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मरीजों के जले पर नमक छिड़क रहा अस्पताल प्रबंधन

देवघर : सदर अस्पताल में बर्न वार्ड तो बना दिया गया पर यहां मरीजों के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गयी है. वार्ड में मरीजों के लिए आठ बेड लगा दिये गये पर मरीजों को बेडशीट भी नहीं मिल पा रहा. अधिकतर मरीज तो अपने घरों से चादर लाकर बिछाते हैं. नियम के अनुसार, बर्न […]

देवघर : सदर अस्पताल में बर्न वार्ड तो बना दिया गया पर यहां मरीजों के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गयी है. वार्ड में मरीजों के लिए आठ बेड लगा दिये गये पर मरीजों को बेडशीट भी नहीं मिल पा रहा. अधिकतर मरीज तो अपने घरों से चादर लाकर बिछाते हैं. नियम के अनुसार, बर्न वार्ड पूरी तरह ठंडा रखा जाना चाहिए ताकि मरीजों को राहत मिले पर यहां तो अस्पताल प्रबंधन केवल खानापूर्ति करता दिख रहा है.

जानकार बताते हैं कि बर्न वार्ड का तापमान 24 घंटे 18 से 20 डिग्री तक रहना चाहिए. लेकिन यहां तो वार्ड में लगा एक एसी खराब पड़ा है, जबकि दूसरा एसी कमरे को ठंडा भी नहीं कर पा रहा. कमरे में लगे पंखे भी मरीजों के शरीर की तपन कम करने में नाकाफी हैं.

गर्मी में तो झुलसे हुए मरीजों के जख्म बजबजाते रहते हैं. ऐसा लगता है कि अस्पताल प्रबंधन आग से तड़पते मरीजों के इलाज के नाम पर बस उनके जले पर नमक छिड़क कर मरहम लगा रहा है.
एक ही बेड पर सोते-बैठते मरीज व परिजन
अस्पताल के अन्य वार्ड से बर्न वार्ड को अलग रखा जाना है. लेकिन, यह पुरुष वार्ड से सटा हुआ है. जिससे सामान्य मरीजों के साथ स्वस्थ व्यक्ति को भी इंफेक्शन का खतरा बना रहता है. अस्पताल के एक छोटे से कमरे वाले बर्न वार्ड में एक ही जगह आठ बेड लगे हैं. जहां महिला-पुरुष दोनों मरीजों को एक साथ रखा जाता है. मरीजों के साथ उनके परिजन भी बेड पर बैठते-सोते हैं. जिसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है. जिससे कभी भी मरीजों को इंफेक्शन हो सकता है. अस्पताल की आेर से मरीजों के लिए मच्छरदानी की भी व्यवस्था नहीं की गयी है. जिस कारण मच्छर मरीजों को और तकलीफ दे रहे हैं. वार्ड के बाहर दर्जनों जूता व चप्पल पड़ा रहता है.
बर्न वार्ड बन कर है तैयार, नहीं किया गया चालू : अस्पताल गेट के समीप लगभग छह माह पूर्व विभाग की ओर से करोड़ों की लागत से नया बर्न वार्ड बनाया गया है. लेकिन छह माह बीत जाने के बाद भी इसे चालू नहीं किया गया. यह चालू हो जाने के बाद बर्न वार्ड अलग भी हो जाता और मरीजों का समुचित इलाज भी हो सकता था. सुविधा नहीं रहने के कारण अस्पताल आने वाले लगभग पचास प्रतिशत जले मरीजों को यहां से रेफर कर दिया जाता है.

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