सरकार कर रही खर्च, प्रबंधन से नहीं संभल रही व्यवस्था

देवघर : स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए सदर अस्पताल में बीटा थैलसीमिया सिकल सेल एनीमिया जांच मशीन उपलब्ध करायी गयी है. लेकिन, विभाग की उदासीनता के कारण मशीन अबतक चालू नहीं की जा सकी है. पैथोलॉजी में यह मशीन सदर अस्पताल के पैथॉलोजी में करीब पांच महीने से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2018 6:48 AM
देवघर : स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए सदर अस्पताल में बीटा थैलसीमिया सिकल सेल एनीमिया जांच मशीन उपलब्ध करायी गयी है. लेकिन, विभाग की उदासीनता के कारण मशीन अबतक चालू नहीं की जा सकी है. पैथोलॉजी में यह मशीन सदर अस्पताल के पैथॉलोजी में करीब पांच महीने से रखी हुई है.
अप्रैल-मई में सदर अस्पताल के दो स्वास्थ्यकर्मियों को इसके उपयोग व जांच के तरीके के बारे में प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है. ट्रेनिंग देने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन मशीन चालू कराने में आज तक पहल नहीं कर सका है.
इन बातों का रखें ध्यान
जिस महिलाओं को थैलीसीमिया माइनर या ट्रेट हो, तो उन्हें गर्भावस्था में जांच कराना अति आवश्यक है. यह रोग आयरन की कमी से नहीं होता है. आयरन लेने का सबसे सामान्य रूप फोलिक एसिड है. मनुष्य के हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने पर खून चढ़ाना पड़ सकता है.
बताते चलें कि यदि मां ओर पिता दोनों में थैलीसीमिया माइनर हों, तो बच्चे में थैलेसीमिया गंभीर रूप ले सकता है. इसके लिए शादीशुदा महिला व पुरूष दोनों को इसकी जांच अवश्य करा लें.
मशीन के लिए कमरे की तलाश
मशीन को चालू करने के लिए सदर अस्पताल परिसर में कमरे की तलाश की जा रही है. जबकि यह मशीन अस्पताल के पैथॉलोजी में भी चालू हो सकती है. अस्पताल प्रबंधन की इस अनदेखी की कीमत थैलीसीमिया के मरीज चुका रहे हैं. विभागीय अधिकारी की मानें तो अस्पताल में कमरा नहीं है, जहां मशीन रखी जा सके.
क्या है बीटा थैलेसीमिया
बीटा थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन से संबंधित आनुवंशिक विकार है. इसमें बीटा- ग्लोबिन चेन की सिंथेसिस में कमी आती है. इससे आरबीसी (रेड ब्लड सेल) खून का आकार छोटा हो जाता है. आरबीसी के टूटने का एक निश्चित समय होता है व इससे मरीज में खून की कमी हो जाती है.
आरबीसी का आकार 80- 90 फेम्टोमीटर होता है. रोग में यह 60 के नीचे पहुंच जाता है. इलेक्ट्रोफोरेसिस एचबी ए2 का लेवल बढ़ा जाता है. जिसे स्टेम सेल थेरेपी से इस बीमारी का इलाज संभव है. इसमें बोन मेरो या कॉर्ड ब्लड से मरीज का इलाज होता है .

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