प्रवचन:::: क्रियायोग का नियमित अभ्यास फलदायी है

क्रियायोग आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध, चक्र, प्राण, मंत्र और धारणा का समन्वित अभ्यास-क्रम है. क्रियायोग के अभ्यास से मूलाधार में प्रसुप्त कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है. इस शक्ति की सहायता से हम अपने शरीर के शक्ति उत्पादक विभिन्न सूक्ष्म चक्रों को जागृत कर अपने मस्तिष्क के 90 प्रतिशत सुषुप्त क्षेत्रों को जागृत कर सकते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2014 6:01 PM

क्रियायोग आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध, चक्र, प्राण, मंत्र और धारणा का समन्वित अभ्यास-क्रम है. क्रियायोग के अभ्यास से मूलाधार में प्रसुप्त कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है. इस शक्ति की सहायता से हम अपने शरीर के शक्ति उत्पादक विभिन्न सूक्ष्म चक्रों को जागृत कर अपने मस्तिष्क के 90 प्रतिशत सुषुप्त क्षेत्रों को जागृत कर सकते हैं. परंतु यह सब तभी होगा जब आपके शरीर और मन, प्राण और चित्त अच्छी तरह शुद्ध व संतुलित हो जायें. यदि समस्त नाडि़यां पूर्ण शुद्घ हो जायें तो व्यक्ति कुंडलिनी-जागरण के दिव्य अनुभव को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है. क्रियायोग के नियमित अभ्यास से आपकी नैसर्गिक प्रतिभाओं एवं ऊर्जाओं के बीच सामंजस्य स्थापित होता है. व्यक्तित्व के प्रमुख आयाम एक निश्चित दिशा में किसी प्रकार के दमन के बिना प्रवाहित होते हैं. भले ही आपका स्वभाव मुख्य रूप से भावनात्मक, बौद्धिक, शांत, आक्रामक कैसा भी हो, आपकी आंतरिक शक्ति उच्च दिशा की ओर ही प्रवाहित होगी.

Next Article

Exit mobile version