दुआ करें कि सर्दी पड़े, नहीं तो बढ़ेगी मुसीबत

देवघर: पूस माह में भादो की तरह गरमी पड़ना जन-जीवन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. पहले किसान फसलों की उपज के लिए बारिश की दुआ करते थे, लेकिन अभी सर्दी नहीं पड़ी तो सूखा पड़ जायेगा. अगर सूखा पड़ा तो गेहूं व सरसों की उपज कम होगी आटा और सरसों तेल महंगा हो जायेगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2017 10:46 AM
देवघर: पूस माह में भादो की तरह गरमी पड़ना जन-जीवन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. पहले किसान फसलों की उपज के लिए बारिश की दुआ करते थे, लेकिन अभी सर्दी नहीं पड़ी तो सूखा पड़ जायेगा. अगर सूखा पड़ा तो गेहूं व सरसों की उपज कम होगी आटा और सरसों तेल महंगा हो जायेगा. इसलिए दुआ कीजिये की और सर्दी पड़े.

विशेषज्ञों के अनुसार अगर दिसंबर माह में भी ऐसी गरमी पड़ती रही तो रबी फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. सर्दी के प्रभाव से गेहूं, सरसों, तीसी समेत सब्जियों में आलू व मटर की खेती होती है, ठंड से गेहूं व सरसों की उपज अधिक होती है. ठंड में ही आलू मिट्टी में अधिक बैठता है. लेकिन इस वर्ष सर्दी कम पड़ने से गेहूं व सरसों की उपज कम होने की संभावना है.

सर्दी कम पड़ी तो गरमी जल्दी आयेगी : भू-गर्भ विशेषज्ञों के अनुसार अगर मौसम के अनुकूल सर्दी कम पड़ती है तो गरमी का मौसम भी समय से पहले आ सकता है. दस्तक के साथ ही गरमी झुलसायेगी व इससे जलस्तर भी तेजी से नीचे से भाग सकता है. इसलिए सर्दियों का समय के अनुसार पड़ता भी आवश्यक है.आज भी गांव में कहावत है कि अगहन बीसा, पूस तीसा व मकर पच्चीसा, यानि अगहन माह में 20 दिन, पूस माह में 30 व माघ में मकर संंक्रांति से 25 दिनों तक सर्दियों का मौसम रहता है. अमूमन सर्दी कुल 75 दिनों तक रहता है. इसमें पूस से माघ माह तक की ठंड कपकपा देने वाली रहती है. बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि इस वर्ष पूस में जो धूप व गरमी का एहसास हो रहा है, शायद पहले कभी नहीं हुआ था. कृषि विज्ञान केंद्र, सुजानी के कृषि वैज्ञानिक पीके सिंह ने बताया कि ठंड नहीं बढ़ेगी तो अंकुरित वाली फसल व सब्जियों को अधिक नुकसान होगा. गेहूं, सरसों व मटर समेत सब्जियों में टमाटर व आलू को ठंड की जरूरत है. ठंग का असर नहीं होने से गेहूं की पत्तियों में पीलापन व सरसों की पत्तियों में सिकुड़न हो जायेगा, इससे उपज घट जायेगी. आलू को भी मिट्टी में बैठने व बढ़ने में दिक्कत होगी.
प्रदूषण से प्रकृति की प्रक्रिया प्रभावित
भूगोल व विज्ञान के शिक्षक एसके वर्मा कहते हैं कि सूर्य जब दक्षिण दिशा में झूकता है तो मौसम सर्द होने लगता है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण ने पर्यावरण का काफी बुरा असर डाला है. औद्योगिकीकरण, वाहनों की वजह से प्रदूषण फैलता गया, जिससे प्रकृति की सामान्य प्रक्रिया के तहत पड़ने वाली ठंड को बाधित कर गर्म कर दिया है. यही वजह है ठंड में भी गरमी का एहसास हो रहा है. श्री वर्मा ने बताया कि भू-मध्य सागर से टेम्पर्ट साइकलॉन उठता है, जिससे तापमान में भारी गिरावट आती है. साइकलॉन की वजह से यह ठंड इराक व इरान होते हुए भारत की ओर आता है. लेकिन प्रदूषण ने पर्यावरण में जो बुरा असर डाला है, उससे साइकलॉन भी समय पर नहीं उठता है.
55 वर्ष की उम्र में बगैर जाड़े का पूस देखा
मोहनपुर प्रखंड के बांक निवासी 70 वर्षीय पंचानंद राणा कहते हैं कि 15 वर्ष की उम्र से वे खेती-बारी करते हैं. पिछले 55 वर्षों के दौरान पूस का ऐसा महीना नहीं देखा था जो अभी देखने को मिल रहा है. पहली बार बगैर जाड़े के पूस माह का एहसास हो रहा है. पहले शाम चार बजे के बाद ठंड से खेतों में काम नहीं कर पाते थे, अभी तो अंधेरा होने तक धनकटनी व आलू की खेती हो रही है.
यह अकाल व महामारी का ही लक्षण है : इंदूमति
बिलासी निवासी 101 वर्षीय इंदूमति देवी पति स्व कमलानंद झा ने बताया कि अपने जीवन काल में पूस माह में इतनी गरमी का अहसास पहली बार कर रही है. जबकि पूस में ठंड ज्यादा होती थी. मगर इस बार कम महसूस हो रही है. पहले घरों के बुजुर्ग अपने खाट के पास रात भर अलाव जलाते थे. अघन माह में ठंड प्रवेश कर जाता था. लोग स्वेटर निकाल लेते थे. सुबह व शाम हॉफ स्वेटर पहनने लगते थे. दुर्गापूजा में प्रतिमा देखने के दौरान स्वेटर पहन कर निकलते थे. पिछले 10 वर्षों से मौसम में तेजी बदलाव आया है. यह अकाल व महामारी का ही लक्षण है.
यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है. पेड़-पौधे कटने तथा प्रदूषण से ऐसा हो रहा है. खेतीबाड़ी में इसका प्रभाव पड़ेगा. आलू के लिए तो ठीक है गेहूं व सरसों में इससे फलन जल्दी हो जायेगा. उत्पादन पर इसका असर पड़ेगा. इसमें किसानों को चाहिए कि वे आगात प्रभेद की सब्जी लगायें.
राजू लिंडा, कनीय मौसम वैज्ञानिक, जेडआरएस

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