प्रवचन :::प्रारंभिक साधक अंतरंग त्राटक का अभ्यास न करें
अंतरंग त्राटक प्रारंभिक साधक एकदम से अंतरंग त्राटक का अभ्यास न करें, क्योंकि इसके लिये शरीर तथा मन की पर्याप्त स्थिरता आवश्यक होती है. इसमें किसी बाह्य वस्तु को देखने की अपेक्षा दृष्टि को भीतर किसी बिंदु पर स्थिर करते हैं.ध्यान के किसी आसन में नेत्र बंद कर बैठिये तथा कायास्थैर्यम् का अभ्यास कीजिये. शरीर […]
अंतरंग त्राटक प्रारंभिक साधक एकदम से अंतरंग त्राटक का अभ्यास न करें, क्योंकि इसके लिये शरीर तथा मन की पर्याप्त स्थिरता आवश्यक होती है. इसमें किसी बाह्य वस्तु को देखने की अपेक्षा दृष्टि को भीतर किसी बिंदु पर स्थिर करते हैं.ध्यान के किसी आसन में नेत्र बंद कर बैठिये तथा कायास्थैर्यम् का अभ्यास कीजिये. शरीर के प्रत्येक अंग, जोड़ तथा मांसपेशियों को शिथिल कीजिये. शरीर के प्रति पूर्ण सजग रहिये. कायास्थैर्यम् मन को स्थिर करन का सशक्त उपाय है. श्वास के प्रति सचेत होइये. कंठ से उसके भीतर-बाहर के आवागमन को देखिये. ध्वनिपूर्वक सात बार ऊँ का दीर्ध उच्चारण कीजिये.चेतना को भ्रूमध्य में लाइये. यदि आपको भ्रूमध्य का पता लगाने में कठिनाई हो तो बीच की ऊंगली में थोड़ा थूक लगाइये, उसे दोनों भौहों के बीच कुछ समय तक रखिये, फिर वहां से हटा लीजिये.