देवघर : हिंदी जगत को एक आयाम दे गये नामवर
दुखद. विद्वान व आलोचक नामवर सिंह के निधन पर देवघर में शोक देवघर : प्रख्यात आलोचक डॉ नामवर सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए नगर के साहित्यकार देवघर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व साहित्यकार प्रो ताराचरण खवाड़े के आवासीय परिसर में जुटे. इस दौरान बड़हिया बिहार के प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ सत्येंद्र अरुण भी उपस्थित थे. […]
दुखद. विद्वान व आलोचक नामवर सिंह के निधन पर देवघर में शोक
देवघर : प्रख्यात आलोचक डॉ नामवर सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए नगर के साहित्यकार देवघर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व साहित्यकार प्रो ताराचरण खवाड़े के आवासीय परिसर में जुटे.
इस दौरान बड़हिया बिहार के प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ सत्येंद्र अरुण भी उपस्थित थे. प्रो खवाड़े ने कहा कि डॉ नामवर सिंह के निधन से हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है. वे हिंदी आलोचना के एक मजबूत स्तंभ थे. प्रो खवाड़े ने पटना विवि में उनकी मुलाकात अौर संस्मरण को साझा किया. डॉ अरूण कहा कि डॉ नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य को अनेकानेक नये साहित्यकार दिये. शोकसभा में डॉ शंकर मोहन झा, सर्वेशदत्त द्वारी, प्रो अनिल कुमार झा, शत्रुघ्न प्रसाद आदि उपस्थित थे.
हिंदी साहित्य के विधा आलोचना को एक नये आयाम में सजाने वाले शिखर पुरूष का साहित्य की दुनिया से विदा ले लेना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है. पंडित जी के परम शिष्य रहे नामवर अपने नाम के अनुकुल साहित्य जगत को बहुत कुछ दिया. पंडित जी ने स्वयं एक बार विश्वनाथ त्रिपाठी से कहा था कि नामवर से संगति रखो.
वह बहुत ही होनहार लड़का है तथा बहुत ही अच्छा लिखता है. अपने गुरु के कथन का उन्होंने अपनी लेखनी से अक्षरश: सत्य साबित किया. नामवर सिंह रोजगारोन्मुख पढ़ाई से काफी दूर रहे. नामवरजी का जब साहित्य की दुनिया में यश फैल रहा था. तब उनके एक निकट संबंधी ने पूछा था कि बेटा कम से कम दारोगा बनने भर तो पढ़ ही लिये होगे. आगे अब कब तक पढ़ोगे.
नामवर जी का मानना था कि अभिभावक के लिए पढ़ाई एक रोग समान है तथा सभी अभिभावक अपने बच्चों को जल्द से जल्द इस रोग से छुटकारा दिलवाना चाहते हैं. लेकिन ठीक इसके उलट नामवरजी ताउम्र स्वाध्याय से जुड़े रहे. युवाअों की रचनाअों को जतन के साथ पढ़ते थे.
उनमें गुणात्मक सुधार करते रहे. छायावाद पुस्तक में उन्होंने छायावाद को नये ढंग से प्रस्तुत किया. व्यक्ति से समाज फिर समाज से प्रकृति प्रेम तथा प्रकृति से नवजागरण तक की यात्रा छायावाद की एक नई समझ विकसित करती है. प्रकृति का मानवीकरण करने में छायावाद में संस्कृत कवियों से कितनी अधिक स्वच्छंदता दिखलायी है. छायावादी रहस्यवाद अौर संतों-भक्तों के अध्यात्मवाद में कितना अंतर है.
ऐसे प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर उनकी पुस्तक छायावाद में मिलता है. कहानी नयी कहानी में आजादी के बाद एक नये मध्यमवर्ग का उदय अौर उसकी इच्छाअों तथा आशाअों का गहन आलोचनात्मक विवरण है. दूसरी परंपरा की खोज में कबीर के अस्वीकार का अदम्य साहस का प्रगितिशील चित्रण है. मुख्तसर नामवर सिंह एक स्वयं दूसरी परंपरा की खोजकर्ता थे.
– डॉ राजीव कपूर, सहायक शिक्षक, आरएल सर्राफ हाइस्कूल, देवघर
हिंदी साहित्य के लिए बड़ा झटका
हिंदी साहित्य के शिखर पुरूष, वरिष्ठ आलोचक एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ नामवर सिंह के गुजर जाने से हिंदी साहित्य को झटका लगा है. इनके देहांत के साथ सी वह प्रकाश स्तंभ बुझ गया, जिसकी रौशनी में पिछले तकरीबन 60 वर्षों से हम सब साहित्य अौर कला का रसपान अौर मूल्यांकन करते रहें. यह निश्चय ही हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति है, जिन्होंने बगैर किसी राग, द्वेष, भय के निर्भीकतापूर्वक अपनी कलम का इस्तेमाल किया व साहित्य तथा समाज को एक नई दिशा दी. ऐसे पुण्यात्मा को सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि.
