देवघर: अगर आप डायबिटीज से पीड़ित हैं. आपको डॉक्टर ने आलू खाने से मनाही किया है, लेकिन आपको आलू पसंद है, तो अब जायका बदलने की जरूरत नहीं होगी. शुगर फ्री चीनी, च्यवनप्राश, चावल के बाद अब जल्द बाजार में शुगर फ्री आलू उपलब्ध होने वाला है. देवघर के पदनबेहरा व मोहनपुर प्रखंड के दुम्मा गांव में शुगर फ्री आलू की खेती शुरू की गयी है. इजरायल से तकनीकी खेती का प्रशिक्षण लेकर लौटे किसान वकील यादव ने अपनी जमीन में 10 किलो व दुम्मा गांव में कैलाश यादव ने 40 किलो आलू के बीज के साथ शुगर फ्री आलू की खेती शुरू की है.
20 दिनों पहले लगाये गये आलू के बीज में अब पौधा पूरी तरह तैयार हो गया. मिट्टी के अंदर आलू भी तैयार हो रहा है. शुगर फ्री आलू की खेती में ऑर्गेनिक खाद व पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किया गया है. फसल को कोहरे से बचाने के लिए गो-मूत्र का छिड़काव हो रहा है. शिमला स्थित सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट ने हाल में आलू की शुगर फ्री वेराइटी विकसित की है. वकील व कैलाश ने दर्दमारा के दीपक सिंह के समेकित कृषि फॉर्म से यह शुगर फ्री आलू का बीज मंगवाकर खेती शुरू की है.
सामान्य आलू के बीज से सस्ता शूगर फ्री बीज
किसान वकील ने बताया कि सामान्य आलू के बीज से शुगर फ्री आलू का बीज काफी सस्ता है. शुगर फ्री बीज 20 रुपया प्रति किलो व सामान्य आलू का बीज 30 रुपया प्रति किलो की दर से बिक रहा है. जैविक खाद के प्रयोग से शुगर फ्री फसल के ग्रोथ सामान्य आलू की खेती से ज्यादा है. साथ ही इसमें कीड़े-मकौड़े भी कम लग रहे हैं. इस वर्ष प्रयोग के तौर पर शुगर फ्री आलू की खेती की गयी है. उत्पादन अच्छी होने पर अगले वर्ष बड़े पैमाने पर खेती की जायेगी.
इस आलू को शुगर के मरीज खा पायेंगे. मार्केट में अच्छी डिमांड होने की उम्मीद है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की शिमला के कुफरी स्थित शाखा में सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट हर वर्ष आलू के कई किस्म को विकसित करता है. शुगर फ्री आलू को भी विकसित किया गया है. दावा है कि इसमें सामान्य आलू की तुलना में स्टार्च व कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं के बराबर रहती है. फिलहाल प्रयोग के रूप में इस आलू की खेती शुरू हुई है. उत्पादन के बाद देवघर के लैब में भी टेस्ट किये जायेंगे.
पीके सनिग्रही, कृषि वैज्ञानिक, केवीके, सुजानी
-डायबिटीज मरीजों को होगा फायदा
-इजराइल से लौटे वकील यादव व दुम्मा के कैलाश यादव ने किया प्रयोग
-सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट ने विकसित की है तकनीक