प्रवचन :::: आत्मा की अनुभूति शब्दातीत होती

इससे उनके मन का गुणात्मक विकास होता है तथा भ्रम एवं अज्ञान की जन्म-जन्मांतर से जमी तहें एक के बाद एक नष्ट होने लगती है. आत्मा निर्मल होती है तथा ‘मैं कौन हूं’ के ज्ञान की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है. साधना के इस पथ को ज्ञानयोग के नाम से जाना जाता है और उपरोक्त प्रश्न […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2014 11:06 PM

इससे उनके मन का गुणात्मक विकास होता है तथा भ्रम एवं अज्ञान की जन्म-जन्मांतर से जमी तहें एक के बाद एक नष्ट होने लगती है. आत्मा निर्मल होती है तथा ‘मैं कौन हूं’ के ज्ञान की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है. साधना के इस पथ को ज्ञानयोग के नाम से जाना जाता है और उपरोक्त प्रश्न व्यक्ति को ज्ञानयोग की साधना की ओर प्रवृत्त करते हैंजो लोग ज्ञानयोग की साधना करते हैं वे दूसरों के ज्ञान, अनुभूतियों तथा पुराने उत्तरों से कभी सुतंष्ट नहीं होते. इसका कारण यह है कि सच्चा ज्ञान व्यक्तिगत अनुभव तथा आत्म-विश्लेषण के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होता है. इसमें शास्त्र में लिखित वचन, दूसरों की कही-सुनी बातें आदि काम नहीं आतीं, भले ही इनसे कुछ दिशा-निर्देश जरूर प्राप्त हो सकता है, परंतु आत्मा की अनुभूति शब्दातीत होती है. यह गूंगे गुड़ के समान होती है. अर्थात बौद्धिक पकड़ के परे होती है. सैद्धांतिक ज्ञान इसकी वास्तविक अनुभूति का स्थान नहीं ले सकता.

Next Article

Exit mobile version