– डॉ किसलय सिन्हा, सहायक प्राध्यापक, राजनिति विज्ञान विभाग, आरडी बाजला महिला कॉलेज
साहित्यकार डाॅ. उत्तम पीयूष ने कहा कि नामवर सिंह का जाना हिंदी साहित्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल या आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के जाने जैसा है. हिंदी को सोचने समझने की नयी तमीज और नयी दृष्टि देने वाले प्रख्यात आलोचक डाॅ. नामवर सिंह के निधन के बाद तीसरी परंपरा का पुनर उद्भव हो तो हो पर दुसरी परंपरा के सूत्रधार तो हमसे विदा हो गये. ऐसी शख्सियतों का विदा होना दशकों की एक पूरी साहित्य की हैसियत का विदा हो जाना है.
हिंदी आलोचकों को नयी धार देने वाले नामवर सिंह ने लिखने से अधिक बोलकर लोगों तक अपनी बात पहुंचायी है. उनकी इस वाचिक दृष्टि को हम भारतीय ज्ञान एवं चिंतन के सीधे कांटेक्ट की सरल परंपरा से भी जोड़ कर देख सकते है. नामवर सिंह का नामवरी लेखन और विचार उनकी ताकतवर उपस्थिति अब हमारी विरासत की वह ठोस जमीन है जिस पर भविष्य के असंख्य शब्दकारों की क्रियाशीलता टिकी हुई है.
-डाॅ उत्तम पीयूष
देवघर : हिंदी साहित्य जगह के ख्याति प्राप्त साहित्यकार व समालोचक डा नामवर सिंह (92 वर्ष) के निधन पर कचहरी परिसर में शोक सभा की गयी. इस अवसर पर मौजूद बुद्धिजीवियों ने दो मिनट का मौन रखा व उनकी आत्मा की शांति की कामना की. वक्ताओं ने उनकी जीवन यात्रा पर प्रकाश डाला.
कवि किन्नरेश त्रिपाठी ने कहा कि वे साहित्य के शिखर पुरुष थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी. अधिवक्ता अनिता चौधरी ने कहा कि वे हिंदी साहित्य जगत में एक अलग पहचान छोड़ गये.
अधिवक्ता राजकुमार शर्मा ने कहा कि वे साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे जिन्होंने कई रचनाएं की. खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद के एफएम कुशवाहा के अलावा अजय कुमार यादव, चंद्रशेखर यादव, तिलक सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरेकृष्ण राय, अशोक सिंह आदि ने विचार रखे. सबों ने उनकी आलोचना पुस्तकें बकलम खुद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, कविता के नये प्रतिमान, वाद विवाद संवाद आदि पर विस्तार से चर्चा की व उनकी प्रगतिशील विचारधाराओं को सराहा.
नामवर सिंह का जैसा नाम था उसको प्रसिद्ध करने का वर पूर्ण कर आज इस संसार से चले गये. अतीत का संस्मरण हुआ कि कितने सहृदयता से वे लोगों से मिलते थे. जब हमलोग अध्ययनरत व काफी प्रसिद्ध व्यक्तित्व थे. नामवर सिंह का न होना. इस बात का हमेशा बोद करायेगी कि अब सच्ची आलोचना कौन कर सकता है? नामवर सिंह हिंदी साहित्य जगत का संभावित नाम है अौर रहेंगे. इन्होंने आलोचना को तथा साक्षात्कार विद्या को नई ऊंचाई प्रदान की. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए व पीएचइडी की डिग्री के बाद अध्यापन कार्य से भी जुड़े. इनकी रचनाएं छायावाद, नामवर सिंह व समीक्षा, आलोचना अौर विचारधारा, जैसी किताबें साहित्य प्रेमियों में बहुत ही प्रिय थी. साक्षात्कार कहना न होगा-भी आद्वितीय साहित्यिक कृति है.
आलोचनात्मक विद्या में उनकी किताबें पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास अौर आलोचना, कहानी नई कहानी, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, वाद-विवाद संवाद ने हिंदी पाठकों व शोधार्थियों को काफी आकर्षित किया है. जवाहरलाल नेहरू विवि में काफी सालों तक अध्यापनरत रहे अौर सागर विवि में भी उन्होने अपनी सेवाएं दी. इस वजह से पूरे भारतवर्ष में उन्हें काफी सम्मान व प्रतिष्ठा प्राप्त हुआ. अब आलोचनात्मक शैली की रिक्तता को भर पाना काफी मुश्किल होगा.
डॉ राहुल कुमार पांडेय, प्राचार्य, हिंदी विद्यापीठ बीएड कॉलेज, देवघर