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प्रवचन:::: चेतना को स्वाधिष्ठान चक्र में लगाये

स्वाधिष्ठान साधना:वज्त्रोली मुद्रा- सिद्धासन, सिद्धयोनि आसन अथवा किसी अन्य ऐसे आसन में बैठिये जिसमें एड़ी का दबाव पेरिनियम में (मल और मूत्र द्वार के बीच स्थित) मूलाधार पर पड़े. आंखें बंद करके शरीर को शिथिल कीजिये. चेतना को स्वाधिष्ठान चक्र में लाइये. श्वास लीजिये. पेट के निचले हिस्से से संकुचित करते हुए जननांग तथा मूत्र […]

स्वाधिष्ठान साधना:वज्त्रोली मुद्रा- सिद्धासन, सिद्धयोनि आसन अथवा किसी अन्य ऐसे आसन में बैठिये जिसमें एड़ी का दबाव पेरिनियम में (मल और मूत्र द्वार के बीच स्थित) मूलाधार पर पड़े. आंखें बंद करके शरीर को शिथिल कीजिये. चेतना को स्वाधिष्ठान चक्र में लाइये. श्वास लीजिये. पेट के निचले हिस्से से संकुचित करते हुए जननांग तथा मूत्र संस्थान को ऊपर की ओर संकुचित कीजिये. यह बहुत कुछ जननांग की उस स्थिति से मिलता-जुलता है जब आपको मूत्र त्याग की तीव्र इच्छा हो परंतु आप उसे रोकना चाहते हों. जब आप पूरी श्वास ले चुकें तो यह खिंचाव भी पूरा तथा अधिकतम हो. आपको ऐसा लगेगा कि अंडकोश अथवा योनि भी थोड़ा ऊपर सरक गये हैं. कुछ समय तक अंतरंग कुंभक कीजिये तथा इस खिंचाव को बनाये रखिये, लेकिन इसमें किसी प्रकार की जोर-जबर्दस्ती न कीजिये. धीरे-धीरे प्रश्वास के साथ संकुचन छोडि़ये और शरीर को शिथिल कीजिये.

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