संताल परगना में बढ़ा सियासत का रोमांच, भाजपा-झामुमो को जमीन बचाने की चुनौती, झाविमो-आजसू रास्ता निकालने में जुटे
संजीत मंडल संताल परगना में 2005 व 2014 में सात-सात सीटें भाजपा ने जीती 2009 में सत्यानंद झा व अरुण मंडल ने बचायी थी भाजपा की लाज 2005 में झामुमो को पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था देवघर : संतालपरगना में सियासी रोमांच उफान पर है़ संतालपरगना में भाजपा-झामुमो को अपनी जमीन बचानी […]
संजीत मंडल
संताल परगना में 2005 व 2014 में सात-सात सीटें भाजपा ने जीती
2009 में सत्यानंद झा व अरुण मंडल ने बचायी थी भाजपा की लाज
2005 में झामुमो को पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था
देवघर : संतालपरगना में सियासी रोमांच उफान पर है़ संतालपरगना में भाजपा-झामुमो को अपनी जमीन बचानी है़ पिछले चुनाव में भाजपा सात और छह सीटों पर झामुमो चुनाव जीत कर आया था़ दोनों ही दलों के लिए अपनी जमीन बचाने की चुनौती है़
वहीं झाविमो और आजसू को संतालपरगना से रास्ता निकालना है़ आजसू भाजपा से अलग हो कर संतालपरगना पहुंची है़ खूंटा गाड़ने में लगी है़ संतालपरगना ने हमेशा चौकाने वाला परिणाम दिया है़ यहां के वोटर को भांपना आसान नहीं है़ हर चुनाव में भाजपा को झामुमो से कड़ी टक्कर मिली है़ 2009 में संताल परगना में भाजपा की करारी हार हुई थी.
इस चुनाव में भाजपा को 18 में से मात्र दो सीटें ही मिली थी. भाजपा के सत्यानंद झा बाटुल नाला से और अरुण मंडल ने राजमहल सीट जीत कर भाजपा की लाज बचायी थी. जबकि 2009 में झामुमो को 10 सीटें मिली थी. वहीं अन्य दलों जैसे राजद को दो, कांग्रेस को एक, झाविमो को दो और निर्दलीय एक जीते थे.
हर चुनाव में भाजपा को झामुमो से मिली है कड़ी टक्कर
पिछले चार पांच चुनाव के आंकड़े को देखें, तो हर चुनाव में भाजपा को झामुमो से कड़ी टक्कर मिलती रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि भाजपा को 1995 के चुनाव में मात्र दो सीटें मिली थी, जबकि झामुमो को आठ सीटें मिली थी.
इसी प्रकार 2000 के चुनाव में भाजपा को पांच तो झामुमो को आठ सीटें मिली. वहीं 2005 में भाजपा को सात, झामुमो को पांच सीटें, 2009 में भाजपा फिर दो पर सिमट गयी, जबकि झामुमो को 10 सीटें मिली. वहीं 2014 के चुनाव की बात करें तो भाजपा को सात सीटें मिली, एक झाविमो के विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गये, इस तरह उनकी संख्या आठ हो गयी. जबकि झामुमो ने 2014 में छह सीटें जीती, कांग्रेस ने तीन और झाविमो ने दो सीट जीता.
2009 में 18 में 10 सीटों पर झामुमो का था कब्जा
1995 में ध्रुव भगत और बेनी गुप्ता ने बचायी थी साख
1995 के चुनाव में संताल परगना की 18 सीटों में भाजपा ने महज दो सीटें पर ही जीत दर्ज की. सिर्फ राजमहल से ध्रुव भगत और पाकुड़ से बेनी प्रसाद गुप्ता ही साख बचा पाये थे. शेष सभी प्रत्याशी चुनाव हार गये थे. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को चार सीटें मिली थी. निर्दलीय लोबिन हेंब्रम बोरियो से जीते थे. वहीं सीपीएम, सीपीआइ और जनता दल ने एक-एक सीटें जीती.
2000 के बाद वामदल का संताल से हुआ सफाया
1995 से लेकर अब तक के आंकड़े को देखें, तो वर्ष 2000 के बाद से ही वामदल का सफाया हो गया. जबकि 2000 में वामदल यानी सीपीआइ के एक विधायक विशेश्वर खां नाला सीट से जीते थे. जबकि 1995 में सीपीआइ एक और सीपीएम ने एक सीट जीती थी. झारखंड बनने के बाद हुए चुनाव में वामदल कहीं से नहीं जीत पाया.
2019 में फिर भाजपा-झामुमो के बीच साख बचाने के लिए टक्कर
इस चुनाव में फिर भाजपा और झामुमो आमने सामने है. भाजपा ने जहां 18 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये हैं. वहीं झामुमो ने महागठबंधन बनाया और भाजपा को शिकस्त देने के लिए झामुमो ने कांग्रेस को चार, राजद को दो सीटें दी. शेष 12 सीटों पर झामुमो खुद चुनाव लड़ रही है. इस बार कौन किसे पछाड़ेगा, किसकी सीट बढ़ेगी, किसकी छिनेगी, यह तो 23 दिसंबर का परिणाम ही बतायेगा.
2009 में झाविमो को मिली थी दो सीट
परफारमेंस के आधार पर देखें तो 2009 के चुनाव में झाविमो के दो विधायक चुने गये थे. 2014 में भी दो सीट पार्टी ने जीता लेकिन चुनाव जीतने के बाद एक विधायक दल छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये. इस तरह उनकी संख्या मात्र एक बच गयी.
परिणाम : किस पार्टी ने कितनी सीटें जीती
पार्टी 1995 2000 2005 2009 2014
भाजपा 02 05 07 02 07
झामुमो 08 08 05 10 06
कांग्रेस 04 02 02 01 03
राजद 01 02 01 02 00
सीपीएम 01 00 00 00 00
सीपीआइ 01 01 00 00 00
निर्दलीय 01 02 01 00 00
जदयू 00 00 01 00 00
झाविमो 00 00 00 02 02
2014 में राजद का खाता भी नहीं खुला : विधानसभा चुनाव में 2014 में राजद का परफारमेंस खराब रहा था. पार्टी का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया था. जबकि देवघर से सुरेश पासवान और गोड्डा से संजय प्रसाद यादव चुनाव लड़े थे.