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नीरज की पत्नी व मां मिली डीसी एसपी से, की निष्पक्ष जांच की मांग

देवघर : डॉ मनीष द्वारा घुटने के ऑपरेशन के बाद नीरज की हुई मौत मामले में परिजन मंगलवार को डीसी-एसपी से मिलने पहुंचे. इस दौरान नीरज की मां उषा देवी व पत्नी रश्मि उर्फ निकू द्वारा दोनों अधिकारियों को आवेदन देकर निष्पक्ष जांच कराने की गुहार लगायी है. जिक्र है कि दुर्घटना में उसके पति […]

देवघर : डॉ मनीष द्वारा घुटने के ऑपरेशन के बाद नीरज की हुई मौत मामले में परिजन मंगलवार को डीसी-एसपी से मिलने पहुंचे. इस दौरान नीरज की मां उषा देवी व पत्नी रश्मि उर्फ निकू द्वारा दोनों अधिकारियों को आवेदन देकर निष्पक्ष जांच कराने की गुहार लगायी है. जिक्र है कि दुर्घटना में उसके पति नीरज के बाएं घुटने के नीचे चोट लगी थी व हड्डी क्रेक हो गया था.

डॉक्टर मनीष ने घर आकर ठीक कर देने की बात कहते हुए कहा था कि दो दिन बाद सर्जरी होगी. 31 अगस्त की दोपहर में पति को डॉ मनीष के क्लिनिक में भर्ती कराया गया और 22000 रुपये में से 11600 रुपये जमा कराये. ऑपरेशन के दौरान एक बार जोर से चिल्लाने की आवाज हुई. सभी परिजन बाहर ही थे. बीच में डॉक्टर के निकलने पर उनलोगों ने पूछा था, जिसमें उन्होंने सब ठीक रहने की बात कही थी.
कुछ देर बाद डॉक्टर बैचेनी व घबराहट में दिखे. पूछने पर डॉक्टर ने बताया कि सब ठीक हो जायेगा गंभीर है. उन्होंने सदर अस्पताल ले जाने की बात कही, जिसमें उनलोगों द्वारा डॉ अंजय प्रवीण के पास ले जाने की बात कही गयी थी. बावजूद उनके पति को डॉ मनीष स्वयं एंबुलेंस से सदर अस्पताल ले गये. कोने में वहां के डाॅक्टर से बात कर एडमिट कराते हुए अफरा-तफरी में इलाज की प्रक्रिया शुरू करायी. पत्नी व मां का आरोप है कि नीरज की मौत ऑपरेशन के दौरान डेथ ऑन टेबुल (डीओटी) हुई थी क्योंकि ओटी से निकालकर एंबुलेंस में ले जाने के दौरान पेट व मुंह फूला हुआ देखा था. केवल डॉक्टर द्वारा यह सब छिपाने अस्पताल ले गये.
जहां तुरंत बाहर ले जाने की बात होने लगी, ताकि रास्ते में मौत होने की बात कही जा सके. उनलोगों ने जब आपत्ति की थी कि मरे हुए को इलाज व बाहर रेफर करने की बात क्यों हो रही तो डॉक्टर में घबराहट हुई. थोड़ी देर में बता दिया गया पति की मृत्यु हो गयी. अब कुछ नहीं हो सकता. यह सुन सभी शोकाकुल हो गये. हो-हल्ला होने लगा, धीरे-धीेरे परिजन अस्पताल आने लगे. डॉ मनीष समझौता की बात करने लगे. उनसे इलाज के कागजात मांगने पर कंपाउंडर के साथ दो-तीन परिजन को अस्पताल भेजे. वहां कंपाउंडर, मेडम कागजात देने में आनाकानी करने लगे.
बार-बार डॉ मनीष द्वारा समझौता, पोस्टमार्टम नहीं कराने व एफआइआर नहीं कराने की बात कही गयी. इस दौरान सदर अस्पताल द्वारा भी दायित्व निर्वहन नहीं किया गया. हत्या के मामले को इलाज के दौरान मृत्यु बताया गया. सत्य है कि डॉ मनीष द्वारा अधिक एनेस्थेशिया देने से ऑपरेशन के दौरान टेबुल पर ही उनके पति की मौत हो गयी. घटना की निष्पक्ष जांच करायी जाय ताकि दूसरे मरीज के साथ भविष्य में ऐसे डॉक्टरों द्वारा दूसरी घटना की दुस्साहस न किया जा सके.

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