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विदेशी भक्त कर रहे संस्कृत में मंत्रोच्चार

देवघर : रिखियापीठ में शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन देवी मां की आराधना दशम विद्या मंत्रों से की गयी. देवी मां को समर्पित इस मंत्रों का उच्चारण विदेशी भक्तों ने भी संस्कृत में किया. स्वामी सत्संगीजी ने कहा कि मंत्रों से की जाने वाली आराधना हमें सुरक्षा व शक्ति प्रदान करती है. मंत्रों के माध्यम […]

देवघर : रिखियापीठ में शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन देवी मां की आराधना दशम विद्या मंत्रों से की गयी. देवी मां को समर्पित इस मंत्रों का उच्चारण विदेशी भक्तों ने भी संस्कृत में किया. स्वामी सत्संगीजी ने कहा कि मंत्रों से की जाने वाली आराधना हमें सुरक्षा व शक्ति प्रदान करती है. मंत्रों के माध्यम से श्रद्धा अर्पित करने पर ईश्वर के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है.

रिखियापीठ में संस्कृतियों का मिलन होता है. दुनिया के कोने-काने से आये विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस महायज्ञ में एक मात्र कार्य देवी मां की आराधना में लगे रहते हैं. उन्होंने कहा कि परमहंस स्वामी सत्यानंदजी दिव्य शक्ति थे, जो मानव के रूप में आये थे. स्वामीजी ने सर्वत्र योग व आध्यात्म का प्रचार किया. रिखिया को अपनी तपोस्थली के रूप में चुना व तपोस्थल का अर्थ सेवा तथा आध्यात्म है, जो रिखिया पीठ में देखने को मिलेगा. स्वामीजी ने रिखिया से पूरी दुनिया में सेवा, प्रेम व दान का संदेश दिया है.

सेवा की परंपरा रिखिया में आज भी अनिवार्य रखी गया है, जिससे समृद्धि आयी है. रिखिया में जो भी कार्य होते हैं वह भावना के साथ होते हैं. भावना में छल कपट नहीं होनी चाहिए. सच्ची भावना के साथ ईश्वर को स्मरण करेंगे, तो ईश्वर की प्राप्ति होगी. रिखियापीठ में स्वामी सत्यादंनजी का संकल्प पूरा हो रहा है. इस रिखियापीठ में अंतरिक्ष, स्वर्ग, इंद्रधनुष, सेवालय, महासमाधि व अन्नपूर्णा क्षेत्रम है. हर जगह एक सुखद अनुभूति होगी.

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