पोचा के हिस्से में आया था महज 2.09 लाख, वह भी नहीं मिल सका

जमीन का मुआवजा पाने से पहले दुनिया से उठ गया पोचा देवघर : लालफीताशाही के कारण आज हर आम आदमी परेशान है. सबसे ज्यादा परेशानी गरीब तबके के कम पढ़े लिखे लोगों के साथ होती है. कुछ ऐसा ही मामला कुंडा थाना अंतर्गत सातर पंचायत के बाबुपुर गांव में भी देखने को मिला. जब एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2018 5:05 AM

जमीन का मुआवजा पाने से पहले दुनिया से उठ गया पोचा

देवघर : लालफीताशाही के कारण आज हर आम आदमी परेशान है. सबसे ज्यादा परेशानी गरीब तबके के कम पढ़े लिखे लोगों के साथ होती है. कुछ ऐसा ही मामला कुंडा थाना अंतर्गत सातर पंचायत के बाबुपुर गांव में भी देखने को मिला. जब एक रैयत जमीन व मकान गंवाने के बाद मुआवजा का लाभ पाने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गया.
कुंडा इलाके में हवाई अड्डा निर्माण को लेकर प्रशासन की अोर से गुरुकुल के आसपास व बाबुपुर गांव के रैयतों की जमीन का अधिग्रहण कर उन्हें अगस्त-सितंबर के बीच मुआवजा की राशि दिये जाने की प्रक्रिया शुरू की गयी. इन रैयतों में पोचा मांझी भी एक था, जो वर्ष 1988-89 में बंधुआ मजदूरी से मुक्ति पाने के बाद अपने भाई-बहनों (मांगन, चुटो, फुलमनिया, खेमिया व स्वयं)
लालफीताशाही के कारण…
के साथ ही बाबुपुर गांव में रहने लगा. सरकार ने भूदान की जमीन दी तो उसपर मकान बना कर रच बस गया.
28 वर्षों बाद चली गयी जमीन, टूट गया मकान
स्व पोचा मांझी की पत्नी कदमी देवी ने बताया कि 28 वर्ष बाद हवाई अड्डा निर्माण के क्रम में पोचा की पारिवारिक जमीन व मकान विस्तारीकरण की चपेट में आ गया. चूंकि जमीन पिता के नाम से थी. इसलिए प्रशासन ने पोचा के भाई मांगन के नाम से अवार्ड बनाया. जमीन के एवज में परिवार को 48,07604 रुपये का मुआवजा दिये जाने की घोषणा हुई. यह राशि पांच हिस्सों में बंटी तो पोचा के हिस्से आया 9.615 लाख रुपये. पोचा की राशि भी चार हिस्सों(पोचा व उसकी पत्नी कदमी देवी, बेटा मिथुन मांझी, दो बेटियों- लुकरी व दुलारी देवी) में बंटने के बाद 2.40 लाख रुपये का हिस्सा आना था. मगर प्रशासनिक अड़चनों व बैंकिंग व्यवस्था के कारण यह राशि भी उसे मिल न सकी अौर उसके पति (पोचा मांझी) दुनिया से रुखसत कर गये.
भूदानी जमीन के कारण मकान का नहीं मिला मुआवजा
बंधुआ मजदूरी से मुक्ति के बाद भूदानी जमीन पर मकान बनाकर रहता था. ऐसे में जब जिला प्रशासन ने जमीन खाली कराते समय मकान को तोड़ना चाहा. तो उसे इलाके में रहने वाले 100 से 125 लोगों ने मकान के बदले मुआवजे की मांग की. तो प्रशासन की अोर से भूदानी जमीन का हवाला देते हुए मकान को तोड़ दिया. मगर मुआवजा नहीं दिया गया. वहां रहने वाले परिवार के लोगों को कहना है कि जमीन के पैसे में बहुत समस्या है ऐसे में मकान के बदले मिलने वाले 10.30 लाख रुपये प्रशासन दे दे
तो सभी वहां से खाली कर अन्यत्र बस जायें. पोचा की मौत के बाद बाबुपुर गांव पहुंचे सीअो जयवर्धन ने भी मुआवजा के पैमाने को आधार मानते हुए 56-58 लाख(48 लाख रुपये जमीन का व 10.30 लाख मकान का) रुपये दिये जाने की बात कही. जबकि हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है.

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