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अब तक जा चुकी है कई जानें, फिर भी नहीं चेत रहे लोग

देवघर: कहते हैं नीम हकीम खतरे जान. कुछ यही हाल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों का है. जहां झोलाछाप चिकित्सकों का बोलबाला है. वर्षो से झोलाछाप चिकित्सक ही प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश ग्रामीणों का इलाज कर रहे हैं. मगर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में नरमी बरते हुए है. ग्रामीण क्षेत्रों में आलम यह […]

देवघर: कहते हैं नीम हकीम खतरे जान. कुछ यही हाल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों का है. जहां झोलाछाप चिकित्सकों का बोलबाला है. वर्षो से झोलाछाप चिकित्सक ही प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश ग्रामीणों का इलाज कर रहे हैं.

मगर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में नरमी बरते हुए है. ग्रामीण क्षेत्रों में आलम यह है कि सरकार के स्वास्थ्य विभाग के पीएचसी, सीएचसी व सदर अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या से ज्यादा इन झोलाछाप चिकित्सकों के यहां भीड़ रहती है. सरकारी व्यवस्था वाले अस्पताल में दिन में ही मरीज पहुंचते हैं.

मगर इन चिकित्सकों के यहां दिन-रात मरीजों की लाइन लगी रहती है. इलाज की सुलभता के कारण लोगों का विश्वास भी खूब बना रहता है. दीगर बात यह है कि क्षेत्र में बिना डिग्री वाले चिकित्सकों की डिग्रीधारकों से ज्यादा कमाई होती है. अधिकांश चिकित्सक तो ऐसे हैं जो बिना ड्रग लाइसेंस व बिना फार्मासिस्ट के दशकों से दवाखाना चला रहे हैं. ऐसा ही एक मामला जसीडीह क्षेत्र के रोहिणी हटिया के समीप का सामने आया है. यहां एक चिकित्सक द्वारा मान्यता प्राप्त चिकित्सा संस्थान से बगैर डिग्री लिये लंबे अरसे से प्रैक्टिस कर रहे थे. इसके साथ-साथ बिना फार्मासिस्ट व ड्रग लाइसेंस के दवाखाना भी चलाये जाने की बातें सामना आ रही है. जिला प्रशासन व जिला स्वास्थ्य महकमा इस तरह के मामलों में कड़ाई से पड़ताल करे तो कई बड़े खुलासे हो सकते हैं साथ ही इस काले काम में संलिप्त लोगों के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं.

करौं में हैं एक सौ से अधिक झोलाछाप डॉक्टर

करौं प्रतिनिधि के अनुसार, प्रखंड क्षेत्र में 150 से 200 गांव हैं. प्रखंड के सिरिया,करौं, डिंडाकोली, प्रतापपुर, लकरछड़ा, सोनाबांध, बेलटिकरी, नोनियाटांड़, मदनकट्टा, बसकुपी, यशोबांध, कोना आदि गांव में 100 से अधिक झोलाछाप डॉक्टर ग्रामीणों को चिकित्सा प्रदान कर रहे हैं. कई झोलाछाप डॉक्टर ऐसे भी हैं जो मरीजों का ऑपरेशन तक करते हैं. लंबे अरसे से इलाज करवाने के कारण ग्रामीणों का विश्वास इन्हीं चिकित्सकों पर बन जाता है. मगर समस्या जब बड़ी हो जाती है. तब ग्रामीण अपने मरीज को लेकर सीएचसी व सदर अस्पताल का चक्कर लगाने को मजबूर हो जाते हैं. कई बार नीम-हकीम के चक्कर में लोगों की जान भी चली जाती है. बावजूद प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन पर समय रहते नकेल नहीं कसा जाता है. नतीजा मरीजों की फेहरिस्त लंबी होती चली जाती है.

क्या कहते हैं आइएमए के सचिव

मेडिकल साइंस में एमबीबीएस, बीडीएस के अलावा आयुर्वेद की कुछ डिग्रियों के विषय में मुङो जानकारी है. मगर सीएमएसइडीटी नाम की डिग्री की जानकारी नहीं है. इस मामले में जिला प्रशासन व सिविल सजर्न के स्तर से गहन जांच होनी चाहिए. उसके बाद आवश्यकता हुई तो कार्रवाई भी की जानी चाहिए.

– डॉ राजेश प्रसाद,सचिव,आएमए देवघर शाखा

क्या कहते हैं सीएस

इस तरह की कोई भी लिखित शिकायत उक्त चिकित्सक के खिलाफ मेरे पास आता है. तो जांच करवा कर आवश्यक रूप से चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. इस तरह के मामले को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.

– डॉ दिवाकर कामत, सिविल सजर्न.

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