70 गरीबों को मिला पीएम आवास

2011 की आर्थिक जनगणना सूची में दर्ज नहीं था नाम पीएम आवास के लाभुकों के चयन प्रक्रिया में भी सूची में नहीं था नाम मुखिया ने पदाधिकारियों के पास रखी बात एक साल पहले जनसंवाद में की थी शिकायत देवघर : मोहनपुर प्रखंड अंतर्गत बांक पंचायत के चितरपोका गांव निवासी गरीबों का सपना पूरा हाे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 2, 2018 5:38 AM

2011 की आर्थिक जनगणना सूची में दर्ज नहीं था नाम

पीएम आवास के लाभुकों के चयन प्रक्रिया में भी सूची में नहीं था नाम
मुखिया ने पदाधिकारियों के पास रखी बात
एक साल पहले जनसंवाद में की थी शिकायत
देवघर : मोहनपुर प्रखंड अंतर्गत बांक पंचायत के चितरपोका गांव निवासी गरीबों का सपना पूरा हाे गया. उनका अपना आशियाना तैयार हो गया. यह सपना मुख्यमंत्री जनसंवाद केंद्र की पहल पर पूरा हुआ है. चितरपोका के 70 गरीब परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल गया. दरअसल, चितरपोका गांव के गरीबों का नाम बीपीएल व 2011 के आर्थिक जनगणना की सूची में नहीं था. पीएम आवास योजना के लिए इस सूची में नाम दर्ज होना आवश्यक है. जब पीएम आवास के लाभुकों का चयन की प्रक्रिया शुरू हुई, तो सूची में नाम नहीं होने से चितरपोका के ग्रामीणों की सभी उम्मीदें टूट गयी थी.
चितरपोका के अधिकांश लोगों के घर फूस, झोपड़ी, मिट्टी व खपड़ेल के थे. गांव के लोग मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं. उनलोगों ने सपनों में अपना पक्का मकान देखा था. उम्मीदें टूटने से मायूस ग्रामीणों ने बांक पंचायत की मुखिया रेखा कुमारी से पहल करने की मांग की. मुखिया ने पहले स्थानीय पदाधिकारियों के पास पूरे मामले को रखा, लेकिन सभी ने बीपीएल व आर्थिक जनगणना की सूची में नाम दर्ज होना अनिवार्य बताया.
सीएम के निर्देश पर हुई थी विशेष ग्राम सभा
मुखिया ने एक वर्ष पहले मुख्यमंत्री जनसंवाद केंद्र डायल 181 में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि चितरपोका गांव के 70 लोग बेहद गरीब हैं. बीपीएल व आर्थिक जनगणना की सूची में नाम से वे लोग किसी कारण वंचित रह गये. गरीबी की वजह से ये लोग कभी भी अपने कमाई से पक्के का मकान नहीं बनवा पायेंगे, इसके लिए विशेष योजना बनायी जाये. जनसंवाद में मामले की समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास के निर्देश पर रांची से टीम आयी व चितरपोका गांव में विशेष ग्राम सभा आयोजित कर कुल 70 लोगों का नाम पीएम आवास के लिए चयनित किया गया. सूची को देवघर से लेकर रांची तक स्वीकृति दिलायी गयी. उसके बाद काम चालू हुआ. आज चितरपोका में झोपड़ी नहीं, बल्कि पक्के मकान नजर आ रहे हैं.

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