वैजनाथ कहा जाता है. प्राचीन काल में एक गोप था, जो नित्य इस लिंग विग्रह की पूजा किया करता था. एक दिन वह पूजा करना भूल गया. जब वह भोजन करने के लिए मुख में ग्रास ले रहा था, उसे अचानक पूजा का स्मरण हुआ. वह उसी अवस्था में दौड़ते हुए लिंग विग्रह के पास आया और मुख के ग्रास को लिंग विग्रह पर डाल देता है. शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए. शिव ने उसे वरदान दिया कि आज से यह लिंग विग्रह वैजनाथ नाम से जाना जाएगा. इस जनश्रुति से भी वैजनाथ नाम की अर्थपणता का प्रकाशन होता है.

वैद्यनाथ का एक नाम मनरोगहर तीर्थ भी

लोक जीवन में प्रचलित उस नाम के अर्थबोध को बंगाल के लेखक नहीं मानते हैं. भोलानाथ चंदर, मिश्र, हालदार, मजूमदार और डे ने इसे दंतकथा की संज्ञा दी है. इनके अनुसार बैजू नाम का एक नागा साधू था. इसकी समाधि पर आज भी बैजू मंदिर स्थित है. वैद्यनाथ नाम का आवांतर रहस्य इससे जुड़ा है. वैद्यनाथ का एक नाम मनरोगहर तीर्थ भी है. यहां एक पुष्करिणी है, जिसका शास्त्रीय नाम भवरोगहर कुंड है. वर्तमान में यह शिवगंगा सरोवर के नाम से प्रसिद्ध है. वैद्यनाथ मानव के कामिक, वाचिक और मानसिक व्याधियों के विनाशक देव हैं. इसलिए शिव के इस लिंग विग्रह को वैद्यनाथ के नाम से संबोधित किया जाता है. वैद्यनाथ नामकरण की सार्थकता के मूल में एक और तथ्य है. यहां के मंदिर के भीतरी गर्भगृह में चंद्रकांत मणि है.

(श्रीश्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग वांगमय)

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