संतालरगना के लोग आज भी गरीब हैं. यहां कोयले की खान, यहां के पत्थर दूसरे जिले व राज्य में जाते हैं, लेकिन अमीर संताल के लोग गरीब हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली सभी की हालत बद्दतर है. शहर छोड़ दें तो गांवों में आज भी मूलभुत सुविधाएं नहीं मिल पायी है. आज भी गांव के लोगों के पास अपने एंबुलेंस (बांस के सहारे मरीज को ढोते हैं) का ही सहारा है. गांव के लोग चुआरी खोदकर पानी पीते हैं. उन्हें पेयजल उपलब्ध नहीं है. इस कारण कई किलोमीटर की दूरी तय करके जोरिया, नदी से पानी लाते हैं. शिक्षा की बात करें तो यहां एक भी तकनीकी शिक्षण संस्थान नहीं है. बीआइटी मेसरा है भी तो यहां संतालपरगना के छात्रों को प्राथमिकता नहीं मिलती. कुल मिलाकर संतालपरगना के लोग बड़े कष्ट में जी रहे हैं. इनकी भी अपनी पीड़ा है. जो ये महामहिम से शेयर करना चाहते हैं.
देवघर/पाकुड़: संथाल परगना प्रमंडल के अन्य जिलों की अपेक्षा पाकुड जिले में बिजली की व्यवस्था बेहतर है. यहां आवश्यकता बीस मेगावाट के बदले दस से बारह मेगावाट की बिजली पंश्चिम बंगाल एवं दुमका ट्रांसमिशन से मिल रही है. शहरी क्षेत्र में 24 घंटे में औसतन 19 से 20 घंटे बिजली का लाभ उपभोक्ताओं को मिल रहे है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कही पांच से छह घंटे तो कही सात से नौ घंटे बिजली आपूर्ति का लाभ उपभोक्ताओं को मिल रहा है. सडक के मामले में पंचायत से प्रखंड एवं प्रखंड से जिला मुख्यालय को जोडने वाली सडकों का हाल बदला है.
जिला मुख्यालय से प्रमंडल एवं अन्य जिलों को जोडने वाली महत्वपूर्ण पथ निर्माण विभाग की सडकों का निर्माण भी किया जा रहा है हालांकि पाकुड बरहरवा सडक की धीमी प्रगति के कारण लोगों को परेशानी हो रही है. जिले के पाकुडिया से पंश्चिम बंगाल नलहटी को जोडने वाली महत्वपूर्ण सडक का हाल बदहाल है. पेयजल के मामले में भी ग्रामीण तो दूर शहरी क्षेत्र के लोग भी गरमी के मौसम में पानी पानी हो रहे है. महत्वपूर्ण शहरी जलापूर्ति योजना की धीमी गति के कारण शहरवासियों को आज भी चापानल एवं कराये गये डीपबोरिंग पर ज्यादा आश्रित रहना पड रहा है.
आदिवासी एवं पहाडिया गांव में रह रहे लोगों को आज भी पीने का पानी के लिए झरना कुंआ एवं चापानल पर आश्रित रहना पड रहा है. स्वास्थ्य के मामले में भी चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का खामियाजा सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को भुगतना पड रहा है.